उत्तराखण्डी गीतों में ‘अस्यारी को रेटा’ का मतलब

उत्तराखण्ड का लोकमानस जिस प्रकार अपनी सभ्यता व संस्कृति की एक अलग पहचान रखता है, उसी तरह यहां के लोकसाहित्य का भी अपना अनूठा स्वरूप है. मेरे पिछले लेख में उल्लेख था कि किस प्रकार एक ही शब्द में पूरे अभिप्राय को अभिव्यक्त करने की क्षमता कुमाऊं के शब्द भण्डार में निहित है. इसी प्रकार कुमाऊंनी बिम्ब भी किसी भाषा से उधार लिये हुए न होकर पूर्णतः मौलिक गूढ़ अर्थ समाये हैं. (Meaning of Asyari Ko Reta Song)

‘अस्यारी को रेट सुआ! अस्यारी को रेटा, आज का जाइया बटी कब होली भेटा’ को यूं तो हम गा जाते हैं, किसी भी गीत के बोल के साथ इसको जोड़ कर. इस पर गौर किये बगैर कि गीत का जन्म जिस जमीन पर होता है, उसकी नकल दूसरी जगह होने पर स्वरूप भी बदल जाता है. पिछले एक लेख में ‘त्वीलै धारो बौला’ का जिक्र किया था. दरअसल ‘त्वीलै धारो बौला’ मूल गीत है और मुझे लगता है कि जब गढ़वाली में इसका प्रयोग हुआ तो बदलकर ‘तीलै धारू बोला’ हो गया. या यूं कहें कि मूल गीत ‘त्वीलै धारो बौला’ का ‘तीलै धारू बोला ’ गढ़वाली संस्करण है. इसीप्रकार ‘अस्यारी को रेटा’ भी ‘अस्याली को रेटा’ रूप में देखने को मिलता है. सच तो ये है कि अस्यारी और अस्याली का अन्तर इसके मूल बिम्ब  से ही हमें भटका देता है. (Meaning of Asyari Ko Reta Song)

पहले बात अस्याली की. अस्याली शब्द अस्यारी का शहरी शब्द है अथवा उससे भिन्न, यह विचार का विषय है. सुना है कि अस्याली गढ़वाल क्षेत्र में पायी जाने वाली एक मछली विशेष की प्रजाति है. इसके पेट के घेरे को (अस्याली का रेट) कहा जाता है. लेकिन यह शब्द बहुत कम चलन में है और यदि हम अगली पंक्ति पर जायें – आज का जाइया बटी कब होली भेटा तो यह दूसरी पंक्ति मात्र तुकबन्दी के अतिरिक्त इसमें कोई बिम्ब परिलक्षित नहीं होता.

अब बात करें मूल शब्द अस्यारी को रेटा की. इसमें जिस तरह का बिम्ब देखने को मिलता है, वह कुमाऊं की समृद्ध बिम्ब विधान को जताने के लिए काफी है. सबसे पहले बात करें कि अस्यारी है क्या? पर्वतीय ग्रामीण समाज में जब तक तराजू जैसी चीजें नहीं पहुंची थी, तो अनाज आदि की माप के लिए माणा, नाई तथा पसेरी का प्रयोग होता था. माणा की माप आधा सेर के बराबर होने से इसे अधसेरी भी कहा जाता था, जो शब्द के क्रमिक विकास स्वरूप अपभ्रंश होते-होते अधसेरी से असेरी फिर अस्यारी बन गयी.

अधसेरी

अधसेरी (अस्यारी) में यदि आप आधी अथवा पूरे से कम कोई चीज मापेंगे तो जहां तक अनाज भरा होगा, उसका एक घेरा बनेगा. अगली बार मापने पर पहले का घेरा दूसरे घेरे को ढक ले, मुमकिन नहीं. वह घेरा या तो पहले से ऊपर होगा अथवा नीचे. इस गीत में भी अगली बार मिलने की संभावना को इसी बिम्ब से दर्शाया गया कि जिस प्रकार ’अस्यारी ’ का रेट (घेरा) जो एक बार मिला है दुबारा संयोगवश ही मिल सकता है, इसी प्रकार आज से जाने के बाद मिलने की संभवना को ‘अस्यारी के रेट’ के बिम्ब से अभिव्यक्त किया गया है. है ना ! कुमाऊंनी भाषा का गजब का बिम्ब विधान.

– भुवन चन्द्र पन्त

लेखक की यह रचना भी पढ़ें : फतोड़ना कि गदोरना – अद्भुत है कुमाऊनी भाषा का शब्द भण्डार


हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

देश के लिये पदक लाने वाली रेखा मेहता की प्रेरणादायी कहानी

उधम सिंह नगर के तिलपुरी गांव की 32 साल की पैरा-एथलीट रेखा मेहता का सपना…

11 hours ago

चंद राजाओं का शासन : कुमाऊँ की अनोखी व्यवस्था

चंद राजाओं के समय कुमाऊँ का शासन बहुत व्यवस्थित माना जाता है. हर गाँव में…

15 hours ago

उत्तराखंड में भूकम्प का साया, म्यांमार ने दिखाया आईना

हाल ही में म्यांमार में आए 7.7 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप ने 2,000 से ज्यादा…

1 day ago

हरियाली के पर्याय चाय बागान

चंपावत उत्तराखंड का एक छोटा सा नगर जो पहले अल्मोड़ा जिले का हिस्सा था और…

3 days ago

हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा

दिन गुजरा रातें बीतीं और दीर्घ समय अंतराल के बाद कागज काला कर मन को…

4 weeks ago

हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़

हरे-घने हिमालयी जंगलों में, कई लोगों की नजरों से दूर, एक छोटी लेकिन वृक्ष  की…

4 weeks ago