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अल्मोड़ा में रामचंद्र गुहा का भाषण : दस कारण जो गांधी को अब भी प्रासंगिक बनाते हैं

आज रामचंद्र गुहा का जन्मदिन है. रामचंद्र गुहा की गिनती समकालीन भारत के सबसे प्रखर एवं बहुप्रतिभाशाली इतिहासकारों में होती है. उन्होंने इतिहास, पर्यावरण और क्रिकेट जैसे विविध विषयों पर अनेक महत्वपूर्ण रचनाएं लिखी हैं. पिछले माह रामचंद्र गुहा अल्मोड़ा में थे जहां उन्होंने महात्मा गांधी की प्रासंगिकता पर एक विचारोत्तेजक व्याख्यान दिया. अल्मोड़ा से कमल जोशी की रपट :

फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट

पद्म भूषण और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध लेखक व इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने शनिवार 30 मार्च को उत्तराखण्ड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षा संस्थान अल्मोड़ा में दसवां बी. डी. पाण्डे स्मृति व्याख्यान दिया. करीब पौने दो सौ लोगों से खचाखच भरे आंगन में श्री गुहा और अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्थान के अध्यक्ष डा. ललित पाण्डे ने कहा कि दस वर्ष पूर्व शुरू किया गया स्मृति-व्याख्यान का यह कार्यक्रम मुख्य रूप से अल्मोड़ा शहर के लोगों के लिये है ताकि यहां के लोगों का ऐसे लोगों से संवाद हो सके जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में बहुत ख्याति प्राप्त की है.

स्व. बी. डी. पाण्डे का स्मरण करते हुए गुहा ने कहा कि वे भारत में बहुत महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रहे और दुनियाभर में घूमे, लेकिन हमेशा अपनी जड़ों से जुड़े रहे . वे चाहते तो दिल्ली के या देश में किसी भी अन्य बड़े शहर में बस सकते थे, लेकिन उन्होंने अपनी अपनी जन्म-भूमि में बसना पसंद किया.

गुहा के व्याख्यान का विषय था- “दस कारण जो महात्मा गांधी को अब भी प्रासंगिक बनाते हैं.” संयोग से इस साल गांधीजी की 150वीं जयन्ती भी मनाई जा रही है. गुहा ने अंग्रेजी में करीब आधे घंटे का अपना रोचक व्याख्यान और उसके बाद एक घंटे तक उपस्थित लोगों के सवालों का जवाब अंग्रेजी भाषा में दिया. इसका कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि मेरी हिंदी थोड़ी ढीली है, लेकिन उसके लिये मैं माफ़ी नहीं मांगूगा. उन्होंने 1960 में राम मनोहर लोहिया और सी. राजगोपालाचारी के बीच हुई पुरानी बातचीत के दौरान राजगोपालाचारी के कथन का उल्लेख किया कि यदि मां सरस्वती भाषाओं की जननी है तो अंग्रेज़ी भी उसी की संतान है.

फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट

गांधीजी के देहान्त को सात दशक से ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद आज इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में उनके जीवन, उदाहरण और विचारों की प्रासगिकता के जो कारण गुहा ने सबसे पहले बताये उनमें पहला है- गांधीजी ने भारत तथा विश्व को अन्यायपूर्ण सत्ता का अहिंसक ढंग से विरोध करने के तरीके- सत्याग्रह से परिचित कराया. भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और स्वतंत्र भारत में वनों के अंधाधुंध कटान, खनन, शराब इत्यादि की विनाशकारी नीतियों के विरोध में हुए अहिंसक, शांतिपूर्ण जनांदोलनों में भी इसका प्रभाव रहा है. अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग ने तथा 1989 में पूर्वी यूरोप के देशों में भी सत्याग्रह का सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया.

दूसरा कारण, देश, समाज व संस्कृति में जो बुराइयां थीं, खासकर वर्ण के आधार पर भेदभाव और स्त्रियों की खराब दशा, उन्हें स्वीकार करते थे और जीवन-पर्यन्त सुधार के प्रयास करते रहे. गांधाीजी कहते थे कि अगर देश में पुरुष महिलाओं का या तथाकथित उच्च जाति-वर्ण के लोग निम्न जाति-वर्ण के लोगों का शोषण कर रहे हैं, उन्हें परतंत्र बना कर रखा है तो ऐसी स्थिति में अंग्रेजों से आज़ादी कैसे मांग सकते हैं? गांधीजी अंध देश-भक्त नहीं थे.

तीसरा कारण, स्वयं को कट्टर हिंदू मानते हुए भी गांधीजी ने धर्म के आधार पर नागरिकता का विरोध किया और उनकी दृष्टि में भारत केवल एक हिंदू राष्ट्र नहीं था, जैसे पाकिस्तान एक मुस्लिम राष्ट्र और इजराइल एक यहूदी राष्ट्र. उनके बड़े व उदार दिल में अन्य धार्मिक विश्वास को मानने वालों के लिये जगह थी. विभिन्न धर्मों के बीच भाईचारा बनाने के प्रयासों में जीवनभर लगे रहे और इसी प्रयास में अपना बलिदान दे दिया. इसीलिये भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य बन सका.

चौथा कारण, गांधीजी न धार्मिक और न ही भाषाई दृष्टि से कट्टर थे. गुजराती भाषा, संस्कृति, समाज में उनकी जड़ें बहुत गहरी थीं, लेकिन अन्य भाषाओं और संस्कृतियों के प्रति भी उनके मन में उतना ही प्रेम था. दक्षिण अफ्रीका में उन्होंने 1903 में ‘इंडियन ओपीनियन’ नामक जो अखबार शुरू किया वह चार भाषाओं- हिंदी, अंगेजी, तमिल और गुजराती में प्रकाशित होता था, क्योंकि वह प्रवासी भारतीय समाज के सभी वर्गों तथा वहां की सरकार, सभी तक अपने विचार पहुंचाना चाहते थे. यह संभवतः विश्व का पहला मल्टी-लिंगुअल साप्ताहिक समाचार-पत्र था.

फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट

पांचवा कारण, गांधीजी एक साथ देश-भक्त और अन्तर्राष्ट्रीयतावादी दोनों थे. वे भारत की प्राचीन सभ्यता की विरासत पर गर्व तो करते थे, लेकिन यह भी भलीभांति समझते थे कि बीसवीं सदी में काई भी देश ‘कुंए का मेढक’ बन कर नहीं रह सकता. गांधीजी पर भारतीय तथा पाश्चात्य, दोनों प्रभाव रहे. वे तीन लोगों को गुरु मानते थे- गुजराती संत, लेखक व कवि रायचन्द भाई, गोपालकृष्ण गोखले, जो भारतीय थे लेकिन गुजराती नहीं, और लियो टाल्सटोय जो रूस के थे. आप अपने क्षेत्र, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा से प्रेम करें, लेकिन साथ ही देश व विश्व के अन्य देशों से आ रही अच्छी बातें ग्रहण करके इसे और ज्यादा समृद्ध बना सकते हैं.

गुहा ने उक्त पांचों तर्कों के महत्व पर प्रकाश डाला, जिनके कारण भारत एक बहुदलीय लोकतंत्र बना, दलितों और महिलाओं कों संविधान द्वारा समान अधिकार प्राप्त हुए और भारत का पाकिस्तान या श्रीलंका जैसा हश्र नहीं हुआ. गुहा के अनुसार इनके पीछे अकेले गांधीजी की भूमिका नहीं थी, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण योगदान उन्हीं का रहा.

गुहा ने कहा कि गांधीजी की प्रासंगिकता साबित करने वाले अगले पांच कारण न सिर्फ भारत के लिये अपितु समूचे विश्व के लिये महत्वपूर्ण हैं. छठा कारण, गांधीजी सबसे पहले के पर्यावरणवादियों में थे, जब दुनियां में पर्यावरण आंदोलन शुरू ही नहीं हुआ था, उन्होंने बेलगाम आर्थिक वृद्धि और मनुष्य के अति लालच को विश्व के लिये विनाशकारी मानते हुए चेतावनी दी और भावी पर्यावरणीय संकट का उन्हें पूर्वानुमान था. दिसम्बर 1928 में उन्होंने ’यंग इंडिया’ में लिखा कि भगवान न करे कि भारत औद्योगीकरण में पश्चिम का अनुसरण करे. एक छोटे से द्वीप, इंग्लैंड का आर्थिक साम्राज्यवाद विश्व को गुलामी में जकड़ सकता है तब 30 करोड़ की आबादी वाला देश यदि इसका अनुसरण करेगा तो विश्व का क्या हाल कर देगा.

सातवां कारण, गांधीजी ने अपने विचारों व मान्यताओं को समय के साथ, नये तर्कों/प्रमाणों के प्रकाश में बदलने की क्षमता थी. भारत में जाति के आधार पर कर्म विभाजन की व्यवस्था, अन्तर्जातीय विवाह, पाश्चात्य चिकित्सा-पद्धति इत्यादि के बारे में उन्होंने अपने पुरानी मान्यताओं को बदला था.

आठवां महत्वपूर्ण बात यह थी कि गांधीजी ने अपने अनुयायियों में से नेहरू, सरदार पटेल, राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, कमला देवी चट्टोपाध्याय सहित अनेक महान नेतृत्वकर्ता (लीडर) तैयार किये, जिन्होंने आगे भारत की प्रगति में अमूल्य योगदान किया. गुहा का कहना था कि पं. नेहरू, इन्दिरा गांधी और वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी में से किसी में यह गुण नज़र नहीं आता और उनकी भावना यह रहती है कि भक्त हमेशा भक्त ही बना रहे. वे नहीं समझते कि सत्ता या पद नितांत अस्थाई हैं. यह प्रवृत्ति सिर्फ राजनीति में नहीं है, अपितु देश की प्रमुख कम्पनियों और खेल-जगत में भी हावी है. गुजरात में ’सेवा’ संस्था की इला भट्ट, चिपको आंदोलन के नेता चंडी प्रसाद भट्ट जैसे चुनिंदा अपवाद बताये.

फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट

गांधीजी की वर्तमान में प्रासंगिकता का नवां कारण बताया- अपने विरोधियों के साथ संवाद तथा उनके विचारों व तर्कों को समझने की क्षमता. गांधीजी का कोई शत्रु नहीं था. गुहा के अनुसार उन्होंने डा. आंबेडकर और मि. जिन्ना के साथ क्रमशः बीस और तीस सालों तक निरंतर संवाद किया और उन्हें राजी करने की कोशिशें कीं.

दसवां और अंतिम कारण गांधीजी का निजी व सार्वजनिक, दोनों जीवन पारदर्शी था. उन्होंने कुछ भी नहीं छिपाया. साथ ही कोई भी व्यक्ति उनके आश्रम में बेरोकटोक आ-जा सकता था और उनसे सवाल पूछ सकता था. आज भारी-भरकम सुरक्षा-तंत्र से घिरे रहने वाले हमारे राजनीतिज्ञों से तुलना करें तो पूर्णतया विरोधी स्थिति नज़र आती है.

उपस्थित लोगों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए श्री गुहा ने कहा कि गांधी के विरोध में आज शहीद भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस और वीर सावरकर के तीन संप्रदाय हैं जिनमें समान बात यह है कि तीनों हिंसक विरोध में विश्वास करते हैं, जिसके गांधीजी विरोधी थे. हिंसक बनाम अहिंसक विरोध का यह मुद्दा वर्तमान में बहुत अहम् है. एक अन्य सवाल के उत्तर में गुहा ने वर्तमान भारत में अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों व ईसाइयों में बढ़ रही असुरक्षा की भावना, संस्थाओं में गिरावट उन्होंने सभी राजनीतिक पार्टियों को दोषी बताया), उत्तर-दक्षिण विभाजन आदि का उल्लेख किया.

फोटो : जयमित्र सिंह बिष्ट

गांधी बनाम आंबेडकर के मुद्दे पर श्री गुहा ने कहा कि दोनों में परस्पर मतभेद था, लेकिन दोनों महान थे और दोनों ने असाधारण कार्य किये.

एक अन्य जवाब में गुहा ने कहा कि गांधीजी मनुष्य हित को सर्वोपरि मामते थे और मनुष्यों व खेती को नुक़सान पहुचाने वाले जानवरों, बंदरों, कुत्तों आदि को मारने का स्पष्ट तौर पर समर्थन करते थे. गाय के नाम पर मनुष्यों के साथ हिंसा को भी गांधीजी बिल्कुल ग़लत मानते थे.

गांधीजी भारत को गांवों का देश मानते थे, लेकिन वर्तमान में 40 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती है. इसलिये शहरों में वर्तमान प्रमुख मुद्दे, जैसे सार्वजनिक परिवहन महत्वपूर्ण हैं.

समारोह में अल्मोड़ा नगर के अलावा आसपास के शहरी व ग्रामीण परिवेश के विभिन्न वर्गों के लोग- पत्रकार, छायाकार शिक्षक-प्राध्यापक, विद्यार्थी, वकील, सेवानिवृत्त लोकसेवक, समाजसेवी इत्यादि उपस्थित थे. उत्तराखण्ड सेवा निधि से जुड़े लोगों व संस्थाओं के साथ ही जिलाधिकारी, भारत निर्वाचन आयोग आयोग के प्रेक्षक, नगरपालिका अध्यक्ष, मुख्य विकास अधिकारी, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक भी मौज़ूद रहे.

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