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विक्की कि विकसवा कि विक्किया

विकसवा बहुत नाराज़ था. नाराज़ होने की बात ही ठहरी. बिचारा कब से इधर-उधर चक्कर काट रहा था. रात बिताने की जगह नहीं थी. सर छुपाने की जगह नहीं थी. उधर से जब चला था तो उसको नाम पता सब दिया गया था. अब इधर जब उस पते पर पहुंचा तो क्या देखता है कि वहां कोई और रह रहा है. हद्द है. वापस लौटने वाला था. निकल भी गया था पर बस स्टॉप पर अटक गया. वापसी की उन्नीस नम्बर वाली बस में अभी देर है. तब तक चाय चू-पी लें सोचके सुद्ध बैस्नो ढाबे में घुस गया.

ढाबे का मालिक योगेश ईश्वरलाल पटेल पहचान गया विक्किया को. कुशल छेम के बाद आने का प्रयोजन जान लिया. बहुत धर्म-शूर था. धरम को पाठ पढ़ाने विक्की को साथ लेकर खिलोधर के घर पहुंच गया.

घण्टा दबाया. अब घण्टी से काम नहीं चलता, शोर बहुत है. अचकन के नीचे धोती पहने तैयार खिलोधर निकल आए. इन्तिज़ार में बैठे हों जैसे. एकदम पृथ्वी राज कपूर लग रहे थे. इससे पहले कि कहीं ‘पर्दा नशीं को बे-पर्दा न कर दूँ तो, तो, तो’ न कर बैठें वाई आई पटेल मुस्कियाए. गोविंद दियो बताय मूड में दोतरफा इशारे में बोले ‘ई लो यही हैं जिनको ढूंढ रहे हो. हम बोले थे न हमही लाएंगे.’

खिलोधर खिल उठे विकास को देखकर. ‘दुलहिन गावहु मंगलचार’ गाने ही वाले थे कि विकसवा बोल उठा ‘ठीक है इनका चेहरा मिल रहा है लेकिन ई ऊ ही हैं ई कैसे मान लें. नेम प्लेट तो देखो अलग नाम लिखा है.’

बहुत कोशिश की गई समझाने की. पता बिल्कुल सही है. खिलोधर पांड़े ही के डी पांडे है. माना ही नहीं. कहता रहा सरकारी मामला है. एकदम कागज़ी. पक्का होना चाहिए. नेम प्लेट पर कोई और नाम है. मिलान करना पड़ता है. जो नाम हमारे सम्मन में लिखा है वही उधर भी लिखा होना चाहिए.

कन्विंस किया जाने लगा … अरे थोड़ा थुलथुल हो गए हैं गंजे हो गए हैं उमर भी हो गई है लेकिन तबियत अभी भी वैसेई है.

खिलोधर भी समझ गए. एक्टिव हो गए. ज़रा सा मुंह उठाया और ये कविता सरकाई-

भग रहा क्षितिज के अंचल में
मुख आवृत कर तुमको निहार
तुम इड़े उषा- सी आज यहाँ
आयी हो बन कितनी उदार

ये सोचकर कि ऐक्शन स्पीक्स लाउडर दैन वर्ड्स झट से हीरो जैसे नाच के दिखाऊँ मुद्रा में अपना सिग्नेचर स्टेप दिखाने को आए.

विक्की ने एक उंगली से रोक दिया. फिर अपने झोले से एक किताब निकाली जिसके चौदहवें पन्ने के पांचवे नियम की तीसरी लाइन पढ़कर सुनाई जिसमें सारे परन्तुक के बाद भी एक ही सुर निकल रहा था-

ये दिल दीवाना है
दिल तो दीवाना है
दीवाना दिल है ये
दिल दी…वा…ना

हाथ में एड्रेस वाली चिट और कंधे पर लटके झोले में चिज्जी लिए विकास वापस लौट गया.

वाई आई पटेल ने फिर रास्ता निकाला. नेम प्लेट ही तो है कौन दिल्ली को दौलताबाद कर रहे हैं … बदल डालो तत्काल!

मान गए खिलोधर. मानने के अलावा चारा क्या था? बाज़ार से मंगवाने के लिए सामान लिखवा रहे हैं-

  1. दो इंची कील सौ ग्राम
  2. एक पटरा
  3. ढाई सौ ग्राम नारंगी पेंट
  4. सफेदा
  5. नरकट
  6. चार हाथ की सीढ़ी…

और बुझे मन से गा रहे हैं-

इस क़दर था खटमलों का चारपाई में हुजूम
वस्ल का दिल से मिरे अरमान रुख़्सत हो गया!!

डिस्क्लेमर- ये लेखक के निजी विचार हैं.

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इंतज़ार : लघु क्षोभ कथा

 

अमित श्रीवास्तव

उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं. 6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी दो किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता) और पहला दखल (संस्मरण).

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