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कब तक बैठी रहोगी इस तरह अनमनी, चलो घूम आएँ

 चलो घूम आएँ 

- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

उठो, कब तक बैठी रहोगी
इस तरह अनमनी
चलो घूम आएँ.

तुम अपनी बरसाती डाल लो
मैं छाता खोल लेता हूँ
बादल –
वह तो भीतर बरस रहे हैं
झीसियाँ पड़नी शुरु हो गई हैं
जब झमाझम बरसने लगेंगे
किसी पेड़ के नीचे खड़े हो जाएँगे
पेड़ –
उग नहीं रहा है तेज़ी से
हमारी-तुम्हारी हथेलियों के बीच
थोड़ी देर में देखना, यह एक
छतनार दरख़्त में बदल जाएगा.

और कसकर पकड़ लो मेरा हाथ
अपने हाथों से
उठो, हथेलियों को गर्म होने दो
इस हैरत से क्या देखती हो ?
मैं भीग रहा हूँ

तुम अगर यूँ ही बैठी रहोगी
तो मैं भी भीग-भीगकर
तुम्हें भिगो दूँगा।

अच्छा छोड़ो
नहीं भीगत
तुम भीगने से डरती हो न !

उठो, देखो हवा
कितनी शीतल है
और चाँदनी कितनी झीनी, तरल, पारदर्शी,
रास्ता जैसे बाहर से मुड़कर
हमारी धमनियों के जंगल में
चला जा रहा है.

उठो घूम आएँ
कब तक बैठी रहोगी
इस तरह अनमनी.

इस जंगल की
एक ख़ास बात है
यहाँ चाँद की किरणें
ऊपर से छनकर
दरख़्तों के नीचे नहीं आतीं,
नीचे से छनकर ऊपर
आकाश में जाती हैं.

अपने पैरों के नाखूनों को देखो
कितने चाँद जगमगा रहे हैं.
पैर उठाते ही
शीतल हवा लिपट जाएगी
मैं चंदन हुआ जा रहा हूँ
तुम्हारी चुप्पी के पहाड़ों से
खुद को रगड़कर
तुम्हारी त्वचा पर फैल जाउंगा.

अच्छा जाने दो
त्वचा पर चंदन का
सूख जाना तुम्हें पसंद नहीं!
फिर भी उठो तो
ठंडी रेत है चारों तरफ
तलुओं को गुदगुदाएगी, चूमेगी,
तुम खिलखिला उठोगी.

कब तक बैठी रहोगी
इस तरह अनमनी.
यह रेत
मैंने चूर-चूर होकर
तुम्हारी राह में बिछाई है.

तुम जितनी दूर चाहना
इस पर चली जाना
और देखना
एक भी कण तुम्हारे
पैरों से लिपटा नहीं रहेगा
स्मृति के लिए भी नहीं.

उठो, कब तक बैठी रहोगी
इस तरह अनमनी
चलो घूम आएं.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

15 सितम्बर 1927 को उत्तर प्रदेश के बस्ती में जन्मे सर्वेश्वर दयाल सक्सेना हिन्दी के बड़े कवि थे. उनके संग्रह ‘खूँटियों पर टंगे लोग’ के लिए उन्हें वर्ष 1983 में साहित्य अकादमी पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा उन्हें हिन्दी साहित्य के अनेक महत्वपूर्ण सम्मान भी प्राप्त हुए. अपनी सचेत राजनैतिक प्रतिबद्धता के लिए जाने जाने वाले सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने लम्बे समय तक बच्चों की मशहूर पत्रिका ‘पराग’ का सम्पादन भी किया और बच्चों के लिए बहुत सी रचनाएं भी कीं. उनकी प्रेम कविताएं भी बहुत विख्यात हुईं. 24 सितम्बर 1983 को उनका देहावसान हुआ.

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