भारत के सबसे बड़े ठंडे रेगिस्तानों वाले भूभाग में से एक “चांगथांग” (चांग= पूर्वी, थांग= मैदान) नए नवेले केंद्रशासित राज्य लद्दाख़ में पारिस्थितिकी, पर्यटन एवं सुरक्षा के नज़रिये से महवत्पूर्ण स्थान रखता है. सर्दियों के मौसम में भौगोलिक रूप से कठिन माने जाने वाले इस क्षेत्र का तापमान शून्य से 30-40 डिग्री तक नीचे गिर जाता है. मीलों तक वीरान रहने वाला यह भू-भाग बहुत ही कम जनसँख्या घनत्व वाला क्षेत्र है, इन विषम परिस्थितियों में भी यहाँ के रहवासी “चांगपा” लोग सालभर घुमन्तु जीवन व्यतीत कर अपने भेड़- बकरियों/याकों के लिए चारा तलाश करते हैं जहाँ सालाना 100 मिलीमीटर से भी कम बारिश होती है.
(Photos of Changthang)
सिंधु तथा सहायक नदियाँ कुछ भाग को ही सींच पाती है लेकिन सर्दियों में वे भी जम जाती हैं. बंजर दिखने वाला ये भूभाग सबसे अनूठे जीव जन्तुओं का घर है, वन्यजीवों की कुछ सबसे दुर्लभ प्रजातियां भी यहाँ पायी जाती हैं जो की किसी और भौगोलोकि क्षेत्र में नहीं पाए जाते. ये ठन्डे रेगिस्तान दुनिया की कुछ सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है, जिनमे ‘पैंगोंग झील’ का नाम अक्सर लिया जाता है.
4-5 सालों के अपने शोधकार्य के दौरान ली हुई कुछ तस्वीरें. (सभी तस्वीरें नीरज महर ने ली हैं.)
(Photos of Changthang)
अप्रैल-मई के महीने तक भी ऊंचाई (4500 मीटर) पर स्थित झीले बर्फ से जमी रहती हैं. त्सो मोरिरि दुनिया के कुछ महत्वपूर्ण वेटलैंड की श्रेणी “RAMSAR Site” में शामिल है.
सदियों से भेड़पालन पर निर्भर लोग अब अन्य व्यवसायों में भी अग्रणी हैं. 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद तिब्बत के भेड़पालक भी इस क्षेत्र में रहने लगे. शुष्क प्रदेश होने के कारण यहाँ पानी की कमी एक बड़ी चुनौती रहती है.
तिब्बती पठार में पाया जाने वाली प्रजाति जिनकी संख्या 5000-10000 के बीच होगी, ठण्ड के मौसम में भी यह जानवर बेफिक्र इन मैदानों, सिंधु नदी के किनारो में आसानी से दिखाई पड़ता है.
यहाँ की पाए जाने वाली घलेरू कुत्तो की प्रजाति है जो की भेड़ पालकों के सुखदुःख का साथी होता है, जिनकी संख्या पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ गयी है और अब वन्यजीवों के लिए ख़तरा बन रही है.
सड़कों और सुगम यात्रा में क्रांति आने के बाद, साल दर साल घरेलू याकों की संख्या में तेज़ी से कमी आयी है, इनकी जगह अब 4 x 4 गाड़ियों ने ले ली है, जबकि जंगली याकों के कुछ झुण्ड अक्सर DBO और चांग-चिनमो से लगे स्थानों में दिखाई देते हैं.
लगभग 25 वेटलैंड (wetland), 40 से ज्यादा प्रकार के जलीय पक्षी (waterbird) प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं, मीठे तथा खारे पानी बहुत सी झीले पक्षियों का घर हैं, ये वेटलैंड (4000 से 5000 मीटर की ऊंचाई में हैं, कुछ तो इन से भी ऊपर) (फोटो में: सुर्खाब पक्षी का झुण्ड, Ruddy Shelduck).
जंगली बिल्लियों की पाए जाने वाली तीन प्रजातियों में से एक, मनुल (Pallas’s Cat), एक दुर्लभ छोटे आकर की सुन्दर बिल्ली है जो की कभी कभार देखने को मिल जाती है. आकार में छोटी पाइका और वोल प्रजाति के छोटे जानवरो पर निर्भर रहती है.
चांग-ला (5,391 मीटर) और ताग लांग-ला (5,328 मीटर), ये दो महत्वपूर्ण दर्रे चांगथांग को लेह शहर से जोड़ते हैं. जो की हमेशा बर्फ से लदे दिखाई पड़ते हैं पर गर्मीयों के मौसम में सड़क आवाजाही के लिए ज्यादा सुगम हो जाती है.
(Photos of Changthang)
Tibten Argali (न्यान), आकार में कुछ सबसे बड़ी लुप्तप्राय जंगली भेड़ प्रजातियों में से एक है जिनके झुण्ड अक्सर त्सो-कर नामक स्थान में दिखाई देते हैं.
हिमालयी या तिब्बती भेड़िया (Himalayan/Tibetan Wolf) भी चांगथांग के ढालनुमा मैंदानो में घूमते दिखाई देते हैं जो की अक्सर पालतू भेड़ो को अपना शिकार बनाते हैं जिस कारण स्थानीय लोग इन्हे कम ही पसंद करते हैं. बाकी वन्यजीवों के लिए यहाँ के लोगो का प्यार देखने लायक है.
लद्दाख का राज्य पक्षी लगभग 3-4 फुट लम्बी और 5-6 किलो वजन वाली चिड़िया गर्मियों के मौसम में 100 से कम की संख्या में यहाँ की झीलों और आद्रभूमि वाले पर्यावासों में प्रजनन के लिए आती हैं और ठण्ड के मौसम में तिब्बत के निचले स्थानों वाली घाटियों में शरण लेती है.
(Photos of Changthang)
– नीरज महर
पिथौरागढ़ के रहने वाले युवा नीरज महर, वाइल्ड लाइफ बायोलाजिस्ट हैं. हिमालयी वन्य जीव पर विशेष पकड़ रखने वाले नीरज का यह फोटो निबंध, 4-5 सालों के उनके शोधकार्य के दौरान ली गयी तस्वीरों पर आधारित है.
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