देवभूमि उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के धारचूला एवं मुनस्यारी तहसील क्षेत्र में रहने वाली जनजाति (मूलनिवासी) अपने क्षेत्र की अन्य जातियों द्वारा शौका नाम से जाने जाते हैं. माना जाता है कि जीवन में मनोविनोद के शौकीन होने के कारण इन्हें शौका कहा जाता है. उच्चारण में भिन्नता के कारण मुनस्यारी क्षेत्र में हौक या शौक कहा जाता है. सभी शौका मूल रूप से व्यापारी तथा पशुपालक समुदाय से संबंधित थे. 1962 से पूर्व भारत तिब्बत व्यापार इनका मूल व्यवसाय था, 1962 के पश्चात भारत का तिब्बत से व्यापार बंद हो जाने के कारण भारत सरकार के द्वारा 1967 में भोटिया नाम से आरक्षण प्रदान किया गया तथा अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया. यद्यपि पूरे उत्तराखंड के तिब्बत से लगे सीमांत क्षेत्र के नागरिकों को भोटिया उपनाम से आरक्षण प्रदान किया गया तथापि आज भी यह समुदाय अपने आप को भोटिया कहे जाने पर असहमत है. जैसा कि विभिन्न इतिहासकारों ने सीमांत निवासियों को भोटिया नाम दिया है यह उनकी ऐतिहासिक/भौगोलिक अनभिज्ञता को प्रदर्शित करता है क्योंकि भारत से लगे हुए तिब्बती क्षेत्र को भोट क्षेत्र के नाम से जाना जाता है एवं भोट क्षेत्र के निवासियों को भोटिया कहा जाता है, परंतु अंग्रेज अधिकारियों एवम भारतीय लेखकों की अनभिज्ञता के कारण सीमान्त क्षेत्र के निवासियों को भी भोटिया मान लिया गया. (Shauka community of Uttarakhand)
धारचूला के शौका स्वयं को रं कहते हैं, रं ल्वो (रं बोली) में जिसका अर्थ है बाँह अर्थात मेहनतकश. परंतु बाहरी जातियों द्वारा इन्हें भी शौका ही कहा जाता है, पुरुषों को शौका एवं स्त्रियों को शौक्यानी संबोधित किया जाता है.
रं शौकाओं की पहचान पारंपरिक पहनावे से किया जा सकता है पुरुषों का रंगा ब्यन्ठलो अर्थात पगड़ी एवं स्त्रियों का झुगु (झुगला) तथा च्युंग भाला .
रं लोगों का निवास मुख्यतः उच्च हिमालय क्षेत्र में रहा है परंतु शीत ऋतु में कुंचा (माइग्रेशन) घाटी वाले क्षेत्रों में धारचूला एवं उसके आसपास रहा है. रं जन का निवास तीन घाटियों में है ब्याँस, चौंदास एवं दारमा. ब्याँस घाटी को रं बोली में ब्यंखु, चौंदास को बंग्बा एवं दारमा को दर्मा कहा जाता है. ब्याँस घाटी में रहने वालों को ब्यंखुपा (ब्याँसी), चौंदास घाटी में रहने वालों को बंग्बानी, (चौंदस्या) तथा दारमा में रहने वालों को दर्मानी कहा जाता है .
इन तीन घाटियों की पहचान आप बहुत आसानी से कर सकते हैं. धारचूला से 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तवाघाट पहुंचकर आप बाँयी ओर धौली नदी के किनारे-किनारे चलेंगे तो दारमा घाटी पहुंचेंगे, तवाघाट से दाएं और काली नदी के किनारे-किनारे चलने पर आप ब्याँस घाटी पहुंचेंगे तथा इन दोनों घाटियों के मध्य स्थित है चौंदास घाटी.
ब्याँस घाटी के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल या दर्शनीय स्थल है — ॐ ओम पर्वत, आदि कैलाश, काला पानी एवं छियालेख आदि.
दारमा घाटी के प्रसिद्ध पर्यटन और दर्शनीय स्थल — पंचाचूली, बीदंग ग्लेशियर, शिनला पास, शिव महादेव गुफा और ब्याक्सी ग्वार (बुग्याल).
चौंदास घाटी के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल — नारायण आश्रम, करं दं बुग्याल, तिलथिन धार, ती स्यं कं मैदान एवं नारायण आश्रम से हिमालय का सुनहरा सूर्यास्त का दृश्य.
2. बुङ्गलिंग -मिश्रित
3. सेला – सेलाल
4. चल- चलाल
5. नङलिन – नंगन्याल
6. बालिंग- बनग्याल
7. दुग्तु -दुग्ताल
8. दंग्तो (दाँतु) – दताल
9. बुंगरु (बौन) – बौनाल
10. पंगसौंग (फिलम) – फिरमाल
11. गो – ग्वाल
12. ढाकर – ढकरियाल
13. तीदंग – तितियाल
14. चचम (मार्छा) – मार्छाल
15. सीपू – सीपाल
2. गर्ब्यांग – गर्ब्याल
3. नपलच्यु- नपलच्याल
4. गुंजी – गुंज्याल
5. रोगकोंग – रौंकली
6. नाबी – नबियाल
7. कुटी – कुटियाल
1.छांगरु- छंगरियाल (बोहरा, ऐतवाल, लाला)
2. तिंकर – तिंकरी, बुड़ाथोकी
3. रपं (राप्ला) – बुडाथोकी आदि
4. दुमलिन – मिश्रित
2. रौंतो/बैकु- रौतेला, गुंज्याल
3. रिमझिम- रिमझियाल, नगन्याल, होंतियाल
4. हिमखोला (मोंगगोंङ) – गर्खाल, रावत, सौनाल
5. सोसा ( सौसौ) – ह्याँकी, गर्खाल, बुडाथोकी,कुँवर
6. सिर्दांग (स्यिरदंग) – खुन्नू,भौंत, रौतेला, पतियाल, ह्याँकी
7. सिर्खा (स्यिर्खा ) – (सिर्खाल) खैर, ह्याँकी, ततवाल,बुदियाल,सिर्खाल
8. रूंग – (रुँवाल) ह्यांकी, पतियाल, पाह्यर, जोहारी (च्यनपा)
9. जयकोट (मरमाल सोंग) – मिश्रित
10. पस्ती/नियांग (सोसा) – मिश्रित
11. सिमखोला/जिप्ती- मिश्रित
मुनस्यारी के शौका मुनस्यारी क्षेत्र में तीन प्रकार के शौकाओं का निवास है,
3. रं शौका (दर्मानी) (जो धारचूला के रं शौकाओं की ही शाखा है )
जोहारी शौका मूल रूप से जोहार क्षेत्र के निवासी थे जो रिलकोट से मिलम तक फैला हुआ है यह समुदाय मुख्यतया व्यापारी समुदाय था,जो तिब्बत व्यापार में संलग्न था.
पांगती, धर्मशक्तू, टोलिया, मर्तोलिया, रिलकोटिया, बुर्फाल, रावत, लसपाल आदि जोहारी शौका हैं.
धारचूला के रं शौका जोहार को च्यनम एवम जोहारी शौकाओं को च्यनपा कह कर सम्बोधित करते हैं.
बरपटिया अर्थात बारह पाट, माना जाता है कि बरपटिया शौकाओं का मुनस्यारी के आसपास बारह गाँवों में निवास था, तेरहवाँ हरकोटिया को माना जाता है, कहावत भी है — बारह बरपटिया तेरवाँ हरकोटिया (हरकोटिया को बाद में बरपटिया समुदाय में सम्मिलित किया गया माना जाता है.)
मुनस्यारी जो पूर्व में तिकसैन कहा जाता था, तिकसैन के मूल निवासी बरपटियाओं को ही माना जाता है,तिकसैन के सबसे पुराने निवासी /ज्येष्ठ होने के कारण बरपटिया समुदाय को जेठरा (ज्येष्ठ) भी कहा जाता है, बरपटिया समुदाय मुख्य रूप से पशुपालक था जो अपने बकरियों भेड़ों एवं घोड़े,खच्चरों के साथ अपनी सम्पन्नता के लिए प्रसिद्ध थे. बरपटिया समुदाय वर्तमान समय में पापड़ा, बर्निया गाँव, रिंगू, जोशा, चुलकोट, बोथी, तोमिक, गोल्फा आदि स्थानों पर निवास करते हैं. पापड़ा, बोथ्याल, तोमक्याल, रिंगवाल, जोशाल, पछाईं, चुलकोटिया, बर्निया आदि बरपटिया समुदाय के हैं.
मुनस्यारी तहसील के अंतर्गत रालम/पातो में निवास करने वाले रं मुख्यरूप से दारमा के निवासी हैं जो दारमा से मुनस्यारी गए हैं, स्थानीय अन्य वर्गों द्वारा इन्हें दरम्या शौका के रूप में जाना जाता है. वर्तमान समय मे ये मुनस्यारी, मदकोट, बरम तक निवास करने लगे हैं.
बोलचाल में दर्मा ल्वो का प्रयोग करते हैं परन्तु स्थानीय बोलियों का लहजा समाविष्ट हो जाने के कारण दर्मा ल्वो का अपभ्रंश हो गया है. इनके पारंपरिक संस्कार मुख्यरूप से रं ही है..
दर्मा ल्वो के शब्द कोष से लगभग विलुप्त हो चुके कुछ शब्द आप यहाँ जाकर सुन सकते हैं..
यथा — च्युवा (देवर), हयं (छोटा डेक) आदि.
यहाँ रं लोगों में — दरियाल, कर्तवाल, ग्वाल, ढकरियाल, सेलाल, बौनाल, खुन्नू, नबियाल आदि हैं. (Shauka community of Uttarakhand)
इसे भी पढ़ें : रं समाज का श्यंठंग त्यौहार एवं सभा
पिथौरागढ़ के ग्राम-सोसा, चौंदास के मूल निवासी बलवन्त सिंह ह्याँकी ‘बलो’ इलाहाबाद विश्ववविद्यालय से राजनीतिशास्त्र, इतिहास विषयों में स्नातकोत्तर हैं. बी. एड. करने के बाद सामाजिक विज्ञान के शिक्षक के रूप में सेवा दे रहे बलवन्त लेखन, पर्यटन, खेल, पथारोहण, छायाचित्रकारी में विशेष रुचि रखते हैं.
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
मौत हमारे आस-पास मंडरा रही थी. वह किसी को भी दबोच सकती थी. यहां आज…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…