कला साहित्य

‘सोना की नथ’ एक पहाड़ी लड़की की कहानी

उसका नाम सोनी था और लोग प्यारवश उसे सोना कहते. बचपन से ही उस के सौंदर्य को देख लोग कहा करते- किसी सेठ घराने में ही ब्याही जाएगी जहाँ दस तोले की नथ पहन सके.
(Sona Uttarakhand Stories)

और ज्यों – ज्यों वह बड़ी होती लोग अपनी वाणी दुहराते. धीरे-धीरे सोनी भी समझने लगी और मन ही मन खुश होती इस बात से कि उसका ब्याह किसी सेठ घराने में होगा जहाँ बड़ी से बड़ी सोने की नथ पहनेगी. सोचती- लोग नथ देख कर ही उठेंगे सेठ की बहू हैं.

सुन्दर, बड़ी सी सोने की नथ पहनने की खुशी में सोनी को उस दिन दर्द भूल गया जब उसकी नाक छेदी गयी नाक को साधने के लिए यह चाँदी का सूत लगाए रहो, फिर तुम बड़ी हो जाओगी और सोने के नथ पहनोगी. माँ ने कहा.

सोनी की आयु बढती और उस की नाक का चाँदी की सूत भी मोटा होता जाता- नथ बहुत मोटी होगी, नाक को अभी से साधती रहो. माँ बाप प्यार जताते.

फूल के पौधे की तरह सोनी इकपत्ती, दुपत्ती, तिपत्ती होती गयी. प्रतिदिन उस की अंगों में उभार आता. हर बीता दिन उस के सौन्दर्य में ‘कुछ’ योग कर जाता. हर आने वाली सुबह उसके यौवन को जगाने की प्रतीक्षा करती. सोने के फूल का पौधा मौसम बदलते ही और खूबसूरत लगता. देखनेवाले कह उठते- अब इस पर फूल लगेगा, सूरजकमल का फूल, सोने के से रंग वाला.

सोना पानी भरने जाती, लोग कटाक्ष करते-क्या मटक-मटक कर चलती है जैसे अभी से सेठ की बहु बन गयी, नाक पर दस तोले की नथ लग गयी. सोना और मटक कर चलती- दस तोले की नथ मैं ही तो पहनूँगी.

सोना जवान हो गयी- माँगने वाले आने लगे.

एक बूढा दस दर्जे पास बेटे का बाप.

अपनी लड़की की जन्मपत्री की टीप दे दो. दोनों की जन्मपत्री मिल जाए तो आगे भगवान का अधिकार.

लड़का क्या कर रहा है?

अभी उसने इस महीने में दसवीं दर्जा पास किया है. आगे कुछ सरकारी नौकरी देखेगा.

गहने?

गहने, उसने कुछ नहीं. लड़का पढ़ा-लिखा है. किस्मत में होगा और परमेश्वर रूठेगा नहीं तो जिन्दगी में गहने-ही गहने होंगे.

भाई पढ़ाई-लिखाई से कोई सेठ नहीं बन जाता. तुम ने लड़के को पढ़ा लिया तो अच्छा किया, आजकल बहुत पढ़ा लेना भी बहुत जरूरी है. पर मैं अपनी बेटी को उसी घर में दे सकता हूँ जहाँ से छः तोले की नथ आ सके.

मैं ने लडके को पढा लिया अब वह चाहे तो जिन्दगी भर गहने ही बनाता रहे. पर मैं अपनी ओर से गहने नहीं बना सकता, यह मेरी सामर्थ्य से बाहर की बात है.
(Sona Uttarakhand Stories)

तो यह रिश्ता नहीं हो सकेगा. पास बैठे नत्थू ने, जो अभी जवान था, सलाह दी- चाचा लड़का दस दर्जे पास है. हमारे घरों में कौन इतना पढता है? मेरी बात मानो तो सोना का हाथ पकड़ा दो. जिन्दगी में गहने नहीं होंगे तो कोई बात नहीं. सुख तो होगा.

खबरदार नत्थू! ऐसी बात फिर मुँह से नहीं निकालना. जिन्दगी में उसे गहने नहीं मिलेंगे, एक अच्छी सी नथ नहीं पहनेगी, लोग देख कर रूआब मानेंगे तो और सुख क्या होगा? नंगी लड़की को क्या सुख हो सकता है?

चाची को तो पूछ लो चाचा, देखें वे क्या कहती है.  

वह क्या कहेगी, उसकी कोई दूसरी राय थोड़े ही हो सकती है. वह यह तो नहीं चाहेगी की उसकी लड़की की नाक पर एक छोटा सा चाँदी का सूत लटकता रहे.

फिर भी पूछ तो लेना चाहिये.

जा, तू ही पूछ आ.

नत्थू अंदर गया, सारी स्थिति समझाई. लडके के इल्म का बखान दिया.

बेकार है बेटा| पढ़ा-लिखा होगा तो अपने लिए. सोना को तो उससे कुछ भी नहीं मिलेगा. नहीं बैठेगी कुर्सी पर, नहीं घूमेगी गाडी पर, कोई बात नहीं. घास काटेगी, गोबर ढोएगी पर नाक पर सोना तो पहनेगी! यह रिश्ता नहीं हो सकता.

चाची, सोना को तो पूछ ले, उसकी क्या राय है?

सोना को पूछने जरूरत ही नहीं है. वह कोई हम से अलग थोड़े ही है.

फिर भी उसका मन तो जाँच ले.

सोना ने झाड़ कर जवाब दिया- ऐसी क्या हूँ मैं कोई छोकरी, बिना माँ-बाप की, जो जहाँ चाहो फेंक दो? सोना ने जान बूझ कर जोर से कहा.

सुन ले रे नत्थू! अंदर के कमरे से चाची ने आवाज दी- सुन लिया सोना का जवाब?

सुन लिया चाची.

एक से एक आये. सुन्दर, तन्दुरुस्त, पढे-लिखे लड़कों का बाप| माता-पिताहीन, खाते कमाते लड़कों के रिश्तेदार पर सोना का रिश्ता न हो सका.

जवान लड़की, खूबसूरत. बाप के घर में कुँवारी रह जाएगी क्या? औरतों में चर्चा छिड़ी. घर पर ही बुढिया बनाने की ठान ली है.

सोना का बाप अटल रहा- मेरी लड़की कुँवारी रह जाए मुझे मंजूर है. पर मैं दूंगा किसी खानदान में हीं. शादी न हो तो न हो. मैं नंगे-भूखों को लड़की नहीं दे सकता. जिस घर से छः तोले की नथ न आ सके, वह भी कोई घर है? सोना की मां अटल, सोना अटल.

आखिर छ: तोले की नथ आई एक ठेकेदार, एक अनपढ़ लड़के को लेकर रिश्ता तय हो गया. अगले महीने ब्याह. शादी से पहले ही नथ आ गई, सोने की नथ का वजन पूरे छः तोले. रत्ती-भर कम नहीं, सोना ने पहन ली. दर्द हुआ पर कोई बात नहीं. गाँव की औरतों की बोलती बन्द हो गयी. बड़े-बूढे अपनी पोतियों की नाक देखने लगे. गाँव की कुंवारे देख कर शरमा जाते- कभी मेरी भी बात चली थी. पर इतना भाग कहाँ? छ: तोले की नथ, सेठ की बहू. किस्मत खुल गयी ठेकेदार की. ऐसा माल कहाँ मिलता? संयोग की बात. सोना का ब्याह हुआ और उसके पति को एक सड़क के एक ठेके में हजारों का मुनाफा हो गया. ससुर का सीना फूल गया, घर में लक्ष्मी आई है. सड़क के ठेके से हुए इस मुनाफे का इजहार सोना की नथ में कुछ और सोना जोड़ उसका वजन बढाकर किया गया. हाथ, पाँव और गले के लिए भी सोने के गहने बनाए गये. ‘बहू का भाग्य है, बहू पर ही लगेगा’. सोना का ससुर फूला न समाया.

अब वह चलती तो चलता कि कोई सोने की मूर्ति चल रही है. गाँव में कोई भी बाहरी आता तो सूरत देख कर कह उठता- ठेकेदार की बहू है.’ इकलौती लाडली बेटी का समाचार सुनकर बाप बोल उठा डेढ कौड़ी की इज्जतवाले आ जाते थे- ‘लड़की दे दो साब’ सारी भायात कहती थी- दे दो जी, लड़की को एक-न-एक जगह देना ही तो है. अब कहे जरा कोई गलती की, लड़की सोने की हो गयी. खानदानी लड़का है. समधी खूब समझता है बहु की कीमत. लोग सुनते और चुप हो जाते.
(Sona Uttarakhand Stories)

सोना की गोद में एक बच्चा खेलने लगा. छोटा-सा बच्चा, रुई-सा मुलायम, सोना की ही तरह सुन्दर. दिन भर वह अपने बच्चे के गोद में उठाए रहती. कभी अपने बच्चे को देखकर फूल उठती और कभी अपने शरीर के सोने के गहनों को देखकर बच्चा जब कुछ महिनों को हो गया तो उसे भी अपने मा के शरीर पर लगे सोने के गहनों से प्यार होने लगा. बच्चा बार-बार उसके गहनों से खेलता. गहनों की चमक उसे आकर्षित किये रहती. अपनी मां के अलावा वह किसी की गोद में नहीं जाता. उनके शरीर पर कुछ भी तो नहीं चमकता था रोने लगता. माँ के सीने से लिपटा वह उसके आभूषणों से खेलता.

सोना का पति ने फिर मुनाफा कमाया. फिर नथ का वजन बढा. नथ का वजन बढा और सोना की नाक दर्द करने लगी. यदा-कदा बच्चा भी उसे खींच बैठता और नाक दुखने लगती. नथ के भारी हो जाने से नाक छेद चौड़ा हो गया. कभी-कभी सोना को लगता कि कहीं नाक फट न जाए.

उसके पति ने फिर मुनाफा कमाया और अपने वैभव का प्रदर्शन करने के लिए फिर सोना की नथ में और सोना जोड़ा, ठीक वैसे ही जैसे कोई एम. ए. पास व्यक्ति पी. एच. डी. मिलने पर अपने साइन बोर्ड पर ‘डा.’ जोड़ दे.

उसकी नथ दिन-रात नाक दुखने लगी. वह चलती तो नथ हिलती, दर्द होता. सोने की नथ का ध्यान रखना पडता थोडा सा दब जाती

आँखों से आँसू निकाल बैठती. बच्चा नथ खींचता और नाक का छेद और चौड़ा हो जाता. सोना की नथ चौबीसों घंटे, लगातार कष्ट देती रहती.

जब नहीं सहा गया तो एक दिन सोना ने अपनी सास से कहा- नथ दर्द करती है, मैं बुलाक ही पहने रहूँगी.

सास ने सोने के माता-पिता और उनके पुरखों को अपनी भाषा में पूजा करने के बाद डाँट सुनाई किसी को तो सोना देखने ही नहीं मिलता और कुलच्छनी तू कहती है मैं नहीं पहनूंगी. मुझे अपने बेटा प्यारा है. खबरदार जो ऐसी बात तू फिर जबान पर लाई. नथ तो सुहाग है. सुहागिनें कहीं रीती नाक रखती है.

बुलाक तो रहेगी ही. नथ ने सारी नाक काट दी. एक पतली सी झिल्ली रह गई है. पता नहीं कब टूट जाए.

सेठ की बहू नाक पर एक बुलाक लिए फिरेगी हम कोई मंगते हैं. तुझे हमरी इज्जत का तो ध्यान होना चाहिये.

नाक टूट जाएगी तो?

नाक टूटती नहीं है क्या? टूट ही जाए तो सिलवा लेंगे.

कुछ दिन वह चुप रही किन्तु जब असह्य दर्द होने लगा तो उसने अपनी सास से फिर वही बात कही.

सास ने भौंहे तान ली- तेरे बाप ही ने तो कहा था कि मैं लड़की वहाँ दूँगा जहाँ से छह तोले का नथ आ सके. उस वक्त तुझे क्या हो गया था? चली जाती किसी और के घर हमने कोई कसम खाई थी तुझे लाने की?

सोना अपना सा मुँह लिए, आँखों में सफेद बड़ी-बड़ी बूँदे लेकर किसी ओर चल दी. अपने बच्चे को उसके छाती से छिपका लिया.

ठेके के काम समाप्त कर उसका पति घर लौट आने वाला था. सोना सोचती रही इस बार फिर मुनाफा होगा और फिर नथ का वजन बढ़ाया जाएगा. कितना अच्छा हो अगर इस वक्त घाटा… नहीं, नहीं. ऐसा कभी न हो. परमेश्वर उनकी दिन दुगनी और रात चौगुनी आय करता रहे. पर नाक? नथ?
(Sona Uttarakhand Stories)

उसका पति लौट आया और इस बार भी कई हजार रुपए कमाकर लाया. सोना सिहर गई- अब फिर वे नथ में सोना जोड़ेंगे. सोना ने अपने मन की व्यथा पति से कह सुनाई. पति आगबबूला हो गया. तुझ अभागिन को सोना नहीं, राख देना चहिये था. कहाँ से ले आये अभागिन को! मेरा दिवाला निकल गया क्या. जो तू नाक पर खाली बुलाक रखेगी? लोग क्या कहेंगे ‘ठेकेदार की स्त्री, खाली नाक!’ नाक की नथ घराने का वैभव बताती है. उस रात सोना को नींद न आई. सुबकने लगी तो सास चिल्ला उठी-कुलटा, कुलच्छिनी, इतने महीनों के बाद तो वह घर लौट आया है और तू रो रही है. यह जाल बिछाकर अपशकुन पैदाकर रही है. रोती अपने माँ बाप के लिए है? लड़के का तो कुछ ख्याल रख.

ठाकुराइन! मुझे अपना बेटा प्यारा है. उसके घर आने पर तू हँसने के बजाय रो रही है तो कल सुबह अपनी मायके चली जा. जिन्होंने जाया, वे तेरा जो चाहे करें. सोना को होश आया और वह स्वयं डर गयी. अंधकार में हाथ जोड़कर मन-ही-मन प्रार्थना की भगवान मेरा सुहाग अमर रहे. इससे पहले कि सोना का पति नथ को भारी बनाने के लिए उसे सोना की नाक से निकालकर सुनार के पास ले जाता, नथ स्वयं ही नाक तोड़करर जमीन पर आ गयी.

नाक सिलवा दो. सास ने कहा.

और इस नथ को सुनार के पास ले जाकर एक तोला सोना बढवा दो. अब यह दस तोले की हो जाएगी. ससुर का स्वर था.
(Sona Uttarakhand Stories)

विद्यासागर नौटियाल

29 सितंबर 1933 में जन्मे नौटियाल जी का जीवन साहित्य और राजनीति का अनूठा संगम रहा. वे प्रगतिशील लेखकों की उस विरल पीढी से ताल्लुक रखते थे जिसने वैचारिक प्रतिबद्धता के लिये कला से कभी समझौता नहीं किया.हेमिंग्वे को अपना कथा गुरू मानने वाले नौटियाल जी 1950 के आस-पास कहानी के क्षेत्र में आये और शुरूआत में ही भैंस का कट्या जैसी कहानी लिखकर हिन्दी कहानी को एक नयी जमीन दी.शुरआती दौर की कहानियां लिखने के साथ ही वे भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी से जुड़ गये और फिर एक लम्बे समय तक साहित्य की दुनिया में अलक्षित रहे. उनकी शुरूआअती कहानियां लगभग तीस वर्षों बाद 1984 में टिहरी की कहानियां नाम से संकलित होकर पाठकों के सामने आयीं.नौटियालजी की साहित्यिक यात्रा इस मायने में भी विलक्षण है कि लगभग चार दशकों के लम्बे हाइबरनेशन के बाद वे साहित्य में फिर से सक्रिय हुए! इस बीच वे तत्कालीन उत्तर-प्रदेश विधान-सभा में विधायक भी रहे. विधायक रह्ते हुए उन्होंने जिस तरह से अपने क्षेत्र को जाना उसका विवरण एक अद्भुत आख्यान भीम अकेला के रूप में दर्ज किया जिसे विधागत युक्तियों का अतिक्रमण करने वाली अनूठी रचना के रूप में याद किया जायेगा.लेखन की दूसरी पारी की शुरूआत में दिये गये एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था ,“ मुझे लिखने की हडबडी नहीं है”.आश्चर्य होता है कि जीवन के आखिरी दो दशकों में उनकी दस से अधिक किताबें प्रकाशित हुईं जिसमें कहानी संग्रह ,उपन्यास,संस्मरण,निबन्ध और समीक्षाएं शामिल हैं.यह सब लिखते हुए वे निरन्तर सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रहे.देहरादून के किसी भी साहित्यिक -सामाजिक कार्य-क्रम में उनकी मौजूदगी हमेशा सुख देती थी-वे वक्त पर पहुंचने वाले दुर्लभ व्यक्तियों में थे-प्राय: वे सबसे पहले पहुंचने वालों में होते.उनकी विनम्रता और वैचारिक असहमतियों को दर्ज करने की कठोरता का सामंजस्य चकित करता था.

वे एक प्रयोगशील कथाकार थे. सूरज सबका है जैसा उपन्यास अपने अद्भुत शिल्प -विन्यास और पारदर्शी भाषा के लिये हमेशा याद किया जायेगा.उनकी कहानियों में पहाड़ की औरत के दु:ख, तकलीफें,इच्छायें और एकाकीपन की जितनी तस्वीरें मिलती हैं वे अन्यत्र दुर्लभ हैं. उनके यहां फट जा पंचधार,नथ, समय की चोरी,जैसी मार्मिक कहानियों की लम्बी सूची है.उनके समग्र-साहित्य का मूल्यांकन करने में अभी समय लगेगा किन्तु एक बात बहुत बहुत स्पष्ट रूप से कही जा सकतीहै कि यदि पहाड़ के जीवन को समझने के लिये साहित्य में जाना हो तो विद्यासागर नैटियाल के साहित्य को पढ लेना पर्याप्त होगा. [नवीन नैथानी का लिखा यह परिचय लिखो यहाँ वहां से साभार]
(EK Shikayat Sabki Story)

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