हिम्मत के साथ अपनी कमर को कसकर बांधो, कल फिर उजाला होगा और रात कोने में बैठ जायेगी. यह भावानुवाद पहाड़ के मयाले गायक हीरासिंह राणा के एक गीत की पहली दो पंक्तियां का है. कभी हार न मानने की बात को वह अपने गीत में वह आगे कहते हैं –
(Remembering Heera Singh Rana)
ऊं निछ आदिम कि, जो हिम्मत कै हारौ.
हाय मेरी तकदीर कनै, खोर आपण मारौ.
मेहनतै कि जोतलै जौ, आलसो अन्यारौ.
के निबणीनि बाता, धरिबे हातम हाता.
इसका अर्थ है कि आदमी वह नहीं जो हिम्मत हार कर हाय रे मेरी तक़दीर कह कर सिर पीट ले. हाथ में हाथ धरने से कुछ नहीं मिलता आलस का अँधेरा तो मेहनत से ही दूर होता है. उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान हीरा सिंह राणा के गीत ‘लस्का कमर बांधा’ ने राज्य आन्दोलनकारियों में जैसे एक नई जान फूंक दी.
(Remembering Heera Singh Rana)
मनीला के डढूली गांव में 16 सितंबर 1942 को मोहन सिंह और नारंगी देवी के घर में जन्मे हीरा सिंह राणा ने अपना पूरा जीवन उत्तराखंड की लोक संस्कृति को समर्पित किया. हीरा सिंह राणा अपने गीतों में महज श्रृंगार नहीं गढ़ते वह गढ़ते हैं बंजर पड़े पहाड़ की पीड़ा. उत्तराखंड राज्य बनने के बाद पहाड़ के लोगों के हाथ लगी निराशा उनके गीतों में भी बखूबी देखने को मिलती है. मसलन वह कहते हैं –
कैक तरक्की कैक विकास
हर आँखा में आंस ही आंस
जे.ई कैजां बिल के पास
ए.ई मारूँ पैसों गास
अटैच्यू में भौरो पहाड़…
‘त्यौर पहाड़, म्यौर पहाड़’ गीत में तो जैसे हीरा सिंह राणा ने राज्य के लोगों की पीड़ा को आईने में उतार दिया हो. अपने गीत में वह कहते हैं बुजुर्गों के जोड़े पहाड़ को राजनीति ने तोडा है, ठेकेदारों न फोड़ा है और नौजवानों ने छोड़ा है. हीरा सिंह राणा के जन्मदिन पर सुनिये उनकी आवाज में यह गीत –
(Remembering Heera Singh Rana)
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