दीपावली के ठीक एक माह बाद जो दीपावली आती है उसका नाम है मंगसीर बग्वाल. इसे उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्र में सम्पूर्ण जनपद उत्तरकाशी, रवाईं जौनपुर, देहरादून जौनसार क्षेत्र टिहरी के थाती, कठूड, बूढ़ा केदार आदि क्षेत्रों में मनाया जाता है. हिमाचल के पहाड़ी क्षेत्रों मे भी मंगसीर बगवाल को मनाया जाता है. रवाईं क्षेत्र के बनाल व अन्य हिस्सों में जिसमें उत्तरकाशी जिले के धनारी फट्टी भण्डारस्यूं के गेंवला गांव इस बग्वाल को द्यूलांग के रूप में मनाया जाता है.
मंगसीर बग्वाल तीन दिन का कार्यक्रम होता है. पहले दिन छोटी बग्वाल, दूसरे दिन बड़ी बग्वाल और तीसरे दिन बदराज का त्यौहार होता है. जिसे व्रततोड़ भी कहा जाता है.
इसमें पहाड़ी क्षेत्रों की विशेष प्रकार की घास बाबैं का मोटा व मजबूत रस्सा बनाया जाता है जिसे ग्रामीण दो हिस्सों में बंटकर खींचते हैं. यह बहुत मजबूत घास होती है. ग्रामीण बड़े उत्साह के साथ इसे खींचते हैं. इस रस्सी को स्थानीय भाषा में व्रत भी कहते हैं. इस रस्सी को तोड़ने की प्रक्रिया को व्रततोड़ कहते हैं. इस व्रत की बाकायदा पंडित द्वारा पहले पूजा की जाती है. कई लोग इस मान्यता को समुद्रमन्थन की पौराणिक गाथा से भी जोडते हैं.
गढ़वाल के लोकोत्सव मंगसीर बग्वाल की तस्वीरें मयंक आर्या के कैमरे से
इस दौरान गांव घरों में लोग सफाई करते हैं और स्वांला, पकौड़ी और पापड़ी बनाते हैं.
चीड़ के पेड़ से निकाले गये छिलकों को गोलाई में इकठ्ठा करके विशेष प्रकार की बेल (लगला), मालू या भीमल की पतली छड़ी के साथ बांधा जाता है. इसे स्थानीय भाषा में बग्वाल्ठा कहते हैं. फिर लय-धुन गाते हैं और अपने सिर के ऊपर बग्वाल्ठे को घुमाते हुए कहते हैं— भैलो रे बग्वालि भैलो कति पक्वाड़ा खैलो.
मान्यता है कि जो व्यक्ति अपने सिर के बग्वाल्ठे को घुमाता है उसके सारे कष्ट दूर होते हैं.
इस त्यौहार को दीपावली के ठीक एक माह बाद मनाये जाने के पीछे मान्यता है कि माधो सिंह की तिब्बत विजय के उपलक्ष में मंगसीर बग्वाल मनायी जाती है.
दूसरी मान्यता यह है कि प्रभु श्रीराम के रावण पर विजय श्री प्राप्त करने और अयोध्या लौटने की सूचना ठीक एक माह बाद मिली . जिससे दीपावली के ठीक एक महीने बाद यह बग्वाल मनायी जाती है.
तीसरी मान्यता यह है कि काश्तकारों को स्थानीय लोगों को खेती बाड़ी का काम पूरी तरह निपट जाता है, ठंड का सीजन आ जाता है, जिसे ह्यूंद कहा जाता है. इसलिए इस बग्वालके उत्सव को मनाया जाता है.
कारण चाहे जो भी हो हमे अपनी इस पौराणिक व सांस्कृतिक विरासत को संभाले रखना है.
इसके लिए अनघा माउंटेन संस्था व उत्तरकाशि के युवा व जागरूक जन इस पौराणिक व सांस्कृतिक विरासत को कायम रखने के कुछ वर्षों से प्रतिवर्ष जनपद मुख्यालय उत्तरकाशी में मंगसीर बग्वाल का आयोजन करते आ रहे हैं. इस वर्ष यह पर्व 22 नवम्बर 2022 से 24 नवम्बर 2022 तक मनाया जा रहा है .
(यह लेख हमें उत्तरकाशी के शिक्षक रामचन्द्र नौटियाल द्वारा भेजा गया है)
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