देहरादून के एक गांव की राजो अपने पतियों के साथ : 2019 में पंजाब केसरी की रपट से
उत्तराखण्ड के पश्चिमी टिहरी और जौनसार बावर क्षेत्र में कभी बहुपति प्रथा खासे चलन में थी. इस प्रथा में सबसे बड़े भाई का विवाह होने पर उसकी पत्नी समान अधिकार के साथ सभी छोटे भाइयों की भी पत्नी हुआ करती थी. लेकिन इस विवाह से पैदा होने वाले बच्चे बड़े भाई के ही कहलाते थे. (Polyandry Marriage Practice of Uttarakhand)
एक ही परिवार में भाइयों की उम्र में बहुत ज्यादा अंतर होने पर बड़े भाई पहले एक दुल्हन से ब्याह रचाते और छोटे भाइयों की विवाह योग्य उम्र होने पर वे दूसरी शादी किया करते थे. ये दोनों ही पत्नियाँ सभी भाइयों की पत्नियाँ कहलाती थीं.
जहां बहुपति प्रथा विद्यमान थी वहां आबादी में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का अनुपात बहुत ज्यादा कम हुआ करता था. ब्रिटिश भारत में इन इलाकों में कहीं-कहीं बच्चों व वयस्कों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या एक चौथाई तक भी हुआ करती थी. लेकिन पुरुषों की तुलना में महिलाओं की कम आबादी का कारण भ्रूण हत्या नहीं हुआ करता था. गढ़वाल की पहाड़ियों में जहां बहुपति प्रथा चलन में थी वहां महिला शिशुओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले ज्यादा हुआ करती थी.
1911 की जनगणना में देश के उन इलाकों का उल्लेख है जहां बहुपति प्रथा चलन में थी.
इसे भी पढ़ें : ढांटा ब्या : उत्तराखण्ड में पूर्वप्रचलित सामाजिक मान्यता प्राप्त विवाह
इस प्रथा का प्रभाव सबसे ज्यादा हिमाचल की किन्नौर में देखा जाता है, यहां इसे घोटुल प्रथा कहा जाता है. इस रिवाज को लेकर मान्यताएं महाभारत से भी जुडी हैं. कहा जाता है कि महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने हिमाचल और उत्तराखण्ड की इन पहाड़ियों में अपना ख़ासा समय बिताया था. कहते हैं तभी से इन क्षेत्रों में यह परम्परा चलन में है.
इसे भी पढ़ें : बिना दूल्हे वाली बारात की भी परम्परा थी हमारे पहाड़ों में
उत्तराखण्ड के अलावा हिमाचल के किन्नौर, दक्षिणी कश्मीर के पहाड़ी इलाकों, त्रावणकोर के नायकों, मालाबार हिल्स की इजहेर जाति, अरुणाचल की गालोंग जनजाति समेत केरल की भी कई जनजातियों, नेपाल और तिब्बत में भी बहुपति व्यवस्था चलन में थी. आज यह प्रथा लुप्त हो चुकी है लेकिन इसके अवशेषों की मौजूदगी से इनकार नहीं किया जा सकता. (Polyandry Marriage Practice of Uttarakhand)
(हिमालयन गजेटियर : एडविन टी. एटकिंसन के आधार पर)
इसे भी पढ़ें : बिना दूल्हे वाली बारात की भी परम्परा थी हमारे पहाड़ों में
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…
अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…
हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…
आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…
बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…
आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…