Featured

उस पार छिपा है क्या, मैं भी तो जानूं जरा

टाइम्स समूह की चेयरमैन इंदु जैन ने बीते गुरुवार निर्वाण पा लिया. जिस तरह उन्होंने जीवन को भरपूर जिया, भरपूर समझा, उसके बाद मृत्यु नहीं, सिर्फ निर्वाण ही संभव हो सकता है. सत्य को जान लेने के बाद मृत्यु कैसे हो सकती है. मृत्यु तो तब होती है, जब हम अपने अज्ञान में जीवन की तमाम इच्छाओं को पूरा करने के लिए छटपटाते हैं और यमराज को हमें जबरन ले जाना पड़ता है. इंदु जैन तो उस पार की दुनिया को जानने के लिए इतनी उतावली थीं कि उन्होंने कई साल पहले खुद ही जीवन से अपने प्रस्थान की तैयारी शुरू कर दी थी. उन्हें इस बात को लेकर मन में कोई संशय नहीं था कि उनके जाने का शोक नहीं बनाया जाना चाहिए, बल्कि उत्सव मनाया जाना चाहिए.
(Mind Fit 39 Column)

बात भी सही है. जीवन को न समझ पाने वाले ही मृत्यु का शोक मनाते हैं. जब कोई सत्य को पा ले, प्रबोधन की प्राप्ति कर ले, तो उसका जाना असामान्य हो जाता है. इस जाने को ही निर्वाण कहा जाता है. निर्वाण का शोक भला कैसे मनाया जा सकता है. जीवन को बहुत गहराई से समझने वाला व्यक्ति ही शरीर छोड़कर जाने का शोक मनाने से इंकार कर सकता है. इंदु जी ने कुछ वर्ष पूर्व अपने अंतिम प्रस्थान की तैयारी करवाने के मकसद से अपने मित्रों को लिखे एक पत्र में मृत्यु का इतना सुंदर बखान किया है कि वह कोई डरने या घबराने वाली वीभत्स चीज नहीं, बल्कि एक नया रोमांच जगाने वाली इंतजार किए जाने लायक एक खूबसूरत घटना लगने लगती है.  

अपने मित्रों को लिखे पत्र में इंदु जी ने लिखा – ‘मृत्यु जीवन की कला का ही विस्तार होना चाहिए. इस मायने में मैं खास रही कि मैंने एक बहुत आराम से भरा जीवन जिया, लेकिन वे बेपनाह खुशियां थीं, जिनका सबसे ज्यादा फर्क पड़ा. मेरे जीवन का हर पहलू संतोष की चमक लिए रहा और एक शांति की भी. मुझे कभी किसी भी चीज को पाने के लिए उदास नहीं होना पड़ा. कोई कमी अगर रही, तो वह नाखुशी की थी.’
(Mind Fit 39 Column)

इंदु जी के ये वाक्य साबित करते हैं कि उनकी आंतरिक यात्रा किस मुकाम तक पहुंच चुकी थी. दुनिया में पद, प्रतिष्ठा और पैसे वाले लोगों की कमी नहीं. लेकिन उनके भीतर झांककर देखो, तो असंतोष का सागर लहराता दिखेगा. जिस संतोष और शांति की बात इंदु जी ने की, ऐसी संत आत्मा ही कर सकती है. यह जीवन की गहरी समझ से ही संभव है कि कोई हर पल घटने वाली अलग-अलग तरह की घटनाओं से निरपेक्ष हमेशा समभाव में बना रहे.

ऐसा नहीं कि इंदु जी की संत प्रकृति ने उन्हें धीर-गंभीर बना दिया हो. उनका सान्निध्य पाने वाले जानते हैं कि वह कितने बाल-उल्लास से भरी रहती थीं. उनमें इतना जीवन भरा हुआ था कि वह हर पल छलकता ही रहता था. उनके लिए जीवन हर एक पल में छिपा हुआ था. उस पल में कुछ भी क्यों न हो रहा हो. अपने किसी कर्मचारी को अच्छा भोजन करवाना ही उनके लिए बड़ी खुशी की वजह बन जाता था. जीवन के हर पल को जिसने इतने आनंद में डूबकर जिया हो, वह क्यों मृत्यु में दुख की बात करेगा.
(Mind Fit 39 Column)

मुंबई में उनसे कुछ मुलाकातें संभव हुई और उन्हें साक्षात देखने के बाद ही मैंने जाना कि वह जो उनके चेहरे पर एक प्रभा और आलोक दिखता था, वह प्रमाण था कि उनके भीतर प्रबोधन का दीप जल चुका था. उनसे मुलाकातों के दौरान मैंने पाया कि जितना उनके चेहरे पर तेज था, आचार-व्यवहार में उतनी ही सरलता थी. इस सरलता के चलते उनके आसपास हमेशा एक खुशनुमा वातावरण बना रहता था.

इंदु जी मृत्यु पर शोक मनाने के खिलाफ थीं. शरीर छोड़कर परलोक यात्रा पर निकलते हुए उन्होंने अपने मित्रों से शोक नहीं मनाने का आग्रह किया. उन्होंने पत्र में लिखा है – ‘मेरे करीबी लोग जानते हैं कि मैं मृत्यु से भी उसी उत्सव के भाव से मिलूंगी, जिससे मैंने जिंदगी को गले लगाया है.’ इंदु जी के इस पत्र को पढ़कर मेरे मन में बहुत लंबा मंथन चला. मैंने पाया कि किसी के जाने ने मुझे पहले इतना और इस तरह अभिभूत नहीं किया था.

सचमुच मेरे मन में शोक नहीं था, वहां जीवन के उत्सव की समझ अंकुरित हो रही थी. मृत्यु के प्रति ऐसे उत्सव का नजरिया सत्य को जान लेने वाली आत्मा में ही प्रकट हो सकता था. क्या हैरानी कि यह आत्मा अपनी निर्वाण यात्रा पर निकलते-निकलते भी जीवन को इतना समृद्ध बना गई. पत्र की अंतिम पंक्ति इस संत आत्मा में बसे परम आनंद का संकेत छोड़ जाती है – ‘बस कोई यह न पूछे कि इंदु कहां है. क्योंकि जहां भी हंसी होगी, वे मुझे वहीं पाएंगे. सबने उस महान रहस्य के बारे में बात की है. उस पार न जाने क्या होगा, उस पार जरूर कुछ नया होगा. मैं उसे जानने के लिए अब और इंतजार नहीं कर सकती.’
(Mind Fit 39 Column)

-सुंदर चंद ठाकुर

इसे भी पढ़ें: कोरोना से लड़ने के लिए प्राणायाम है आपका ब्रह्मास्त्र

लेखक के प्रेरक यूट्यूब विडियो देखने के लिए कृपया उनका चैनल MindFit सब्सक्राइब करें

कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online  

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

  • अनंत यात्रा का यह अद्भुत आनन्द। इसे सामान्य तौर पर बहुत कम लोग ही समझ पाते हैं।

    सुंदर जी, आपकी समझ और रुझान भी उसी का संकेत करता है।

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

2 weeks ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

2 weeks ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

3 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

4 weeks ago