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फिर छलक उठे पहाड़वासियों के आंसू

जो पहाड़ अपनी बेपनाह ख़ूबसूरती के लिए दुनिया-जहां से घूमने आए पर्यटकों के दिल में एक ख़ूबसूरत चाह बनकर बस जाते हैं, अपने ही लोग उन पहाड़ों से टूटे पत्थरों की तरह महानगरों की ओर छिटक-भटक कर क्यों पहुंच गये हैं. वे क्यों, कुदरत की ख़ूबसूरत वादियों को छोड़कर, धुआं उगलती फैक्ट्रियों और एक बड़े पार्किंग लॉट में तब्दील महानगरों की ओर भागते हैं. दिसंबर के पहले हफ्ते में पलायन रोकने के लिए जब पौड़ी की सिफ़ारिश रिपोर्ट (migration in Pauri Uttarakhand ) सामने आयी, तो पहाड़वासियों के आंसू फिर छलक उठे.

ग्रामीण विकास और पलायन आयोग की रिपोर्ट से ये स्पष्ट था कि हिमालयी राज्य उत्तराखंड की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पूरी तरह चौपट हो चुकी है. इस रिपोर्ट के विमोचन के कुछ ही दिन बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ग्रामीण उत्तराखंड की योजनाओं की स्वीकृति के लिए दिल्ली दौड़ पड़े. सात दिसंबर को पौड़ी से पलायन रोकने की सिफ़ारिश रिपोर्ट पब्लिक फोरम में आई. राज्य में सबसे अधिक पलायन पौड़ी से हुआ है, इसके बाद अल्मोड़ा व अन्य ज़िलों का नंबर आता है.

पलायन प्रभावित पौड़ी की स्थिति

2011 की जनगणना के अनुसार पौड़ी की कुल जनसंख्या 6,86,527 है, जिसकी 83.59 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में और 16.41 प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में निवास करती है. पिछली चार जनगणना के अनुसार इस जिले की जनसंख्या में लगातार गिरावट पायी गयी है. 2011 की जनगणना में भी (-1.51) की ऋणात्मक वृद्धि दर दर्ज की गई है. पौड़ी के नगरी क्षेत्रों की जनसंख्या में (2001-2011) दशक में 25.40 प्रतिशत वृद्धि हुई है. जबकि ग्रामीण जनसंख्या में (-5.37) प्रतिशत की उल्लेखनीय कमी हुई है. आंकड़ों से पता चलता है कि बागवानी का कुल क्षेत्रफल वर्ष 2015-16 की तुलना में वर्ष 2016-17 में काफी कम हो गया है, जिससे यहां फलों का उत्पादन भी काफी घट गया है.

आंकड़ों के ज़रिये पलायन की तस्वीर

आंकडें बताते हैं कि पौड़ी के ग्रामीण क्षेत्रों से चिन्ताजनक पलायन हुआ है. 1,212 ग्राम पंचायतों (2017-18) में से 1,025 ग्राम पंचायतों से पलायन हुआ है. लगभग 52 प्रतिशत पलायन मुख्य रूप से आजीविका और रोजगार की कमी के चलते हुआ है. पलायन करने वालों की उम्र 26 से 35 वर्ष के बीच है. लगभग 34 प्रतिशत लोगों ने  राज्य से बाहर पलायन किया है, जो कि अल्मोड़ा जिले के बाद सबसे अधिक है. पलायन आयोग के सर्वेक्षण के मुताबिक वर्ष 2011 के बाद जिले में 186 गांव गैर आबाद हुये हैं, जो कि 2011 के बाद गैर आबाद गांवों का 25 प्रतिशत है. वहीं दूसरी तरफ जिले में 112 गांव ऐसे हैं जिनकी जनसंख्या वर्ष 2011 के बाद 50 फीसदी से अधिक कम हुई है. पूरे राज्य में ऐेसे 565  गांव हैं.

आत्मनिर्भर होंगे, तभी जीवंत होंगे गांव

पलायन प्रभावित पौड़ी की स्थिति बताती है कि मौजूदा जरूरत शहरों से ज्यादा गांवों की अर्थव्यवस्था को सुधारना है. ग्राम स्तर पर आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिए नीतियां बनानी और लागू करनी होंगी. गांव आत्मनिर्भर होंगे, तभी जीवंत होंगे.

पलायन विभाग की सिफारिश रिपोर्ट के मुताबिक गांवों में कृषि और गैर-कृषि को कमाऊ बनाने की जरूरत है. क्योंकि उन लोगों की आय बढ़ी है, जो पारंपरिक या गैर-पारंपरिक खेती की जगह सेवा क्षेत्र में हैं. ग्राम केंद्रित योजनाओं की जरूरत है, इसके लिए क्लस्टर बनानकर कार्य योजना तैयार की जाए. अगले पांच से दस वर्षों तक सभी विभागों को ग्राम पंचायत की अर्थ-व्यवस्था सुधारने के लिए एकजुट होकर कार्य करना चाहिए.

जिन गांवों से अधिक पलायन हुआ है, वहां पानी की कमी, पक्की सड़कों की कमी, अच्छी शिक्षा की कमी, अच्छे अस्पतालों की कमी पायी गई. तो गांवों में बुनियादी सुविधाएं पहुंचानी होंगी.

पलायन आयोग की रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन पर भी चिंता जतायी गई है. पौड़ी के वे गांव जो उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में स्थित हैं, वहां की कृषि अर्थव्यवस्था जलवायु परिवर्तन से ज्यादा प्रभावित हुई है.

स्थानीय अर्थव्यवस्था की जरूरतों के अनुसार कौशल विकास कार्यक्रम तैयार किये जाएं, जैसे कि कृषि सम्बन्धी प्रोद्योगिकी में सुधार, गैर मौसमी खेती, खाद्य, फल-प्रसंस्करण, दुग्ध उद्योग.

गांवों को मज़बूत बनाने के लिए सामाजिक-आर्थिक विकास में महिलाओं की भागीदारी पर ज़ोर देना होगा. ताकि उनके हिस्से में आऩे वाली मुश्किलों में कमी आये.

मौजूदा समय में ग्राम्य विकास विभाग उत्तराखंड के गांवों में ग्रामीण आजीविका मिशन चला रहा है. पलायन प्रभावित पौड़ी के गांवों के हालात बताते हैं कि ये योजना नाम के लिए ही मिशन है. सिफारिश रिपोर्ट कहती है कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं सहायता समूह के ज़रिये बहुत कम ग्राम-संगठनों का गठन किया गया है. यदि है भी तो वे सशक्त रूप से कार्य नहीं कर रहें हैं. जिन्हें मजबूत करने की अति आवश्यकता है. तभी पहाड़ी क्षेत्रों में हो रहे पलायन को रोका जा सकता है.

कृषि क्षेत्र में कमी

रिपोर्ट के मुताबिक कृषि के लिहाज से पौड़ी में वर्ष 2013-14 में शुद्ध बोया गया क्षेत्रफल 64,824 हेक्टेयर से घटकर वर्ष 2015-16 में 62,097 हेक्टेयर हो गया है. कई क्षेत्रों में किसान अपनी कृषि भूमि नेपाली मूल के किसानों को किराये पर दे रहे हैं, लेकिन उत्पादन क्षमता इतनी मात्रा में नहीं है कि बड़ी मण्ड़ियों तक पहुंचाया जा सकें.

इसलिए सिफारिश की गई है कि किसानों को आलू और अन्य सब्जियों के अधिक मात्रा में उत्पादन को प्रोत्साहित किया जाए. साथ ही बाज़ार भी उपलब्ध कराया जाए. इसके लिए सहकारी खेती एक मात्र राह है. साथ ही स्थानीय स्तर पर छोटी-छोटी ई-मंडियां स्थापित की जाऐं.

सेबों का उत्पादन घटा, पशुधन घटा

हिमाचल की ब्रांडिंग का ही ये कमाल है कि उनके सेब पूरे देश के बाज़ार में जाते हैं, जबकि उत्तराखंड अपने ठीक पड़ोसी राज्य से ये सबक नहीं सीख पा रहा.

पौड़ी में वर्ष 2016-17 में 4,047 हेक्टेअर क्षेत्रफल में बागवानी की जाती है. पिछले 10 वर्षों में सेब का उत्पादन क्षेत्र 1,100हेक्टेअर से घटकर 212 हेक्टेअर तक हो गया है. जबकि यहां बागवानी की अच्छी संभावना है.

गांव के लोग शहरों की ओर गये तो खेत बंजर हुए, फलों का उत्पादन घटा, साथ ही पशुओं की संख्या में भी कमी आई है. जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में पशुपालन आय के मुख्य स्रोतों में से एक रहा है. पौड़ी में गायों की संख्या वर्ष 2003 में 3,61,563 से घटकर 2015-16 में 3,00,081 हो गई है. भैंसों की संख्या 70,115 से घटकर 2015-16 में 40,533 हो गई है. जबकि बकरियों और मुर्गियों की संख्या बढ़ी है. इसलिए आयोग ने पशुपालन की गुणवत्ता को बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता जतायी है.

रिपोर्ट में जिले को दूध उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में दुग्ध विपणन करवाने का उद्देश्य रखने को कहा गया है. संकर प्रजाति के दुधारू पशुओं के पालन हेतु प्रोत्साहित किया जाए.

इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योग जैसे पनीर, घी, मावा, मक्खन जैसे दूध उत्पादों के संस्करण की बहुत अधिक सम्भावनायें हैं. इसे बढ़ावा दिये जाने की आवश्यकता जतायी गई है.

गांवों में लाएं छोटे उद्योग

पलायन आयोग के मुताबिक गांवों की अर्थव्यवस्था को मज़बूत बनाने के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों को गांवों की ओर ले जाना होगा. इसके लिए एम.एस.एम.ई सेक्टर काफी काम का साबित हो सकता है. जैसे कृषि आधारित, रेडीमेड वस्त्र,बुनाई, फर्नीचर और मरम्मत और सर्विंसिंग जैसे सूक्ष्म और लघु इकाइयों के ज़रिये रोजगार के अवसर पैदा किये जा सकते हैं.

जिस जगह जंगल हैं, प्रकृति की ख़ूबसूरती है, ऊंची-ऊंची हिमालयी चोटियां हैं, पौराणिक और पुरातात्विक महत्व के मंदिर हैं, वो जगह अपने ही रहवासियों से क्यों उजड़ रही है, इन जगहों को पर्यटन के लिहाज से विकसित किया जा सकता है. वर्ष2015-16 में 4,17,044 पर्यटक पौड़ी आए थे, जिनमें 21,162 विदेशी पर्यटक थे. यहां 9 पर्यटक अतिथि गृह, 242 होटल और लॉज, 10 होम-स्टे हैं. लेकिन ये ज्यादातर लैन्सडोन में ही हैं.

तो ग्राम्य विकास और पलायन आयोग की रिपोर्ट को आधार मानें, तो हमें समस्या पता है, समस्या की वजह पता है. हमारे पास एक चुनी हुई सरकार है. सरकार के पास योजनाओं की लंबी फेहरिस्त है. बस इसे पहाड़ की धरती पर उतारना है.

[डाउन टू अर्थ पत्रिका से साभार. लिंक  उपलब्ध कराने के लिए नैनीताल समाचार का आभार.]

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