Featured

सोलहवीं सदी में बागेश्वर गए थे गुरु नानकदेव जी

उत्तराखण्ड में सिख सम्प्रदाय का प्रसार -1

सिख मत के साथ उत्तराखंड का संपर्क इसके प्रवर्तक गुरु नानकदेव जी के समय में ही हो चुका था. ज्ञानी ज्ञानसिंह द्वारा लिखे गए ग्रन्थ ‘गुरु खालसा’ में वर्णित है – “अपनी बद्रीनाथ यात्रा के बाद गुरु नानक जी बागेश्वर गए थे. उनके अनुसार उस समय कुमाऊं में राजा कल्याणचंद का शासन चल रहा था. वह स्वयं गुरूजी के दर्शनों के लिए बागेश्वर गया था तथा उन्हें अल्मोड़ा लाकर उनका स्वागत किया गया था. गुरूजी द्वारा बागेश्वर में साधु-संतों और यात्रियों की सुविधा के लिए धर्मशाला बनवाये जाने की इच्छा प्रकट किये जाने पर उसने यहाँ इसका निर्माण कराया था. इस काल में गुरूजी तीन महीने तक वहीं रहे थे. कल्याणचंद के उत्तराधिकारियों – रूद्रचंद, लक्ष्मीचंद तथा बाजबहादुर चंद ने भी इस धर्मशाला की देखरेख तथा यात्रियों के भोजन-आवास आदि की सुविधा के लिए कई गाँव ‘गूंठ’ में दिए थे.”

कहा जाता है कि बागेश्वर में गुरु नानकदेव जी ने अपना डेरा वर्तमान पीपल साहब गुरुद्वारे के सामने सरयू के उस पार स्थित एक सूखे पीपल के नीचे डाला था, जो उनके प्रभाव से हरा-भरा हो गया था. यह वृक्ष अभी भी विद्यमान है. स्थानीय लोग इसे गुरु का पीपल के नाम से संबोधित करते हैं. इसके विषय में उनकी मान्यता है कि इसका फल खाने से तथा गुरूजी से संतति की प्रार्थना करने पर निःसंतान व्यक्ति को संतान-लाभ होता है.

गुरुदेव नानकदेव जी की उपर्युक्त बागेश्वर यात्रा के सन्दर्भ में उल्लेख किया जाना चाहिए कि इस यात्रा के तथ्यपरक होने पर भी इउस्में ऐतिहासिक विसंगति देखी जा सकती है. ज्ञात है कि गुरु नानकजी का जन्म 1469 में तथा स्वर्गवास 1539 में हुआ था. यह वह काल है जब अभी चंदों की राजधानी चम्पावत में ही थी और वहां पर भी मानिकचंद (1533-42) के पुत्र कल्याणचंद के अपने पिता की मृत्यु के बाद 1542 में ही गद्दी सम्हाली थी. राजधानी को अल्मोड़ा स्थानांतरित करने वाले राजा भीष्मचंद के दत्तक पुत्र कल्याणचंद का राज्याभिषेक भी 1560 में चम्पावत में ही हुआ था. इसके बाद ही संभवतः सन 1563-64 में राजधानी को अल्मोड़ा ले जाया गया था. ऐसी स्थिति में यह बात विसंगत लगती है कि 1539 में दिवंगत हो गए गुरु नानकदेव जी की कल्याणचंद से मुलाक़ात हुई हो और उन्हें अल्मोड़ा लाकर वहां उनका स्वागत किया गया हो.

इसमें कोई संदेह नहीं कि गुरु नानकदेव जी ने अपने काल में उत्तराखंड की यात्रा की थी. इसके प्रमाण के रूप में बागेश्वर, रीठासाहब और नानकमत्ता में उनके पदचिन्हों के अमिट स्मारक आज भी विद्यमान हैं.

(प्रो. डी. डी. शर्मा एवं प्रो. मनीषा शर्मा की पुस्तक उत्तराखंड का सामाजिक एवं साम्प्रदायिक इतिहास के आधार पर)    

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

  • ऐसे ही किताब से पढ.कर कुछ भी लिख दिया।
    कभी बागेश्वर गुरूद्वारे मे जा कर जानकारी लिजिए।
    वरना यहां के पत्रकारों से सहयोग लेकर सही जानकारी लिजिए।

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

3 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

3 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

4 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago