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कुमाऊं के वीर योद्धा नीलू कठायत की अनसुनी गौरव गाथा

गरुड़ ज्ञान चंद के समय चम्पावत के राजदरबार में बक्सी (सेनापति) के पद पर सरदार नीलू कठायत था. संभव है, वह सौन कठायत के वंश का हो. वह बड़ा बहादुर सेनापति था. राजा ने उसे हुक्म दिया कि वह तराई-भावर से यवनों को निकालकर फिर उसे कुमाऊँ-राज्य के अधिकार में करे. सेनापति नीलू कठायत राजाज्ञा पाकर फौज ले माल में लड़ने को गया. उसने मुसलमानों को तराई-भावर से मार भगाया. विजयी हो राजदरबार में आकर नीलू कठायत ने राजा के पास नज़र पेश की और विजय के सब समाचार सुनाये. राजा ने प्रसन्न होकर उसे ‘कुमय्याँ खिल्लत’ बख्शी कहा इसके साथ-साथ 3 गाँव माल के और 12 ज्यूला ज़मीन ध्यानिरौ में सरदार नीलू कठायत को ‘रौत’ भी दी . रौत उस जागीर को कहते थे, जो किसी मनुष्य को असाधारण बहादुरी करने में दी जाती थी. इनकी सनद के उपलक्ष में एक लेख ग्वालियर के पत्थर में खोदकर सरदार नीलू कठायत के गाँव कपरौली में लगाया गया.
(Neelu Kathayat)

राजा गरुड़ ज्ञान चंद के दरबार में एक मनुष्य जस्सा कमलेखी खवास था. उसका ‘बुंगा’ यानी किला कमलेख गाँव में था. वह किला अब बिलकुल टूटा पड़ा है. जस्सा राजा का मुंहलगा मुसाहिब था. वह नीलू कठायत के साथ दुश्मनी रखता था. वह नीलू कठायत की मान, प्रतिष्ठा तथा बहादुरी से जल गया . इसीलिये उसने राजा से गुप्त रूप में कहा कि नीलू कठायत बक्सी है, वीर है और उसने नवाब के हाथ से मडुवा-की-माल भी छुटाई है. इसलिये उसे वहाँ का लाट भी बना देना चाहिए.

राजा दिल से इस बात को नहीं चाहता था किन्तु चापलूस जस्सा ने झाँसा-पट्टी देकर राजा को राजी कर लिया और नीलू कठायत के नाम आज्ञा-पत्र मय खिल्लत जारी हुआ कि वह माल का सरदार बनाया गया है. वहाँ का प्रबन्ध करे और उसे आबाद करावे. इस हुक्म के मिलने से नीलू कठायत बहुत अप्रसन्न हुआ और कहने लगा कि उधर तो राजा ने उसे ऐसी बहादुरी के लिये सम्मानित किया और इधर तराई-भावर की बुरी आबहवा में बदलकर उसे मारने की ठहराई.

तराई-भावर की आबहवा गरमी व बरसात में अच्छी न होने से पर्वतीय लोग वहाँ जाने से बराबर डरते रहे हैं. इस पर जब नीलू को यह ज्ञात हुआ कि राजा ने उसके जानी दुश्मन जस्सा कमलेखी के कहने पर उसे तराई भावर में बदला है तो वह और भी आग-बगूला हो गया. फ़ौरन घोड़े पर चढ़कर राजा के दरबार चम्पावत में आया वह भी बिना दरबारी पोशाक पहने ही जो कि राजा ने उसे दी थी. इस पर जस्सा कमलेखी ने और भी नमक-मिर्च लगाई कि नीलू कठायत बिना दरबारी पोशाक पहने ही राजदरबार में आया है और इससे उसने राजा का घोर अपमान किया है. यह बड़ा अहंकारी अफसर है. इस पर राजा गुस्से में आ गया. उसने नीलू कठायत की ‘ढोक’ याने वंदना को स्वीकार न किया, मुंह फेर लिया.
(Neelu Kathayat)

नीलू कठायत भी वहाँ से लौटकर अपने गाँव कपरौली को चला गया. अपने पति को उदास देखकर उसकी स्त्री ने जो ‘सिरमौर’ महर की लड़की थी, पूछा कि उदासी का कारण क्या है? न आज दरबारी पोशाक है, न बच्चों व स्त्रियों के लिये कपड़े, मिठाई व अन्य सामान ही आये हैं. नीलू कठायत ने कहा कि वह राजा से नाराज़ होकर आये हैं, क्योंकि जस्सा के कहने से राजा ने उनकी बेइजती की है. स्त्री ने कहा कि उन्होंने बुरा किया जो राजा से लड़ाई की ‘राज व नाज’ बिना रहा नहीं जाता. वह अपने लड़कों सुजू व बीरू को राजा की खिदमत को भेजेगी. नीलू ने कहा कि वहाँ लड़कों को मत भेजो. कहीं जस्सा उन्हें मरवा न दे पर स्त्री ने उनको अपने भाई उनके मामा सिरमौली महर के यहाँ भेजा. लड़के मामा का घर न पा सके. वे जस्सा के हाथ पड़ गये. बेचारे नादान व निष्पाप बच्चों ने साफ-साफ बात अपने आने की कह दीं. पर कुटिल जस्सा ने उनको बाहर से तो बड़ी खातिरदारी से अपने घर में ठहराया, पर राजा से कहा कि नीलू कठायत के लड़के उन्हें मारने के लिये आये हैं. उसने अपनी कोठी में बंद कर रक्खे हैं.

राजा ने उन्हें अपने यहाँ बुलवाकर आँखें निकलवाने का हुक्म दिया. जल्लादों ने गोरलचौड़ में ले जाकर उनकी आँखें निकाल दी. जब उनके नाना को खबर हुई तो उसने इन्हें अपने घर में बुलाया, सब हाल पूछा और  नीलू कठायत को पत्र भेजा कि क्या यही बहादुरी है कि आप तो घर में बैठे रहो और ऐश करते रहो और उनके घेवतों की आँखें निकलवाई जावें? इस चिठ्ठी से नीलू के बदन में आग लग गई. वह उसी वक्त अपने भाई-बन्दों व फ़ौज को लेकर चम्पावतीयों पर चढ़ गया. राजा व जस्सा अपना ‘थर्प’ यानी महल छोड़कर जंगल को भाग गये, वहाँ एक उड्यार (गुफा) में छिप गये. नीलू ने सारा महल व किला ढूंढा राजा नहीं मिला. बाद को किसी ने राजा का पता बता दिया.

नीलू ने गुफा में जाकर दोनों को पकड़ा पर राजा को छोड़ दिया और सलाम करके कहा- “आपको मैं नहीं मारता क्योंकि यह राजभक्ति के विरुद्ध होगा और मेरे खानदान की बदनामी हो जावेगी लेकिन जस्सा मेरा दुश्मन है, उसे न छोड़ेगा.” यह कहकर उसने जस्सा को मार डाला और राजा को छोड़कर सीधा कमलेख में पहुँचा. वहाँ का बुंगा जो जस्सा का था, लूटा व आग लगा दी. “सब मदों को मार डाला, गर्भवती स्त्रियों के पेट चीर डाले.” सब धन लेकर अपने घर कपरौली को चला गया. तब से यह किला टूटा पड़ा है. यह फड़का से अल्मोड़े की तरफ़ को पहाड़ की एक धार पर था.

बाद को राजा महल में आये. उसने सब बातें सुनीं. नीलू कठायत को कहला भेजा कि जो कुछ उन्होंने किया वह सब जस्सा कमलेखी के कहने से किया. अब च्यूंकि नीलू ने राजा के साथ कोई दग़ाबाजी नहीं की वह भी नीलू के साथ पुराना व्यवहार करेंगे. नीलू फिर बक्सी के पद पर बहाल हो गये. पर राजा उसके अभिमान व अपमान से दिल-ही-दिल बहुत कुढ़ा हुआ था. उसको मारने का अवसर ढूंढ़ता रहा. अन्त में एक दिन धोखे में उसे मरवा ही डाला. इस कार्य से इस राजा की बड़ी अपकीर्ति हुई.
(Neelu Kathayat)

बद्रीदत्त पांडे

नोट– यह लेख बद्रीदत्त पांडे की किताब ‘कुमाऊं का इतिहास‘ से साभार लिया गया है.

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