प्रभात उप्रेती

काफल तोड़ने वाले लड़के और बूढी चुड़ैल की लोककथा

एक इन्दरू मोल्या था. उसके माँ बाप नहीं थे. वह गायों के साथ रहता था. एक दिन वह गाय चरा…

3 years ago

पिथौरागढ़ के अनछुये इतिहास के किस्से और प्रभात उप्रेती का आत्म-साक्षात्कार

ऐसा कुछ कर जाएं यादों में बस जाएंऐसा कुछ कर जाएं यादों में खो जाएंयारा दिलदारा मेरा दिल कर दा…

3 years ago

दो सैंणियों वाले कव्वे की रीस: उत्तराखंडी लोककथा

एक कव्वा था. उसकी दो सैंणियाँ थीं. एक नई जवान देखणंचाणं थी, दूसरी उतनी सुन्दर तो नहीं थी. पर होशियार…

3 years ago

ग्यांजू: एक जोशीले सरल पहाड़ी की लोककथा

वह एक तो शरीर से टेढ़ा-मेढ़ा बेढब था, दूसरा दिमाग से पैदल था. कोई भी बात उसकी समझ में देर…

3 years ago

एक तगड़े शर्मीले डोटियाल की कथा

नेपाल के डोटी गाँव से आया एक प्यारा-सा तगड़ा शरमीला किशोर ग्रामीण सोर घाटी में मजदूरी करता था. बोझा वह…

3 years ago

जिंदे को लात, मरे को भात: एक उत्तराखंडी लोककथा

एक गांव में एक बहुत बूढ़ा अपने छोटे लड़के, बहू और अपनी औरत के साथ रहता था. उसके दो लड़के…

4 years ago

चट्टान से गिरकर अकाल मृत्यु को प्राप्त पहाड़ी घसियारिनों को समर्पित लोकगाथा ‘देवा’

बहुत सुन्दर गाँव था. खूब गधेरा पानी. अपनी बंजाणी घना जंगल और थी उसी गाँव में एक सुन्दर निर्मल झरने…

4 years ago

‘हरी भरी उम्मीद’ की समीक्षा : प्रभात उप्रेती

सारे भारत में जनजातीय इलाकों में जो कौम बसती थी उनको रोजी-रोटी जिंदगी, जंगलों से चलती है. उनका उन पर…

4 years ago

च्यूरे का पेड़ आज भी शिवजी के वरदान को निभा रहा है

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये क्लिक करें – Support Kafal Tree गरीब तो बहुत होते हैं पर वह निहंग…

4 years ago

कभी छत में आने की फुर्सत तो निकालो प्यारे

मेरे दार्शनिक बाबूजी कहते थे, जिंदगी में सुखी रहोगे अगर ये अंदर बिठा लो 'ये भी न रहेगा’. इस सूत्र…

4 years ago