कला साहित्य

मुझे पतंग उड़ाना सीख लेना चाहिए था

बहुत दूर तक नहीं जाती थी पतंग मेरी
पश्चिम को बहती हवा अगर
दो कलाइयां मारकर गिर जाती
शिशू के आंगन, अनाथालय की छत या ज़्यादा से ज़्यादा डक्टराइन आंटी के अहाते में
हवा पूरब को होती
तो शोभा चाचा की छत पर लगा एंटीना

उसका आख़िरी ठिकाना था
कहीं को नहीं बहती थी अगर हवा
तब भुतहा मकान में उगे लम्बे यूकेलिप्टस के पेड़ों में अटक जाती

मुझे पेंच लड़ाना नहीं आया
तिरछा काटना या दोहरी डालना मेरे लिए अबूझे दांव थे
कोई भी काट लेता मेरी पतंग बहुत आसानी से
संदीप, रिंकू या बड़े बालों वाला वो लड़का
जिसके बाजू वाली छत पर
नारंगी-नीले सूट वाली लड़की का दुपट्टा जाने किसके लिए लहराता था

मैं पुच्छल्ले तो लगा लेता था
पतंग की पेंदी में
पुराने कैसेट की रील या अख़बार के मगर
मुझे कभी नहीं आया
कन्नी बनाना
तान कर देखना धनुष की तरह
कि कितना मजबूत है कमंचा
फटी पतंग में आटे की लेई से चिप्पियाँ लगाना
भारी करने को पेटे के किसी कोने से बांध देना डोर का एक टुकड़ा जब हवा तेज़ हो

बहुत सिखाया बड़ों ने मुझे छुड़इयाँ देना मगर
सिर के ऊपर उठाते ही
पंजे उचकाने के पहले
छूट जाती थी मुझसे पतंग
लगता कि खींच लिया हो उड़ाने वाले ने पतंग के साथ ही थोड़ा सा लड़कपन मुझसे

मैं परेती सम्भालता तो हाथ दुखते
घग्घा मारता तो सांस फूल जाती
चिपक जाते अंगूठे और कनिष्ठिका
लूटी हुई डोर के चौवे बनाने में

मुझसे लूटी न गई पतंग कभी
जो कभी आ गई हाथ
तो जाने क्यों लगता कि किसी और की कोई बहुत प्यारी चीज़ छीन ली हो
जैसे मुझसे छिन गया था लड़कपन

मैं वापस दे आता
या रख देता छत पर टँकी के नीचे
जैसे कोई देखता हो उसे भरोसे से

मुंडे जल, पट्टीदार, आंख मार, नीली बोट
ये नाम बहुत गुदगुदी से आते-जाते मेरे भीतर
गुनगुनाते
नरम धूप से दिल में मेरे कविता की तरह
मैं निहारता उन्हें आसमान के आख़िरी छोर तक
डोर उनकी मेरे हाथ कभी रही या नहीं
उनके हिस्से का आसमान मेरे साथ रहा
मेरे अयोग्य होने की समझ भी
किसी ठसक की तरह क़ायम रही

अब पतंगे तो दिखतीं हैं पर उनका आसमान नहीं दिखता
पेंच दिखते हैं
दांव दिखते हैं
घाव दिखते हैं
मेरी मुट्ठियों में ढुंढे के टुकड़े सीलते हैं
टूट जाता है देर तक दबाया हुआ तिलकुट
चिपका रह जाता है जीभ पर बड़े हो जाने के कसैले अहसास सा खिचड़ी का स्वाद

सीधे सादे बच्चों को बचपन में खूब प्यार मिलता है
उन्हें पतंग उड़ाना आए न आए
पीठ पर रहता है
एक आश्वस्त हाथ
बड़े होते ही पर
इस दुनियादार दुनिया में
उनके लिए नहीं रह जाती
पतंग कटते जाने पर सहानुभूति भी

मुझे पतंग उड़ाना सीख लेना चाहिए था!

अमित श्रीवास्तव

जौनपुर में जन्मे अमित श्रीवास्तव उत्तराखण्ड कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं. अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी तीन किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता), पहला दख़ल (संस्मरण) और गहन है यह अन्धकारा (उपन्यास).

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

इसे भी पढ़ें : कहानी : कोतवाल का हुक्का

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago