द लायन किंग (The Lion King) मूवी में जंगल के राजा मुफासा ने भले ही जंगल की कितनी ही बारीकियां युवराज सिम्बा को सिखा दी हों लेकिन पिता के हादसे के बाद सिम्बा को भागना पड़ा. फिल्म का कथानक वाइल्ड एनिमल्स के निजी हक हकूकों के संघर्ष को दर्शाता है. फ़िल्म उन्हीं पात्रों के बहाने हमारे समाज के निहित स्वार्थों की भी पड़ताल करती है. संभावना व संदेहों की किसी भी कालीघाटी को लेकर एक राजा का डर क्या होता है? ये इस फिल्म से सीखा जा सकता है. लेकिन याद रहे कि यदि समय आपके साथ नहीं है तो गिद्द आपको नोच लेंगे.
स्कार रिश्तों के बहाने एक ऐसा चरित्र है जो हमेशा हमारे आस-पास रहता है. आज के दौर में आप तथाकथित स्कार पर भी विश्वास नहीं कर सकते. सबको राजा बनना है राजपाट करना है. लकड़बग्घा की पूरी जमात उसके साथ है.
कभी-कभी आप सब कुछ भूल जाना चाहते हैं और नहीं चाहते कि पीछे मुड़कर देखा जाए. लेकिन आपके हिस्से के वे मोड़ आपकी इंतजारी में रहते हैं. सब कुछ पाना जीवन नहीं है लेकिन सब कुछ छोड़ देना भी समझदारी नहीं.
युवराज सिंबा अपने मित्र पंबा व टिमन के साथ नई दुनिया में मस्त है. उसे पहली बार लगा कि जिंदगी “हकूना मटाटा “होनी चाहिए. हालात देखिए कि सिम्बा को एकबारगी खाने के भी लाले पड़ जाते हैं. आसपास जंगल में उसका शिकार है लेकिन अब वे सब उसके दोस्त हैं. दोस्ती हो ही गई तो तब शिकार कैसा? ये जीवन का उसूल भी होना चाहिए. मजाल है सिम्बा भले ही कीड़े-मकोड़े खा ले लेकिन अपने ‘डियर’ को नहीं खायेगा. हमारी इंसानी जिंदगी में इसका उलट है. ये भी याद रखना होगा कि लगातार लकड़बग्घों की निगाह आपके हकूना मटाटा पर है .
दोस्त नाला व मां हमेशा आपके साथ रहेगी.
मुफ़ासा को खोना सिंबा के लिए बेहद दुख भरा है. वह अपने ही जैसा चेहरा पानी में देखता है. पानी में अपने चेहरे को देखना इतना ही सच्चा है जैसे दर्पण को देखना. यूं ही जब आप रोते हों तो दर्पण हँस नहीं सकता.
स्कार के जंगलराज में सब परेशान हैं. उसके जंगल राज में लकड़बग्घों की भरमार है.
बहुत ज्यादा आप अपने होने के सच से भाग नहीं सकते. बीता हुआ कल क्योंकि आपकी वजह से ही था.
सिम्बा लौटता है. स्कार और सिंबा का संघर्ष जारी है. लकड़बग्घों का पेट अंधा कुआं होता है—- यह बात सच लगी क्योंकि स्कार खुद अंत में लकड़बग्घों का शिकार हो जाता है. पूरी फिल्म एक सीख जरूर दे जाती है. निजी स्वार्थवश राजपाठ चलाने के लिए यदि आप लकड़बग्घों, भेड़ियों और लोमड़ियों से घिर जाते हैं तो एक दिन स्वयं आपको उनका शिकार हो जाना होगा. परिवार हो या समाज यदि आपस में ही हम लड़ते हैं तो फायदा किसका होता है यह फिल्म बेहतर सिखाती है.
जाहिर सी बात है कि अपने हिस्से की लड़ाई जारी रखनी होगी. इसलिए अगर महफिल से जाना ही हो तो अपने हिस्से का समोसा भी क्यों छोड़े.
चलते-चलते हकूना मटाटा के साथ फिर दोहराना चाहूंगा–
नाराज़ क्यों होते हो
चलें जाएंगे तुम्हारी महफ़िल से …
अपने हिस्से के समोसे तो उठा लेने दो…!!
— प्रबोध उनियाल
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…