Featured

मुनस्यारी का लाल बुरांश

कुमाऊंनी में जब भावना, कमला, चंदा, हिमा, बब्ली जैसी नायिकाओं के नाम वाले गीतों का वर्चस्व है उस समय भल मेरो मुनस्यार गीत के शब्द आपको एक नई उम्मीद देते हैं. जब कुमाऊंनी में गीत के नाम पर जीजा साली की बेमतलब की छेड़-छाड़ को फूहड़ हास्य की चासनी में परोस कर पेश किया जाता है. ऐसे में जब लाल बुरांश आता है तो उतना ही खिलता है जितना की जंगल में बुरांश का फूल. पंजाबी ढोल के साथ जब पुराने गीतों की आहूति दी जाती है तब यह लाल बुरांश का ठंडो पानी नयी ताज़गी देता है. भल मेरो मुनस्यार और लाल बुरांश के इस संगीत को रचने वाला नाम है गणेश मर्तोलिया.

भारतीय स्टेट बैंक में क्लर्क के पद पर काम करने वाला यह लड़का पिछले कई सालों से केवल इस कारण से अपने प्रमोशन की परीक्षा में नहीं बैठ रहा है क्योंकि उसे पहाड़ों के करीब रहना है. पहाड़ों से उसका प्यार उसके गीतों में दिखता है. उसके हर गीत में पहाड़ की सुन्दरता दिखती है.

गणेश मुनस्यारी के धापा गांव से ताल्लुक रखते हैं. पांचवी तक गणेश ने अपनी पढ़ाई धापा गांव के प्राइमरी पाठशाला से पूरी की. बचपन की अपनी याद के बारे में गणेश कहते हैं कि पहली से पांचवी तक मैं पढ़ने में अच्छा था. धापा गांव की अपनी एक मुख्य विशेषता यह है कि गांव की सभ्यता और संस्कृति की जड़ें बहुत गहरी हैं. इस क्षेत्र के लोगों ने इसे आज भी सहेज कर रखा है. जैसे मेरे बचपन में रामलीला का आयोजन एक बड़े से पत्थर को मंच के रूप में सजा कर होता था. इस मंच के चारों ओर मसाल वगैरह से प्रकाश तक किया जाता. बड़े-बड़े शहरों में अब जाकर रामलीला के महिला पात्र महिलाओं द्वारा किये जाते हैं धापा गांव में तब भी महिला पात्र महिलाओं द्वारा ही खेले जाते थे. इसके अतिरिक्त एक पूरी ऐसी रामलीला होती थी जिसमें केवल महिला ही होती थी. इन सभी स्थानीय लोक उत्सवों ने मेरे भीतर संगीत का बीज वहीं बो दिया था.

गणेश मर्तोलिया

गणेश ने छठी में दाखिला मुनस्यारी पब्लिक स्कूल में लिया. धापा गांव से मुनस्यारी आने की वजह के बारे में गणेश बताते हैं कि मेरे पिता ग्रीफ में छोटी सी नौकरी करते थे. बारह सौ रूपया उनकी मासिक आय थी. आगे की पढ़ाई के लिये मुझे मुनस्यारी भेजना भी जरुरी था. बारह सौ रुपये की मासिक आय के साथ मुझे मुनस्यारी में रखना और पब्लिक स्कूल भेजना बिलकुल भी संभव नहीं था. ऐसे में हमारी मदद मेरी दादी की बहन के परिवार ने की. मैं उन्हीं के यहां मुनस्यारी में रहा. मुनस्यारी के पब्लिक स्कूल में गांव से पढ़ने के कारण मेरे लिये यह एकदम अलग माहौल था. एक बच्चे जिसे अब तक ढंग से अंग्रेजी की वर्णमाला का पूरा ज्ञान नहीं था उसके लिये अंग्रेजी में पाठ पढना कितना कठिन हुआ होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. संगीत से मेरे पहले परिचय के बारे में एक बेहद दिलचस्प वाकिया है.

मुनस्यारी मैं दादी की बहन के साथ जब रहता था तो वहां आने के बाद में स्कूल से 3.30 बजे घर पहुंचता. फिर कुछ मिनटों तक पढ़ाई का स्वांग करता और क्रिकेट खेलने दौड़ जाता. अंधेरा होने तक मैं शाम छः-साढ़े छः बजे तक लौटता. दादी ने देखा कि मैं रोज ही इस तरीके से कर रहा हूं और इससे मेरी पढ़ाई को बहुत नुकसान हो रहा है. दादी ने मेरी पढ़ाई में हो रहे इस नुकसान को खत्म करने का एक उपाय निकाल लिया. दादी ने शाम होते ही मुर्गियां खोलना शुरू कर दिया. जैसे ही मैं खेलने को तैयार हूँ, दादी मुझे मुर्गियां संभालने लगा दे. फिर मेरा यह रोज का काम हो गया. मुर्गियों के साथ मुझे गुनगुनाते मेरी दादी और बुआ ने सुन लिया. उन दिनों जब मेरे चाचा अपने कॉलेज की छुट्टियों में घर आते तो दादी और बुआ को अपने गीत सुनाते. दादी चाचा को कहती कि तुझसे मीठा तो गणेश गाता है. फिर चाचा ने मुझसे गाने को कहा शुरुआत में तो मैं काफ़ी झेंपता था लेकिन कुछ दिनों में चाचा और उनके दोस्तों के बीच खुलकर अपने लोकगीत गाने लगा. बाद में मेरे गाने की बात पड़ोस में और पड़ोस से फिर स्कूल में होने लगी. यहीं से मेरा संगीत का सफ़र शुरू हो गया.

आठवीं के बाद गणेश राजीव गांधी नवोदय गंगोलीहाट आ गये. कच्ची उम्र में घर से इतना दूर नवोदय में गणेश का मन लगा नहीं. इस क्रम में उन्होंने नवोदय से भागने तक की कोशिश की जो कामयाब न हो सकी. नवोदय की व्यवस्था के विषय पर गणेश बताते हैं कि राजीव गांधी नवोदय स्कूल राज्य सरकार के अंदर आते हैं जिसकी हालत कुछ ख़ास नहीं रहती है. क्योंकि यह सीधे जिलाधिकारी के अंतर्गत रहते हैं इसलिये स्कूल के हालात इस पर भी निर्भर करते हैं कि जिलाधिकारी किस मिज़ाज का है. मुझे नहीं लगता कि हमारे समय में स्कूल के हाल बहुत खराब थे लेकिन मैं अच्छा भी बिलकुल नहीं बता सकता. लेकिन नवोदय मेरे जैसे आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के लिये बहुत जरुरी है. यह आपको बेहतर शिक्षा देता है और मानसिक रूप से भी मजबूत बनाता है.

बारहवीं के बाद गणेश लखनऊ चले गये. वहीं से गणेश ने ग्रेजुएशन पूरा किया. इस बीच संगीत की ओर उसका लगाव लगातार बढ़ने लगा. गणेश घर से जितना दूर जाता गया उसके दिल में उतना ही घर बसता चला गया. लखनऊ में इंग्लिश लिटरेचर से ग्रेजुएशन कर रहे गणेश को कॉलेज में भी अच्छे लोगों का साथ मिला. कॉलेज के दौरान उन्होंने कई गीत भी लिखे. कम उम्र में गणेश के गीतों की गंभीरता को देखकर घर वालों को एक डर सा भी लगा कि लड़का कहीं भटक तो नहीं रहा. घंटों लम्बे रास्तों पर अकेले निकल जाने वाली गणेश की आदत से घर वालों को उसकी फ़िक्र भी होने लगी. लेकिन अपनी धुन का पक्का गणेश इस दौरान अपने अंदर सहेजे हुये पहाड़ को अपनी कलम से कागजों पर उतारता गया. भल मेरो मुन्सयारो गीत भी गणेश ने अपने कालेज के दिनों में ही लिखा है.

संगीत और करियर के दोराहे पर 2012 में गणेश ने भारतीय स्टेट बैंक में क्लर्क का पद लिया. संगीत में करियर की शुरुआत के विषय में गणेश बताते हैं कि मुझे पहला बड़ा मंच 2013 में हल्द्वानी में हुये जोहार महोत्सव में मिला. जोहार महोत्सव में ही मैंने पहली बार भल मेरो मुनस्यार गीत गाया. मुझे यहां सभी ने सराहा. इस दौरान मुझे नरेंद्र टोलिया जी मिले उन्होंने मुझे बहुत सराहा और मेरी मुलाकात उत्तराखण्ड के लोकगायक प्रहलाद दा से भी कराई. इसी महोत्सव में मेरी मुलाकात पप्पू कार्की से भी हुई. उन्होंने भी मुझे बहुत सराहा. इसके बाद एक लम्बे समय तक मैं प्रहलाद दा के पास जाता रहा. प्रहलाद दा से मुझे बहुत कुछ सीखने को भी मिला. मेरा पहला गाना भल मेरो मुनस्यार, नरेंद्र टोलिया जी के चाँदनी इंटरप्राइजेज की ओर से ही रिलीज हुआ. भल मेरो मुनस्यार में मेरी आवाज़ को लोगों ने बहुत पसंद किया. चाँदनी इंटरप्राइजेज के साथ ही हमारी कुलदेवी माँ नंदा देवी को समर्पित मेरा एक भजन भी आया.

दिसम्बर 2017 में गणेश ने अपना यूट्यूब चैनल म्यूजिक ऑफ़ माउंटेन बनाया. म्यूजिक ऑफ़ माउन्टेन का पहला गीत लाल बुरांश लोगों ने बहुत पसंद किया. पहाड़ की प्रकृति को समेटे यह गीत इस साल कुमाऊं का एक वायरल गीत है. जिसे लाखों की संख्या में लोगों ने यूट्यूब पर पसंद किया.

बोल के अलावा गणेश के इस गीत की सबसे ख़ास बात गणेश की आवाज़ है. वर्तमान कुमाऊनी गीतों के बीच एक शुद्ध पहाड़ी आवाज में इस युवा ने पहली बार एक ऐसा गीत पेश जिसमें प्रेम था लेकिन फूहड़ता नहीं. लम्बे समय बाद कुमाऊनी में एक ऐसा गीत देखने को मिला है जिस पर आप हंसते नहीं हैं बल्कि मुस्कुराहट आपके होठों पर ख़ुद-ब-ख़ुद आ जाती है.

अपनी धरती और अपने लोक से अथाह लगाव रखने वाले इस युवा की आवाज़ सुनिये.

काफल ट्री की ओर से गणेश मर्तोलिया को उनके उज्ज्वल भविष्य के लिये शुभकामनाएं.

काफल ट्री डेस्क

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

20 hours ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

7 days ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago