पर्यावरण

सानन थैं पधान हो कयो, रात्ति में बांगो

हमारे अंचल में एक किस्सा प्रचलित है, कहा जाता है कि किसी जमाने में, जब पेड़-पौधे, पंछी-जानवर इंसानों की तरह बात करते थे. उस जमाने में जानवरों ने अपना प्रधान शेर को बनाया तो पंछियों ने चील को लेकिन पेड़ों के बीच यह फैसला नहीं हो पा रहा था की किसे अपना प्रधान बनायें.
(Saanan Ka Ped Vinod Upreti)

चीड़ सीधा और उपयोगी तो था लेकिन न उसके फूल आते और न उसके जंगल में नमी दिखती. बांज था तो बहुत शानदार पेड़ लेकिन उसकी लकड़ी इतनी गठीली और रेशेदार कि उससे कुछ बनाना बहुत मुश्किल होता. ऐसे ही फल्यांट, काफल, कटूंज, द्यार सबकी दावेदारी को बहुत इमानदारी से परखा गया.

बहुत बहस के बाद एक ही ऐसा पेड़ मिला जो पधान बनने के सबसे अधिक काबिल दिखा, सानड़ या सानन. उसकी लकड़ी से बनते थे तमाम बर्तन और औजार. ठेकी, पाली, बिंडा, हड़पी, मै-समैन इत्यादि. गोरी गंगा के छोरों में घने जंगलों के बीच रहने वाले रौत (बनराजी) इस पेड़ की लकड़ी को तरह-तरह के बर्तनों में बदलने में माहिर थे, आज भी कुछ कलाकार इस हुनर को संजोये हुए हैं. इस लकड़ी का एक छोटा सा कुंदा भी बेकार नहीं जाता है और उसका कुछ न कुछ राजी अपनी पानी से चलने वाली खराद में बना लेते.

एक तरह से किसी समय में यह पेड़ राजी समाज का अभिन्न हिस्सा था. इन बर्तनों के बदले वह लोग घनधुरा के जंगलों की सीमा से लगे गावों में जाकर अनाज और खाने का सामान लाते थे. इस उपयोगी पेड़ में वसंत में गुलाबी फूलों की बौछार आती है और जब यह खिलता है तो लगता है बस हर जगह यही है बाकी कुछ भी नहीं. इसके फूलों से हजारों मौन, झिमौड़ आदि कीट भोजन के लिए मकरंद जमा करते हैं. इसकी कच्ची लकड़ी में घाव हो जाय तो खून जैसा सुर्ख रंग निकल आता है. तो ऐसे गज़ब के पेड़ को पधान बनाना वाकई अच्छा ही होता.
(Saanan Ka Ped Vinod Upreti)

यही सोचकर पेड़ों के समाज ने बहुत गहन मंथन कर सानन के पेड़ को पधान बना दिया. एक ऐसा पेड़ जो बिलकुल सीधा होता है, जिसकी लकड़ी के तमाम तरह के औजार, दार-संगाड़ और बर्तन बनते, जिसके फूलों में हजारों कीट पतंगे और पक्षी भोजन पाते उसे भला पधान बनाना क्या बुरा हो सकता था. जब फैसला हो गया तो पेड़ों के सबसे सयाने सदस्य पीपल के सानन को पधान बनाने का निर्णय सुनाया और सानन से कहा कि अब जब पधान बन गए हो तो अपना सीधापन और उपयोगिता अधिक बढ़ा लेना.

सानन की लकड़ी के बने ठेके में तुरु चूख के फल, मिलम ग्लेशियर से सटे मिलम गाँव में. फोटो : विनोद उप्रेती

पर हुआ क्या कि सानन का पेड़ भी उसी बीमारी से ग्रसित था जिससे आज हमारे नेता गण. हम किसी को उसके सीधेपन, काबिलियत और उपयोगिता के आधार पर पधान तो बना देते हैं लेकिन पधान बनते ही उसके रंग बदल जाते हैं. सारी काबिलियत, सारा सीधापन सत्ता पाते ही टेढ़ेपन और अहंकार में बदल जाता है.

सानन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. जिस दिन उसे पधान बनाया गया उस रात वह ख़ुशी और अहंकार के मारे ऐसा टेड़ा हुआ कि तब से सानन के पेड़ सीधे होते ही नहीं. आज भी सानन के पेड़ों से बर्तन बनते हैं लेकिन वनराजी कहते हैं की अगर इसका पेड़ सीधा मिल जाता तो इससे न जाने क्या-क्या बनता और इसकी कीमत कितने गुना बढ़ जाती. लेकिन सानन सीधा न हुआ और लोक में एक उक्ति चल पड़ी- “सानन थैं पधान हो कयो, रात्ति में बांगो” अर्थात सानन को पधान बनने को क्या कहा, रात भर में ही टेड़ा हो गया.

अगली बार एटीएम की लाइन में लगें या पेट्रोल और सिलेंडर के ऊंचे दाम चुकाएं तो सानन को याद करें जिसको बड़ी उम्मीदों से पधान बनाया था पर अहा वो तो बांगी गया.
(Saanan Ka Ped Vinod Upreti)

विनोद उप्रेती

विनोद उप्रेती

पिथौरागढ़ में रहने वाले विनोद उप्रेती शिक्षा के पेशे से जुड़े हैं. फोटोग्राफी का शौक रखने वाले विनोद ने उच्च हिमालयी क्षेत्रों की अनेक यात्राएं की हैं और उनका गद्य बहुत सुन्दर है. विनोद को जानने वाले उनके आला दर्जे के सेन्स ऑफ़ ह्यूमर से वाकिफ हैं.

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

माँ का सिलबट्टे से प्रेम

स्त्री अपने घर के वृत्त में ही परिवर्तन के चाक पर घूमती रहती है. वह…

23 hours ago

‘राजुला मालूशाही’ ख्वाबों में बनी एक प्रेम कहानी

कोक स्टूडियो में, कमला देवी, नेहा कक्कड़ और नितेश बिष्ट (हुड़का) की बंदगी में कुमाऊं…

3 days ago

भूत की चुटिया हाथ

लोगों के नौनिहाल स्कूल पढ़ने जाते और गब्दू गुएरों (ग्वालों) के साथ गुच्छी खेलने सामने…

4 days ago

यूट्यूब में ट्रेंड हो रहा है कुमाऊनी गाना

यूट्यूब के ट्रेंडिंग चार्ट में एक गीत ट्रेंड हो रहा है सोनचड़ी. बागेश्वर की कमला…

4 days ago

पहाड़ों में मत्स्य आखेट

गर्मियों का सीजन शुरू होते ही पहाड़ के गाड़-गधेरों में मछुआरें अक्सर दिखने शुरू हो…

5 days ago

छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : जिंदगानी के सफर में हम भी तेरे हमसफ़र हैं

पिछली कड़ी : छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी हम…

5 days ago