कुमाऊं के पिथौरागढ़, बागेश्वर जिलों में और चम्पावत जिले के कुछ क्षेत्रों में सातूँ-आठूँ का पर्व मनाया जाता है. यह पर्व भादो (भाद्रपद) महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. अगर चन्द्रमास भादो का शुक्लपक्ष सौरमास के अश्विन महीने में पड़ रहा हो तो तब सातूँ-आठूँ का आठूँ कृष्ण जमाष्टमी के साथ मनाया जाता है.
(Saton Aatho 2023 Uttarakhand Festivals)
उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड में सौरपक्षीय पंचांग प्रचलन में है. यहॉ सारे पर्व सौरपक्ष के आधार पर मनाए जाते हैं. जिसके लिए पंचमी के दिन से इसकी शुरुआत हो जाती है. जिसे बिरुड़ पंचमी कहते हैं. आज बिरुड़ पंचमी है. आज तांबे की छोटी पतीली में पांच या सात अनाज शुद्ध (साफ) पानी में भिगाने के लिए रख दिए जायेंगे. उसके लिए पहले तांबे की पतीली को अच्छी तरह से धोने के बाद उसके चारों और पांच-सात या नौ जगहों पर गाय के गोबर के साथ हरे दूब की स्थापना की जाती है और उसे पिठयां-अक्षत भी लगाया जाता है. पतीली के चारों ओर कलावा भी तीन या पांच बार घुमाकर बांधा जाता है.
जो पांच या सात अन्न बिरुड़ के लिए भिगाए जाते हैं, उनमें चना, गेहूँ, जौ, मटर, सफेद तिल, मॉस (उड़द), पीली सरसों आदि शामिल किए जाते हैं. इसके अलावा एक छोटे से सूती कपड़े में फल, बिरुड़ के लिए भिगाए गए अन्न, एक सिक्का और दूब का एक गुच्छा बांध लिया जाता है. इसे भी बिरुड़ वाले बर्तन में ही रख दिया जाता है. उसके बाद इसे घर के अन्दर स्थापित द्याप्तों (मन्दिर) की जगह पर रख दिया जाता है.
(Saton Aatho 2023 Uttarakhand Festivals)
सप्तमी (सातूँ) के दिन भिगाए बिरुड़ों को धारे, नौले में सामुहिक तौर पर शुद्ध जल से धोया जाता है. सूती कपड़े में अलग से पोटली में बांधकर भिगाए बिरुड़ ऑठों के दिन गौरा- महेश को चढ़ाए जाते हैं. पतीली में भिगाए गए बिरूड़ों को आठूँ की शाम को या फिर नौवें दिन सवेरे भूनकर प्रसाद के तौर पर ग्रहण किया जाता है. बिरूड़ों का प्रसाद आस-पड़ोस व नाते-रिश्तेदारों में भी बांटा जाता है.
सातूँ-आठूँ का पर्व कैलाश से नाराज होकर अपने मायके आई गौरा (पार्वती) को वापस ससुराल ले जाने के लिए आए महेश (शिव) की आवभगत का पर्व है. जिसमें धान, मक्का और दूसरी हरी घास से गौरा-महेश की मूर्तियों (पुतलों) का निर्माण किया जाता है. दोनों की मूर्तियों को दूल्हन व दूल्हे की तरह की सजाया जाता है. आठूँ के दिन गौरा की महेश के साथ विदाई की जाती है. यह बिल्कुल उसी तरह होती है जैसे शादी के दिन बेटी की विदाई की जाती है. गौरा की महेश के साथ विदाई के पल बहुत ही भावुक कर देने वाले होते हैं.
अधिकांश महिलाएँ गौरा की विदाई के समय भावुक होकर रोने लगती हैं. विदाई के साथ ही महेश से गौरा की अच्छी तरह से देखभाल करने और उसे किसी तरह का कष्ट न देने के गीत भी गाए जाते हैं. साथ ही गौरा को मायके की ओर से यह विश्वास भी दिलाया जाता है कि ससुराल (कैलाश) में किसी भी तरह की परेशानी होने पर वह बिना झिझके अपने मायके आ सकती हैं. विवाह हो जाने से उसका मायके से नाता नहीं टूटा है बल्कि और मजबूत हो गया है. जहां-जहां सातूँ-आठूँ का पर्व मनाया जाता है वहां के लिए महेश (शिव) अराध्य नहीं बल्कि जवाईं हैं और गौरा (पार्वती) एक बेटी.
(Saton Aatho 2023 Uttarakhand Festivals)
जगमोहन रौतेला
जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं.
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