आमिर खान, उसके बेटे और भेड़ की मोटी दुम के लहसुन वाले खीनकालों का किस्सा

हिंदी लेखन की हालत आजकल एक ऐसी संतान की तरह हो गयी है, जिसके बाप के रूप में एक ओर तो संस्कृत के शुद्धतावादी उस पर कब्ज़ा जमाना चाहते हैं, दूसरी ओर विदेशी भाषा का उस पर इतना दबाव है कि हिंदी के रखवाले ही उसके अस्तित्व की कल्पना उस गैर भाषा के बगैर नहीं कर पा रहे. हिंदी आज एक नकली भाषा का रूपाकार ग्रहण कर चुकी है,जो जड़-विहीन साहित्य उगल रही है.

अपनी विश्वविख्यात पुस्तक ‘मेरा दागिस्तान’ में अपने समय के बेस्ट सेलर लेखक रसूल हमज़ातोव (जन्म 1923) ने लिखा है कि कोई भी भाषा और साहित्य परायी भाषा की बैसाखियों के सहारे जिंदा नहीं रह सकता. संसार की लगभग सभी भाषाओँ में अनूदित इस किताब के अंत में हमज़ातोव एक लोक कथा के जरिए अपनी मातृभाषा ‘अवार’ से जुड़े ऐसे ही संकट का जिक्र करते हैं जैसी आजकल भारत में हिंदी को लेकर दिखाई दे रही है.

रसूल के समय पूर्व-सोवियत संघ के छोटे-से देश दागिस्तान में वहां की मातृभाषा ‘अवार’ पर उनकी राष्ट्रीय भाषा रूसी का दबाव तो था ही, यूरोप और संसार की अनेक समृद्ध भाषाओं के साहित्य का भी इतना दबाव था कि वे लोग उनसे बचकर खुद को व्यक्त करने का साहस नहीं बटोर पा रहे थे. वहां का लेखक भी भारत की तरह अपनी जड़ों की अभिव्यक्ति का संकट महसूस कर रहा था. अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए रसूल ने एक रोचक कथा का सहारा लिया है:

आमिर खान, उसके बेटे और भेड़ की मोटी दुम के लहसुन वाले खीनकालों का किस्सा

कहते हैं कि अवारिस्तान में कभी एक बहुत ही अमीर रहता था. बेटे की तमन्ना में उसने तीन बार शादी की, मगर एक भी बीवी ने न सिर्फ वारिस ही पैदा किया, बल्कि खान को बेटी तक का मुँह देखना नसीब नहीं हुआ. चुनांचे उसे चौथी बार शादी करनी पड़ी.

आख़िर खान के यहाँ बेटा पैदा हुआ. उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा. ढोल-नगाड़े और तुरहियाँ-नफ़ीरियाँ बजाई गईं, खूब नाच-गाना हुआ. तीन दिन और तीन रातों तक दावतें उड़ती रहीं.
मगर खान के आलीशान महल में बहुत अरसे तक यह ख़ुशी न बनी रह सकी. बेटा बीमार हो गया और उसकी बीमारी किसी की भी समझ में नहीं आई. कैसी भी लोरियां क्यों न गाई जातीं, मगर उसकी आँख न लगती. कितनी भी बढ़िया खुराक उसे क्यों न दी जाती, वह कुछ भी न खाता-पीता. सब समझने लगे कि अब वह कुछ ही दिनों का मेहमान है.

न तो विदेशों से बुलाये गए हकीम-वैद्य, न हिन्दुस्तानी गंडे-ताबीज और न तिब्बती जड़ी-बूटियाँ ही खान के इकलौते बेटे को तंदुरुस्त कर सकी. बेटे की मौत शायद खान की मौत भी होती.

पड़ौस के गाँव में रहने वाला एक मामूली गरीब आदमी खान के पास आया. उसे तो कोई भी आदमी भी मानने को तैयार नहीं था. उसने कहा कि वह वारिस को बचा सकता है. खान के अमीर-उमरा ने उसे भगा देना चाहा, मगर खान ने उन्हें ऐसा करने से रोका. ‘बेटा तो यों भी मर ही जाएगा,’ उसने मन में सोचा, ‘इसका इलाज भी आजमाकर देख लेने में क्या हर्ज है!’

‘मेरे बेटे की जान बचाने के लिए तुम्हें किस चीज की जरूरत है?’

‘मुझे तुम्हारी बीवी से एकांत में कुछ बात करनी होगी.’

‘क्या कहा? मेरी बीवी के साथ एकांत में? तुम्हारा दिमाग चल निकला है. दफा हो जाओ मेरी आँखों के सामने से.’गरीब आदमी मुड़ा और चल दिया. खान ने सोचा, बेटा तो यों भी मर ही जाएगा, अगर वह मेरी बीवी से एकांत में बात कर लेगा तो इससे मेरा क्या बिगड़ जाएगा?’

‘ए गरीब आदमी, लौट आओ, हमने अपना ख्याल बदल दिया है. हम तुम्हें अपनी बीवी से बात करने की इजाजत देते हैं.’

गरीब आदमी और खान की बीवी जब अकेले रह गए, तो गरीब आदमी ने पूछा, ‘तुम यह चाहती हो कि तुम्हारा बेटा जिन्दा और तंदुरुस्त रहे?’

खान की बीवी ने कोई जवाब देने के बजाय उसके सामने घुटने टेक दिए और मिन्नत-समाजत करने लगी.

‘तो मुझे यह बता दो कि इसका असली बाप कौन है?’

खान की बीवी ने घबराकर इधर-उधर नज़र दौड़ाई.

‘डरो नहीं. हमारी बातचीत हमारे साथ ही कब्र में जाएगी. नहीं तो तुम्हारा बेटा जिन्दा नहीं रहेगा’

‘खान को बेटे की बड़ी चाह थी. मैं जानती थी कि अगर बेटा पैदा नहीं करुँगी तो मुझे भी उसकी पहली बीवियों की तरह निकाल दिया जाएगा. इसलिए मैं पहाड़ पर गयी और वहां एक मामूली नौजवान चरवाहे के साथ रात बिताई. उसके बाद ही खान के वारिस का जन्म हुआ.’

‘ओ ऊँचे नाम वाले खान,’ इस बातचीत के बाद हकीम ने कहा, ‘मैं जानता हूँ कि तुम्हारा बेटा कैसे जी सकता है? इसी घड़ी से उसका पालना ऐसे अलाव के पास रखवा देना चाहिए जैसे कि चरवाहे पहाड़ों में जलाते हैं. उसके पालने में भेड़ की खाल बिछाई जाए और उसे ऐसी खुराक दी जाए जैसी कि तुम्हारे चरवाहे खाते हैं.’

‘मगर… मगर वे तो भेड़ की मोटी दुम के लहसुन वाले खीनकाल खाते हैं. मेरा नन्हा-सा वारिस भला उन्हें कैसे खायेगा?’ गरीब आदमी मुड़ा और चल दिया.

‘बेटा तो यों भी मर जाएगा,’ खान ने सोचा और तश्तरी में खीनकाल लाने का हुक्म दिया. खान की बीवी अपने हाथों से उन्हें तैयार करने लगी. उसने उसी तरह खीनकाल तैयार किये जैसे पहाड़ों में बितायी गयी रात के पहले, जो उसके जीवन की सबसे प्यारी रात थी, नौजवान चरवाहे के लिए तैयार किये थे. उसने बेटे के सामने वैसे ही लकड़ी की तश्तरी रखी जैसे तब नौजवान चरवाहे के सामने रखी थी.

खीनकाल बड़े-बड़े पत्थरों जैसे बड़े और गोल-गोल थे. भेड़ों की उबली हुई मोटी दुमों से चर्बी चू रही थी. नजदीक ही गागर में पहाड़ी चश्मे का पानी रख दिया गया.

जैसे ही लहसुन और उबली चर्बी की गंध वारिस की नाक में पहुंची, उसने आँखें खोल दीं, उठकर बैठ गया और अचानक दोनों हाथों से सबसे बड़ा खीनकाल उठा लिया.

इसी क्षण से पिता की ताकत बेटे की रगों में दौड़ने लगी. वह भूखे बबर की तरह खीनकालों को हड़पने लगा. वह दिनों के बजाय घंटों में बढ़ने लगा और जल्द ही गठा हुआ खूबसूरत जवान बन गया. उसकी बीमारी का तो नाम-निशान ही बाकी न रहा.

फ़ोटो: मृगेश पाण्डे

लक्ष्मण सिह बिष्ट ‘बटरोही‘ हिन्दी के जाने-माने उपन्यासकार-कहानीकार हैं. कुमाऊँ विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष रह चुके बटरोही रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ के संस्थापक और भूतपूर्व निदेशक हैं. उनकी मुख्य कृतियों में ‘थोकदार किसी की नहीं सुनता’ ‘सड़क का भूगोल, ‘अनाथ मुहल्ले के ठुल दा’ और ‘महर ठाकुरों का गांव’ शामिल हैं. काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

2 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

5 days ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

1 week ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

1 week ago

पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश

पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…

1 week ago

‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक

पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…

2 weeks ago