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किसानी के बूते पद्म श्री प्राप्त करने वाला एक पहाड़ी: प्रेम चंद शर्मा

उत्तराखण्ड में जब कृषि को घाटे का सौदा कह कर, पहाड़ से पलायन की राह पकड़ने की प्रवृत्ति चरम पर दिख रही हो तो प्रगतिशील कृषि के लिए किसी कृषक का सर्वाच्च नागरिक पुरस्कार के लिए चयनित होना सुखद आश्चर्य से कम नहीं है. ऐसे प्रगतिशील कृषक हैं, प्रेम चंद शर्मा जिन्हें वर्ष 2021 में जैविक फल-कृषि उत्पादन के लिए पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित किया गया. इस पुरस्कार के लिए, इस वर्ष उत्तराखण्ड से दो ही व्यक्ति चयनित हुए.
(Prem Chand Sharma Agriculture Uttarakhand)

देहरादून जनपद की सुदूरतम तहसील त्यूणी के हिमाचल सीमांत स्थित गांव हटाल (अटाल नाम भी प्रचलित) के निवासी हैं, प्रेम चंद शर्मा. मात्र पांचवीं कक्षा पास, पर अपनी अद्भुत प्रयोगशील कृषि से, कृषि-वैज्ञानिकों को भी आईना दिखा कर, नीति-नियंताओं को चमत्कृत कर जाते हैं.

पद्मश्री के लिए चयनित होने पर, 64 वर्षीय प्रेमचंद शर्मा की पहली प्रतिक्रिया ये थी कि उन्हें लग रहा है कि उनकी चालीस साल की तपस्या सफल हो गयी है. यह भी कि सीमांत जनजाति क्षेत्र में हो रहे अच्छे प्रयासों पर सरकार की नज़र भी अत्यंत संतोषकारी है. पारम्परिक खेती के चलते शर्मा के गांव में किसान बमुश्किल से जीवनयापन लायक ही उत्पादन कर पाते थे. मजदूरी और रिश्तेदारी के लिए हिमाचल प्रदेश जाना, शर्मा के जीवन का टर्निंग प्वाइंट बना. हिमाचल में सेब के उत्पादन को देखकर उन्हें प्रेरणा मिली पर ये जान कर निराश भी हुए कि नदी-घाटी स्थित उनका गांव, अपेक्षाकृत गर्म जलवायु के कारण , सेब उत्पादन के लिए उपयुक्त नहीं है.

शर्मा के घर के पास एक अनार का पेड़ था जिस पर अनार तो आते थे पर कीड़े लग जाते थे. हिमाचल का सेब-उत्पादन देख कर उन्हें भी पक्का विश्वास हो चला था कि उनके गाँव में भी फल उत्पादन हो सकता है. वैज्ञानिकों और प्रगतिशील कृषकों से सम्पर्क कर उन्होंने उसी अनार के पेड़ से पाँच सौ नयी पौध तैयार की और वैज्ञानिक पद्धति से अनार का बाग तैयार कर दिया. परिणाम यह हुआ कि कुछ ही साल बाद सभी पेड़ों से अनार प्राप्त होने लगे. पूरी तरह कीड़ारहित और एक-एक किलो का एक-एक सुविकसित दाना.

तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी और प्रमुख सचिव विभापुरी दास ने भी उनके इस प्रयोग और उपलब्धि की भरपूर सराहना की. इस उपलब्धि ने शर्मा को अनारवाला के नाम से प्रसिद्धि तो दिला दी पर अभी भी चुनौतियां कम नहीं थी. उनके अनारों में बीज का सख्त हिस्सा अधिक था और रंग भी सुर्ख़ नहीं था. इस चुनौती से पार पाने के लिए उन्होंने महाराष्ट्र के सोलापुर स्थित अनार अनुसंधान केन्द्र का भ्रमण किया. कर्नाटक और कुल्लू-हिमाचल का भी. फिर उन्नतशील भगवा व कंधारी अनार का उत्पादन किया.

फसल-चक्र को समझते हुए 15-20 साल पुराने अनार के पेड़ों की जगह पर आड़ू के पेड़ तैयार किए. साथ ही टमाटर की खेती भी शुरू की. पानी की कमी का तोड़ ड्रिप सिंचाई के रूप में निकाला. ड्रिप सिंचाई की व्यवस्था के लिए भारत सरकार के मृदा एवं जल संरक्षण विभाग व ग्रामीणों की सहभागिता प्राप्त करने के लिए समन्वयन किया. पाँच साल तक विभाग को अपना आवास उपलब्ध कराया. विभाग ने पाइप दिए, ग्रामीणों ने खुदाई कर उन्हें संयोजित किया. ड्रिप सिंचाई का परिणाम ये हुआ कि एक ही साल में मात्र तीन बीघे की खेती में शर्मा ने छः लाख के टमाटर का उत्पादन कर दिया. उनकी देखादेखी अब गांव के अन्य किसान भी ड्रिप सिंचाई को अपनाने लगे हैं.
(Prem Chand Sharma Agriculture Uttarakhand)

जैविक खाद बनाने के लिए शर्मा गोबर, गुड़, गाजर घास, नीम व अखरोट के पत्ते का घोल तैयार करते हैं और फिर ड्रिप पाइप्स से ये जैविक तरल खाद को सीधे पौधों की जड़ तक पहुँचाते हैं. पालीथीन व अन्य हानिकारक घासों से होने वाले पर्यावरणीय प्रदूषण के प्रति भी वे ग्रामीणों को जागरूक कर रहे हैं और स्वयं भी प्रभावी समाधानों को लेकर निरंतर प्रयोगरत हैं.

प्रेमचंद शर्मा 1990 से 1993 तक, तीन साल के लिए जनजाति विकास प्राधिकरण के सदस्य भी रहे हैं. 14 वर्षों तक ग्रामप्रधान/उपप्रधान रहते हुए भी प्रेमचंद शर्मा ने उल्लेखनीय कार्य किए हैं. न सिर्फ स्कूल के लिए अपनी निजी भूमि दान की बल्कि इंटर कॉलेज की सभी कक्षाओं के टॉपर छात्र-छात्राओं को एक हजार रुपए की धनराशि इनाम के रूप में प्रति वर्ष कुल रु.7500 की धनराशि प्रदान करते हैं. माटी से उनका जुड़ाव और अनुराग कविताओं के रूप में भी प्रस्फुटित हुआ है. शर्मा से प्रेरित होकर इस जनजाति क्षेत्र के 25 से अधिक गांवों के एक हजार से अधिक किसान प्रगतिशील खेती को अपना चुके हैं.

इन उपलब्धियों के चलते शर्मा को नाबार्ड द्वारा साल 2018 में उत्तराखण्ड के लिए कृषि सलाहकार भी बनाया गया. पुरस्कारों की तो पूरी श्रृंखला ही है. 2018 व 2014 में  भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, भारत सरकार द्वारा क्रमशः जगजीवन राम किसान पुरस्कार व किसान सम्मान प्रदान किया गया. धाद संस्था द्वारा कृषि बागवानी सम्मान, स्वदेशी जागरण मंच द्वारा विस्मृत नायक सम्मान (2016), जीबी पंत विश्वविद्यालय द्वारा प्रगतिशील कृषक सम्मान (2015), भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान परिषद नई दिल्ली द्वारा विशेष उपलब्धि सम्मान (2015), महिन्द्रा एण्ड महिन्द्रा द्वारा कृषक सम्राट सम्मान(2015), इण्डियन एसोसिएशन आॅफ साॅयल एण्ड वाटर कन्जरवेसनिस्ट देहरादून द्वारा किसान सम्मान (2014) व कृषि ज्ञान प्रबंध एजेंसी देहरादून द्वारा किसान भूषण (2012) दिया गया.
(Prem Chand Sharma Agriculture Uttarakhand)

उत्तराखण्ड के प्रमुख सचिव उत्पल कुमार सिंह जी प्रेमचंद शर्मा की प्रगतिशील खेती देख कर उनकी विजिटर्स बुक में लिखते हैं कि

श्री शर्मा से प्रत्येक मुलाकात में कुछ नया देखने और सीखने को मिलता है. कृषि एवं  उद्यान विभागों को इन अभिनव ग्रासरूट स्तर के प्रयोगों को अपस्केल करने का प्रयास करना चाहिए. मैं श्री शर्मा एवं अटाल गांव के निवासियों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ.

पद्मश्री प्रेमचंद शर्मा की औपचारिक शिक्षा भले ही अधूरी रही हो पर उनका अनुभव और लगन से उपजा संदेश बहुत बड़ा और व्यापक है. वे कहते हैं कि जो अन्न को ग्रहण करें, वो किसानों का चिंतन करें. प्रेमचंद शर्मा की उपलब्धियां रिवर्स माइग्रेशन के लिए प्रेरणा हैं और पलायन-प्रवृत्ति के लिए बैरियर. इन उपलब्धियों ने पहाड़ी-कृषि को, लाभप्रद जैविक उत्पादों का पर्याय बना दिया है. उन्हें समाज ने प्रेम से अनारवाला नाम दिया है. उनकी उपलब्धियों में भी अनार की ही तरह मिठास है, चमकीले रंग हैं और औषधीय गुण भी.

प्रदेश मुख्यालय देहरादून से 150 किमी दूर उनके गांव में पहुंचने के लिए पड़ोसी राज्य हिमाचल से भी गुजरना पड़ता है. जब भी कोई फल विक्रेता आपको काबुली अनार बता कर प्रभावित करने की कोशिश करे तो उससे पूछिएगा जरूर कि भाई! अटाल के अनार हों तो दिखाना. उनकी जैविक शुद्धता और गुणों की बात ही कुछ और है.
(Prem Chand Sharma Agriculture Uttarakhand)

देवेश जोशी

इसे भी पढ़ें: काऽरी तु कब्बि ना हाऽरि : एक कर्मयोगी शिक्षक की जीवनकथा

1 अगस्त 1967 को जन्मे देवेश जोशी फिलहाल राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज में प्रवक्ता हैं. उनकी प्रकाशित पुस्तकें है: जिंदा रहेंगी यात्राएँ (संपादन, पहाड़ नैनीताल से प्रकाशित), उत्तरांचल स्वप्निल पर्वत प्रदेश (संपादन, गोपेश्वर से प्रकाशित) और घुघती ना बास (लेख संग्रह विनसर देहरादून से प्रकाशित). उनके दो कविता संग्रह – घाम-बरखा-छैल, गाणि गिणी गीणि धरीं भी छपे हैं. वे एक दर्जन से अधिक विभागीय पत्रिकाओं में लेखन-सम्पादन और आकाशवाणी नजीबाबाद से गीत-कविता का प्रसारण कर चुके हैं. 

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