कॉलम

रेप कल्चर

पिछ्ले कुछ सालों में दुनिया भर में बलात्कार की घटनाओं में भयानक रुप से वृद्धि हुयी है अगर आँकड़ों की मानें तो स्वपन देश अमेरिका में प्रत्येक पाँच मिनट में या तो एक यौन हिंसा घटती है या यौन हिंसा की कोशिश की जाती है. जिस रेप-कल्चर को लगातार हमारे समाज में बढ़ावा मिल रहा है उसे स्त्रीवादी लेखकों की दिमागी उपज करार कर सिरे से ही नकार दिया गया है. यह लेख आईना लेकर यह दिखाने भर का प्रयास है कि कैसे रेप कल्चर अपनी जड़ें मजबूत कर चुका है.

 

शुरुआत इस बात से कि आखिर यह ‘रेप कल्चर’ किस उड़ती चिड़िया का नाम है. किसी बलात्कार पीड़ित को उसके कपड़े, बलात्कार के समय, उसके रहन-सहन या किसी भी आधार पर दोषी ठहराना, लगातार पुरुषत्व को प्रधान व लैंगिक दॄष्टि से आक्रमक और स्त्रीत्व को विनम्र और लैंगिक दॄष्टि से निष्क्रिय के रुप में  घोषित करना, मान कर चलना की बेकायदा महिलाओं का ही बलात्कार होता है, महिलाओं को बलात्कार से बचने के नुस्खे देना, यौन शोषण को सहनकर अपनी नियति मान लेना आदि. ये सभी रेप कल्चर के उदाहरण हैं.

 

एक नजर हमारे बालीवुड के अस्सी के दशक की फिल्मों पर. फिल्म में मुख्य विलेन का भाई या बेटा हीरो की बहिन का बलात्कार करता था और फिर बहन स्वयं को दोषी मान आत्महत्या कर लेती थी. कहानी आगे कुछ ऐसे बढ़ती थी कि हीरो विलेन के बेटे या भाई की हत्या कर बदला लेता था बदले में मुख्य विलेन हीरो की हीरोईन को बलात्कार के लिये उठा ले जाता था और फिर हीरोईन को बलात्कार से बचाकर हीरो की हीरोगिरी पर मुहर लग जाती थी. हीरोईन पर बलात्कार की कोशिश विलेन का अधिकार, बलात्कार से हीरोईन को बचाना हीरो का धर्म और बलात्कार में पीड़िता का रुप हीरोईन की नियति दर्शाने वाले लेखक और निर्देशक किस मानसिकता के होंगे आप अंदाजा लगा सकते है और उस समाज की मानसिकता के बारे में भी सोचिये जो इस सिनेमा को बड़े पर्दे पर आँखें फाड़कर देखता है.

 

अस्सी के दशक को छोड़ आज के सिनेमा पर आईये. एक दृश्य और संवाद भारत के चहेते हीरो सलमान खान की सुपर-हिट फिल्म वांटेड का. फिल्म की हीरोईन किसी जिम क्लास में एक्साइज कर रही है और निर्देशक निहायती घटिया अंदाज से कैमरा हिरोईन के पिछले हिस्से पर बड़ी बारीकी से घुमाकर दिखाता है जिसे देख हीरो सलमान खान भी उसी अंदाज में कमर बड़े ही अश्लील अंदाज में घुमाकर अपने दोस्तों को बड़े चुटीले अंदाज में बताता है कि लड़कियां ये सब करती ही लड़कों के लिये हैं.

 

अब बात करें इस 2017 में राष्ट्रीय पुरुस्कार प्राप्त वर्तमान में सबसे बड़े देशभक्त अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्मों की. इनकी अधिकांश फिल्मों में हीरोईन का काम बस इनको आकर्षित करने का रहता है. एक पूरी फिल्म में तो ये हीरोईन की बिना ढकी कमर देखकर इतने बेकाबू हो जाते हैं की बिना चिंगोटी काटे नहीं रह पाते. गली में लड़कियों को छेड़ने के लिये प्रयोग की जाने वाली एक घटिया आवाज को ये अपनी एक्टिंग का नमूना मानते हैं जिसे फिल्म में छोड़िये जनाब सार्वजनिक मंचों तक में निकालते हैं.

 

ये हाल केवल मुख्य धारा के सिनेमा का है. यदि क्षेत्रीय सिनेमा की बात की जाय तो जिस तरीके से डायलॉग से लेकर लिरिक्स तक में यौन-हिंसा को परोसकर पेश किया जाता है और जिस प्रकार से हाथों-हाथ दर्शकों द्वारा भी लिया जाता है वह भयावह है.

 

अमेजन ने अब इसे अपने प्रोडक्ट लिस्ट से हटा दिया है

सिनेमा के अलावा जिन लोगों ने इस रेप कल्चर को बढ़ावा दिया है वो है विज्ञापन बाजार. आज पुरुषों के कच्छे से लेकर गुटखा तक महिलाओं को आकर्षित करने के नाम पर विज्ञापन बनाकर बेचे जा रहे हैं. इनमें बड़ी कंपनियों का योगदान ज्यादा है. क्रियेटिवीटी के नाम पर अपने आपको आपके घर की दुकान कहने वाली कम्पनी अमेजन इन दिनों महिला के जननांगो पर सिगरेट बुझाने वाली ऐस्ट्रे को लेकर विवादों में नजर आयी. इसे बनाने वाले के मन की कुंठा छोड़िये आप इसे खरीदने और बेचने वाले के बारे में सोचिये. क्या महिला जननांगो में सरिया और रॉड घुसाने वालों और इनमें कोई अंतर है? हाँ एक अंतर तो ये है कि इन्हें मौका नहीं मिला.

मैन विल बी मैन, हँसी तो फंसी, साली आधी घरवाली वाले जुमले क्या संदेश देते हैं? बाजार में एक महिला के स्तनों के आकार का बना सिगरेट बुझाने वाला ऐस्ट्रे कैसे फनी क्रियेटिवटी के नाम पर बेचा जा सकता है? हमारे लिये बुरा ये है कि ऐसे प्रोडक्ट हाथों-हाथ बिक भी जाते हैं?

पिछले साल कि एक अन्य घटना में केरल के एक स्कूल द्वारा अपने स्कूल के बच्चों की ड्रेस को लेकर भी है. स्कूल की ड्रेस की यह कह कर आलोचना की गयी की यह अश्लील है जो न केवल बच्चों की मानसिकता को प्रभावित करेगी बल्कि पुरुषों को उकसाने का काम भी करेगी. ये कैसी मानसिकता वाले लोगों का समाज में बोल-बाला है जिन्हें बच्चों के कपड़े तक उकसा सकते हैं. आलोचना के इन आधारों को कैसे इतनी आसानी से हमारे समाज में जगह मिल जाती है.

बैंगलोर जैसे शिक्षित क्षेत्र में मेट्रो में एक चालीस पार कर चुके एक अच्छे खासे व्यक्ति द्वारा सामने की सीट पर बैठी लड़की के पैरों का विडियो बनाने वाला विडियो सच में घिनौना और दिल दहलाने वाला था. बैगलूर में साल 2017 की शुरुआत में न्यू ईयर पार्टी में हुई घटना के विषय में कई लोग यह कहते हुये आरोपियो की आलोचना करते दिखे की अंधेरी रात में लड़कियों को भी अपने बचाव के साथ चलना चाहिये था. क्या आप अब भी मानते हैं रेप कल्चर मात्र स्त्रीवादी लेखकों के दिमाग की उपज मात्र है?

 

अब अपना मोबाईल खोल अपने स्कूल, कालेज या आफिस का कोई भी ऐसा ग्रुप खोलिये जहाँ केवल लड़के हों. इनमें धडल्ले से भेजे विडियो और अधनंगी तस्वीरों पर नजर डालिये. अधिकांश आपको एमएमएस के नाम से मिलेंगे जो कि महिला की जानकारी के बिना बने रहते हैं. महिलाओं के शरीर पर किये जाने वाले भद्दे मेम्स और जोक्स बनाकर या आगे बढाकर क्या आप भी एक तरह से रेप कल्चर को बढ़ावा नहीं दे रहें हैं?

 

शर्म-हया-विनम्रता-सुंदरता आदि के फूलों से बनी एक माला महिलाओं को पहनाई जाती है. ये फूल इज्जत,आबरु और समाज की मान-मर्याद के वृक्षों से केवल महिलाओं के लिये चुने जाते हैं. ताकि उन्हें नियंत्रित किया जा सके.

 

बलात्कार के मामलों के संबन्ध में संकुचित ज्ञान और संकुचित मानसिकता लगातार विश्व भर में बलात्कार के मामलों में बढोतरी कर रही हैं. एक बात तो यह बलात्कार केवल सेक्स से जुड़ा मुद्दा नहीं है. यह शक्ति और वर्चस्व से जुड़ा अधिक है. पुरुष प्रधान समाज में पुरुष कई वर्षों से शासन कर रहा है. ऐसे में उसे अपनी सत्ता पर एक स्त्री रुपी खतरा नजर आ रहा हैं. ऐसा नहीं है कि केवल पुरुषों द्वारा बलात्कार किये जाते है अफ्रीका के कई ऐसे देश जहाँ मातृसतात्मक शासन व्यवस्था कई वर्षों से थी वहां पुरुषों के साथ बलात्कार की घटनाएं काफी आम हैं.

 

कुल मिलाकर बलात्कार एक हिंसक प्रवृति है. सामान्यतः समाज में 90 प्रतिशत व्यक्ति हिंसक नहीं होते. लेकिन समय के आधार पर हिंसा एक विकल्प के रुप में चुनते जरुर हैं. पारिवार में, दोस्तों के बीच, आफिस में लगातार दमन से व्यक्ति के मन में जन्मी कुंठा उसे बलात्कारी बनाती है. क्योंकि हमारे द्वारा बनाया गया और परोसा गया यह रेप कल्चर उसे यकीन दिला देता है कि यह कुंठा वह समाज द्वारा उससे भी ज्यादा दमित व्यक्ति पर निकालने के बाद बच निकलेगा.

 

उदाहरण के तौर पर हाल ही में गुरुग्राम में एक ऑटो-चालक और दो अन्य व्यक्तियों द्वारा एक महिला के बलात्कार की घटना घटी. क्या आप मान सकते हैं कि वे तीनों घर से ही बलात्कार के मन से निकले होंगे? क्या आप मान सकते हैं कि महिला द्वारा ऑटो में ऐसा कुछ किया होगा जो तीनों को अचानक बलात्कार के लिए प्रेरित कर दे? नहीं. तीनों को ही जब ये यकीन हो गया होगा कि वे महिला पर काबू पा सकते है. तीनों को यकीन हो गया होगा कि वे बलात्कार के बाद बच निकल सकते है तो ही उन्होंने इस हिंसा का विकल्प चुना होगा. सवाल है ये यकीन आया कहां से?

 

टीवी कार्यक्रम में सावधानी और सतर्कता से रहने की सलाह तो बखूबी दी जाती है लेकिन उससे पहले एक घण्टे का कार्यक्रम कुंठित व्यक्ति को अपराध करने के सौ उपाय और साधन दे चुका होता है. निष्कर्ष के रुप में एक बात साफ है यदि एक अपराध नियंत्रण के रुप में बलात्कार की समस्याओं को रोकना चाहेंगे तो बलात्कार के मामले अधिक दर्ज जरुर होंगे लेकिन बलात्कार कम नहीं होंगे. वर्चस्व और शक्ति से जुड़े इस हिंसक-अपराध के प्रति सेक्स के अलावा अन्य सभी पहलुओं पर भी चिंतन आवश्यक है.

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Girish Lohani

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