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फूलदेई छम्मा देई दैण द्वार भरी भकार

मनुष्य का जीवन प्रकृति के साथ अत्यंत निकटता से जुड़ा है. पहाड़ के उच्च शिखर, पेड़-पौंधे, फूल-पत्तियां, नदी-नाले और जंगल में रहने वाले सभी जीव-जन्तुओं के साथ मनुष्य के सम्बन्धों की रीति उसके पैदा होने से ही चलती आयी है. समय-समय पर मानव ने प्रकृति के साथ अपने इस अप्रतिम साहचर्य को अपने गीत-संगीत और रागों में भी उजागर करने का प्रयास किया है. पीढ़ी दर पीढ़ी अनेक लोक गीतों के रुप में ये गीत समाज के सामने पहुंचते रहे. उत्तराखण्ड के पर्वतीय लोकगीतों में वर्णित आख्यानों को देखने से स्पष्ट होता है कि स्थानीय लोक ने प्रकृति में विद्यमान तमाम उपादानों यथा ऋतु चक्र,पेड़-पौधों, पशु-पक्षी,लता,पुष्प तथा नदी व पर्वत शिखरों को मानवीय संवेदना से जोड़कर उसे महत्वपूर्ण स्थान दिया है. Nature in Folk Songs of Uttarakhand

लोक गीतों वर्णित बिम्ब एक अलौकिक और विशिष्ट सुख का आभास कराते हैं. मानव के घनिष्ठ सहचर व संगी-साथी के तौर पर प्रकृति के ये पात्र जहां मानव की तरह हंसते-बोलते, चलते-फिरते हैं तो वहीं सुख-दुख में मानव के करीबी मित्र बनकर उसकी सहायता भी करते हैं. निष्कर्ष रुप में यह कहा जा सकता है कि प्रकृति के प्रति उद्दात भावों को मुखरित करते बसन्त ऋतु के ये गीत हिमालय की समृद्ध सांस्कृतिक परम्परा, जीवन दर्शन और यहां के बौद्धिक विकास को प्रदर्शित करते हैं.

पर्वतीय लोक जीवन में प्रकृति के समस्त पेड़ पौधों, फूल पत्तियों और जीव जन्तुओं के प्रति अनन्य आदर का भाव समाया हुआ है. खासकर फूलों के लिए तो यह भाव बहुत पवित्र दिखायी देता है. यहां के कई लोकगीत भी इसकी पुष्टि करते हैं.बसन्त ऋतु में खिलने वाले पंय्या अथवा पदम के वृक्ष को गढ़वाल में अत्यंत शुभ माना जाता है और इसे देवताओं के वृक्ष की संज्ञा दी जाती है. पंय्या का नया वृक्ष जब जन्म लेता है तो लोग प्रसन्न होकर यह गीत गाते हैं-

नई डाळी पैय्यां जामी, देवतों की डाळी
हेरी लेवा देखी ले नई डाळी पैय्यां जामी
नई डाळी पैय्यां जामी,क्वी चौंरी चिण्याला
नई डाळी पैय्यां जामी,क्वी दूद चरियाळा
नई डाळी पैय्यां जामी,द्यू करा धुपाणो
नई डाळी पैय्यां जामी,देवतों का सत्तन
नई डाळी पैय्यां जामी,कै देब शोभलो
नई डाळी पैय्यां जामी,छेतरपाल शोभलो

इस लोकगीत का आशय यह है कि पंय्या का छोटा सा नया पेड़ उग आया है.इसका दर्शन करलो यह देवताओं का पेड़ है. कोई इसकी चहारदीवारी बनाओ, कोई इसे दूध से सींचो और कोई दिया बाती धूप आदि से इसकी पूजा करो. देवताओं के पुण्य से पंय्या का नया पेड़ उगा है. यह पेड़ तो क्षेत्रपाल देवता को शोभयमान होगा. उत्तराखण्ड के जनमानस में यह लोक मान्यता व्याप्त है कि हिमालय में खिलने वाला रैमाशी का फूल भगवान शिव को अत्यंत प्रिय होता है. यही मान्यता कुंज, ब्रह्मकमल,बुंराश व अन्य फूलों के लिए भी है. गढ़वाल के एक लोकगीत में कहा गया है- राजों का बग्वान यो फूलो के को . अलकनंदा के तट पर खिले एक अलौकिक व रहस्यमय पुष्प के प्रति लोग कौतूहल व्यक्त कर रहे हैं कि यह फूल किस देवता का होगा. Nature in Folk Songs of Uttarakhand

फूलों के प्रति देवत्व की इसी उद्दात भावना के प्रतिफल में उत्तराखण्ड के पर्वतीय इलाकों में फूलों का त्यौहार फूलदेई अथवा फुलसंग्राद बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है. दरअसल फूलदेई नये वर्ष के आगमन पर खुसी प्रकट करने का त्यौहार है जो बसन्त ऋतु के मौसम में चैत्र संक्रान्ति को मनाया जाता है. गढ़वाल में कई गांवो में यह पर्व पूरे माह तक मनाया जाता हैं. Nature in Folk Songs of Uttarakhand

गांव के छोटे बच्चे अलसुबह उठकर टोकरियों में आसपास खिले किस्म-किस्म के फूलों को चुनकर लाते हैं और उन्हें गांव घर की हर देहरी पर बिखेर कर परिवार व समाज की सुफल कामना करते हैं. सामूहिक स्वर में बच्चे जब फूलदेइ से जुड़े गीतों को गाते हैं तो पूरा गांव गुंजायमान हो उठता है. इन गीतों का आशय है कि फूल देई तुम हम सबकी देहरियों पर हमेशा विराजमान बने रहो… और हमें खुसहाली प्रदान करते रहो…आपके आर्शीवाद से गांव इलाके में हम सभी के अन्न के कोठार हमेशा भरे रहें.

फूलदेई,छम्मा देई
दैण द्वार भरी भकार
य देई कै बारम्बार नमस्कार
फूलदेई,छम्मा देई
हमर टुपर भरी जै
हमर देई में उनै रै
फूलदेई,छम्मा देई

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चंद्रशेखर तिवारी. पहाड़ की लोककला संस्कृति और समाज के अध्येता और लेखक चंद्रशेखर तिवारी दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र, 21,परेड ग्राउण्ड ,देहरादून में रिसर्च एसोसियेट के पद पर कार्यरत हैं.

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