Featured

उत्तराखण्ड का राज्य पक्षी मोनाल

मोनाल उत्तराखण्ड का राज्य पक्षी (State Bird Uttarakhand Munal) है. मोनाल फैजेन्ट (Pheasant) परिवार का लोफ़ोफ़ोरस (Lophophorus) जींस का एक पक्षी है. इसकी तीन प्रजातियाँ और बहुत सी उपप्रजातियाँ लोफ़ोफ़ोरस जीनस के अन्तर्गत पाई जाती हैं. हिमालयन मोनाल, लोफ़ोफ़ोरस इम्पेजानस (Lophophorus impejanus) स्क्लाटरकी मोनाल, लोफ़ोफ़ोरस स्क्लाटेरी (Lophophorus sclateri) चीनी मोनाल, लोफ़ोफ़ोरस ल्ह्यूसी (Lophophorus lhuysii.)

हिमालयन मोनाल (Lophophorus Impejanus) उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक खुबसूरत परिंदा है. यह उत्तराखण्ड का राज्य पक्षी होने के साथ-साथ पड़ोसी देश नेपाल का राष्ट्रीय पक्षी भी है. पहले यह हिमाचल प्रदेश का भी राज्य पक्षी हुआ करता था. हिमाचल में अब मोनाल की जगह अब पश्चिमी जाजुराना (Tragopan melanocephalus) को दे दी गयी है. पश्चिमोत्तर हिमालय में इसे मन्याल, रतनल, रत्काप, मुनाल, घुर मुनाल, रतुया कांवा आदि नामों से भी जाना जाता है. लेपचा में फो दौग. हिमाचल प्रदेश में इसे नीलगुरु भी कहा जाता है. कश्मीरी इसे सुनाल बताते हैं. नेपाल में डंगन, सिक्किम में चामदौग व भूटान में बुप पुकारी जाती है.

नर मोनाल. फोटो: सुरेन्द्र पंवार

मादा मोनाल. फोटो: सुरेन्द्र पंवार

भारत, पकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, तिब्बत, चीन तथा म्यांमार में 6000 से 14000 फीट तक की ऊँचाइयों में मोनाल का प्रवास है. मध्यम आकार के इस खूसूरत पक्षी का आकार 24 से 29 इंच तक होता है.

यह पक्षी अलग-अलग मौसमों में अलग-अलग खाद्यों को अपना आहार बनता है. जैसे पतझड़ में कीड़े और इल्लियाँ, अन्य समयों में घास की कोंपलें, पत्तियां, जडें, बीज, छोटे फल, बैरी इत्यादि.

मई और जून इनका प्रजनन काल है. मादा साल भर में सिर्फ एक ही बार अंडे दिया करती है. 2-3 इंच के इन अण्डों की संख्या 4-5 से दर्जन भर तक होती है. अंडे हलके बादामी रंग के होते हैं जिनमें भूरी चित्तियाँ पड़ी होती हैं. यह अंडे जमीन में बनाये गए गड्ढे, किसी पत्थर की ओट, किसी पेड़ की जड़ या फिर झुरमुट में दिए जाते हैं. मादा नर की मदद के बिना इनको सेती है.

फोटो : सुरेन्द्र पंवार

फोटो: सुरेन्द्र पंवार

मोनाल को उत्तराखंड राज्य गठन के बाद वर्ष 2000 में राज्य पक्षी का दर्जा दिया गया. लेकिन आज भी इस दुर्लभ पक्षी के संरक्षण के लिए कोई ठोस व कारगर पहल नहीं हो की गयी है. वर्ष 2008 के बाद से राज्य पक्षी की गणना तक नहीं की गयी है. विभिन्न वजहों से राज्य में मोनाल की संख्या बढ़ने की बजाए लगातार घटती जा रही है. इसका कारण जलवायु परिवर्तन व अवैध शिकार को माना जाता है. वन्य जीव संरक्षण बोर्ड द्वारा पहली बार 2008 में कराई गयी गणना में राज्यभर में 919 मोनाल थे. बताया जाता है कि एक समय में इसकी संख्या इतनी ज्यादा हुआ करती थी कि यह सहज ही देखा जा सकता था.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

हमारे कारवां का मंजिलों को इंतज़ार है : हिमांक और क्वथनांक के बीच

मौत हमारे आस-पास मंडरा रही थी. वह किसी को भी दबोच सकती थी. यहां आज…

3 days ago

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

1 week ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

1 week ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

1 week ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

1 week ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

1 week ago