कुमाऊं-गढ़वाल में नंदादेवी को कुलदेवी का दर्जा हासिल है. इस हिमालयी देवी के सबसे पुराने मंदिरों में अल्मोड़ा के ऐतिहासिक नंदादेवी मंदिर का नाम सबसे ऊपर आता है. (Nandadevi Temple Almora Dispute)
इस मंदिर के परिसर में हर साल नन्दाष्टमी के मौके पर कुमाऊं की सांस्कृतिक सम्पन्नता का प्रतिनिधि माना जाने वाला नंदादेवी मेला लगता है. इस मेले की तारीख आने ही वाली है. ऐसे में कल यानी 30 अगस्त को एक ऐसी घटना घटी जिससे देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड की श्रमिक और सांस्कृतिक साख तार-तार हो गयी. (Nandadevi Temple Almora Dispute)
बताया जाता है कि मुख्य मंदिर के पुजारी के पद को लेकर लम्बे समय से विवाद चल रहा है. एक तरफ मंदिर कमेटी है और दूसरी तरफ पुजारी. पिछले साल इन दोनों पक्षों के बीच हुई एक बैठक में पूजा किये जाने को लेकर एक समझौता हुआ था. समझौते के मुताबिक़ मुख्य पुजारी लीलाधर जोशी और उनके पुत्र को एक पक्ष कहा गया और मुख्य पुजारी के भांजे हरीश जोशी को दूसरा. इन दोनों को बारी-बारी एक-एक वर्ष के लिए मंदिर परिसर में पूजा करने का अधिकार उक्त मीटिंग में दिया गया. एक समझौता-पत्र भी तैयार किया गया.
कथित समझौता-पत्र के हिसाब से कल यानी 30 अगस्त 2019 को पूजा की जिम्मेदारी लीलाधर जोशी और उनके पुत्र को मिल जानी चाहिए थी जबकि हरीश जोशी कहते हैं कि समझौते पर हुए उनके दस्तखत की उन्हें खुद कोई जानकारी नहीं है.
अब मंदिर समिति ने मामले में एंट्री ली और कहा कि हरीश जोशी समझौते का उल्लंघन करने के दोषी हैं और उनके खिलाफ एफआईआर की जाएगी. विवाद बढ़ा तो कमेटी ने मंदिर के गेट पर ताला ठोक दिया.
मामले ने पुलिस-कचहरी पहुंचना ही था सो ऐसा ही हुआ. बाद में पुलिस और प्रशासन की मौजूदगी में दोनों पक्षों को साथ बिठाकर राजीनामा करवाया गया और 9 सितम्बर 2019 तक हरीश जोशी को मंदिर का पुजारी बने रहने का अधिकार दे दिया गया.
तीन-चार घंटे के बाद ताला खोल दिया गया.
मेला आने को है. श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या उसमें आएगी ही. बड़ी मात्रा में भेंट-चढ़ावा आएगा. समय बदल चुका है इसलिए ऐसे विवाद होना अब कोई आश्चर्य पैदा नहीं करता. साल के किसी भी सामान्य दिन नन्दादेवी परिसर में जाइए तो आपको स्कूली लड़के-लडकियां और आवारा कुत्ते धूप सेंकते, समय काटते नजर आएंगे. उन दिनों कोई किसी तरह का विवाद नहीं करता.
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