front page

जल्दी ही बहुत कुछ किया जाना है हिमालय के लिए

मावन सभ्यता का रखवाला हिमालय

-सुन्दरलाल बहुगुणा

हिमालयी वनों से देश को हर साल 6.96 लाख करोड़ रुपए की पर्यावरणीय सेवाएँ प्राप्त हो रही हैं. इन सेवाओं को विस्तृत रूप में देखा जाये तो गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी जीवनदायिनी नदियाँ हिमालय की गोद से ही निकलती हैं. इनका विस्तार देश के 40 फीसद से अधिक भू-भाग पर है और 63 फीसद जलीय संसाधन इन्ही नदियों से उपलब्ध होते हैं. दूसरी तरफ पूरब से पश्चिम तक करीब 2400 किमी लम्बाई और 300 किमी तक की चौड़ाई में फैले हिमालय का कुल क्षेत्रफल करीब साढ़े आठ करोड़ की आबादी को सीधे तौर पर प्रभावित करता है -जबकि अप्रत्यक्ष रूप से यह पूरे भारत का पोषण करता है. ऐसे में हिमालय का संरक्षण किया जाना जरूरी है.

संरक्षण, इसलिये भी कि हिमालय विश्व की सबसे नवीनतम पर्वत शृंखलाओं में से एक है. इसी कारण अभी भी इसमें निरन्तर बदलाव हो रहे हैं. प्राकृतिक संसाधनों के मामले में यह जितनी विविधताओं से भरा है, उतना ही संवेदनशील भी है. इसमें हजार से अधिक ग्लेशियर हैं. ऐसे में हिमालय मानवीय हस्तक्षेप से प्रभावित होता रहा है. दुख की बात है कि यह हस्तक्षेप समय के साथ बढ़ भी रहे हैं. पिछले कुछ दशक में हर साल हिमालय की गोद से कोई-न-कोई आपदा विकराल रूप धारण कर सामने आती रहती है. 2000 की सिंधु-सतलुज और सियांग-ब्रह्मपुत्र की बाढ़ हो या 2004 की पारिचू झील बनने और उसके टूटने से आई बाढ़ हो, इन सबके विकराल रूप धारण करने के पीछे कही-न-कहीं मानवीय हस्तक्षेप बड़े कारण रहे हैं.

वर्ष 2013 की केदारनाथ की जलप्रलय और वर्ष 2014-15 की जम्मू कश्मीर की बाढ़ के जख्म अभी भी ताजा हैं और हिमालय रह-रहकर आगाह कर रहा है कि उसके दोहन और संरक्षण के बीच का सन्तुलन गड़बड़ा रहा है. हिमालय अब यह भी कह रहा है कि सबसे पहले उसके संरक्षण की दिशा में काम किया जाये. ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने लाभ कमाने के लिये यहाँ चीड़ के जंगलों को बढ़ाया, जबकि इससे सूखे और वनाग्नि की घटनाएँ बढ़ रही हैं. ऐसे में हिमालय के जलस्रोत लगातार सूख रहे हैं. इससे पारिस्थितिकी गड़बड़ा रही है. अब समय आ गया है कि हिमालय में चौड़े पत्तों वाले वनों को बढ़ावा दिया जाये. ऊँचाई वाले क्षेत्रों में चेकडैम बनाकर पानी को रोकने के प्रयास करने चाहिए. ताकि जलस्रोत रीचार्ज हो सकें. उचित प्रबन्धन के अभाव में भू-कटाव की गति बढ़ गई है. मौसम का मिजाज भी बदल रहा है और ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार बढ़ने से भविष्य के नए संकट नजर आने लगे हैं.

हिमालय है तो मानव सभ्यता है. इस सूत्र वाक्य को अपनाकर हिमालय के संरक्षण के लिये क्रान्तिकारी स्तर पर काम करने की जरूरत है. भारत के सामाजिक, आर्थिक और पारिस्थितिकी विकास को बढ़ावा देना है तो हिमालय की बेहतरी को अनदेखा नहीं किया जा सकता. हिमालय के इकोसिस्टम में नकारात्मक बदलाव आते रहे तो देश के विकास पर इससे बड़ी चोट दूसरी नहीं हो सकती. अन्त में मैं अपनी पुरानी बात को फिर दोहरा रहा हूँ – ‘धार एंच पाणी ढाल पर डाला, बिजली बणावा खाला-खाला’ (यानी ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पानी एकत्रित किया जाये और ढालदार क्षेत्रों में पेड़ों को बढ़ावा दिया जाये. फिर जलस्रोत रीचार्ज होने पर उनमें छोटी-छोटी बिजली परियोजनाएँ लगाई जानी चाहिए.

(इण्डिया वाटर पोर्टल हिन्दी से साभार)

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

उत्तराखण्ड : धधकते जंगल, सुलगते सवाल

-अशोक पाण्डे पहाड़ों में आग धधकी हुई है. अकेले कुमाऊँ में पांच सौ से अधिक…

4 hours ago

अब्बू खाँ की बकरी : डॉ. जाकिर हुसैन

हिमालय पहाड़ पर अल्मोड़ा नाम की एक बस्ती है. उसमें एक बड़े मियाँ रहते थे.…

5 hours ago

नीचे के कपड़े : अमृता प्रीतम

जिसके मन की पीड़ा को लेकर मैंने कहानी लिखी थी ‘नीचे के कपड़े’ उसका नाम…

7 hours ago

रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता

एक था तोता. वह बड़ा मूर्ख था. गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था.…

21 hours ago

यम और नचिकेता की कथा

https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…

2 days ago

अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण

-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…

2 days ago