एक अमीर आदमी के दो बेटे थे, जब वे बड़े हुए तब उसने दोनों को अपना व्यापार शुरू करने के लिये चार हज़ार रुपए दिए. बड़ा बेटा व्यापार करने चल दिया लेकिन छोटे बेटे ने उन रुपयों से एक जानेमाने फ़क़ीर से चार सलाह मोल लीं. ये थीं : (Kumaoni Folktale Precious Advice)
1- कभी भी घूमने या यात्राएँ करने अकेले मत जाओ.
2- किसी भी बिस्तर को जाँचें परखे बग़ैर उसपर मत बैठो.
3- मुसीबत के समय चौकन्ने रहो.
4- ग़ुस्से को क़ाबू में रखो.
उसने मन ही मन निश्चय किया कि वो इतने मँहगे दामों पर ख़रीदी गई सलाहों पर ज़रूर अमल करेगा और ये सोचकर वह अपनी यात्रा पर निकल पड़ा. पहले नियम के मुताबिक़ उसे सहयात्री की ज़रूरत थी, सो उसने रास्ते से एक केकड़े को उठाया और उसे अपनी टोपी में रख लिया. एक जगह पहुँचकर उसने अपना खाना खाया और सो गया. जब वह सो रहा था तभी एक कोबरा वहाँ आया, वह उसे काटने को झुका ही था कि केकड़े ने कोबरा पर हमला कर दिया. दोनों में गुत्थम-गुत्था होने लगी जिसके शोर से सोया हुआ लड़का जाग गया और उसने साँप को मार डाला. इस तरह उसे फ़क़ीर की दी हुई पहली सीख की क़ीमत पता चली. उसे इस सलाह के पूरे एक हज़ार रुपए देने पड़े थे लेकिन इससे उसकी जान बच गई.
लड़के ने अपनी यात्रा ज़ारी रखी और जब रात होने को आई तब वह एक ऐसे मकान पर जा पहुँचा जहाँ एक सुंदर मगर मक्कार औरत रहती थी. उसने बड़े ही आदर से उसका स्वागत किया और बढ़िया खाना खिलाने के बाद सुंदर सजे हुए पलंग पर सोने के लिए भेज दिया. लड़के को दूसरी सलाह याद थी सो उसने बिस्तर पर लेटने से पहले उसके नीचे देखा. वह यह देखकर हैरान रह गया कि पलंग को एक गहरे और अँधेरे गड्ढे के ऊपर रखा गया था. इस तरह दुष्ट औरत के ख़तरनाक इरादों को भाँपते हुए उसने उसे मार डाला और उसकी सारी संपत्ति पर क़ब्ज़ा जमा लिया. फ़क़ीर की सलाह मानने के लिये खुद को शाबासी देते हुए उसने अपनी यात्रा को जारी रखा और एक शहर में पहुँच गया.
लड़के को एक बूढ़ी विधवा के घर में रहने की जगह मिल गई. उसने अपने घर में उसका स्वागत किया, साथ ही बड़े दु:ख के साथ बताया कि उसी रात को राक्षस द्वारा उसके बेटे को खा जाने की बारी है. इस विचित्र कहानी के बारे में और पूछने पर मालूम हुआ कि राक्षस ने राजा की बेटी के शरीर में साँप बनकर अपना ठिकाना कर रखा है. अगर उन्होंने रोज़ रात को एक आदमी का इंतज़ाम उसकी भूख शांत करने के लिए ना किया होता तो उसने बहुत पहले ही राजकुमारी को खा लिया होता, शायद राजा और उसके दरबारियों को भी. रात को वह राक्षस साँप बनकर राजकुमारी के मुँह से बाहर आता और एक विशाल रूप धर कर अपने शिकार को खा डालता. यह कहानी सुनकर पहले तो लड़के को डर लगा लेकिन फिर फ़क़ीर की तीसरी सलाह को याद कर उसने बुढ़िया के बेटे की जगह लेने के लिये खुद को प्रस्तुत किया. यह जानकर बुढ़िया खुश होकर इस बात के लिये राज़ी हो गई.
लड़के ने महल जाने की तैयारी शुरू की. उसने अपने चारों तरफ़ दर्जन भर रौशनियाँ रखने को कहा और खुद हाथ में तलवार लेकर राजकुमारी के महल में बैठ गया. उसने इस बात का ध्यान रखा कि उसे नींद न आए और वह पूरा समय जागता रहे. आख़िरकार राक्षस आया और उसने रौशनियों को बुझाना शुरू कर दिया. जब वह आख़िरी रौशनी को बुझाने ही वाला था तभी युवक ने अपनी तलवार से राक्षस को मार डाला. इसके बाद भी वह कमरे में चारों ओर देखता एकदम सावधान रहा लेकिन फिर कुछ नहीं हुआ. राजा और उसके दरबारी राक्षस के मारे जाने और राजकुमारी के बच जाने से खुश थे. राजा ने राजकुमारी का विवाह युवक से कर दिया और उसे खूब धन दौलत भी दी. कुछ समय बाद उसने घर लौटकर उसने अपनी पहली पत्नी और बाक़ी रिश्तेदारों को अपने अच्छे भाग्य के बारे में बताया.
बहुत साल बीत गए, उसकी पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया जोकि अब बड़ा हो गया था. वह अपनी माँ के साथ पिता से मिलने आया. एक युवक के साथ अपनी पत्नी को देखकर पहले तो वह आगबबूला हो उठा और उसे मारने दौड़ा लेकिन फिर फ़क़ीर की चौथी सलाह को याद कर ग़ुस्से को पी गया. जब उसे पता चला कि वह युवक उसी का बेटा है तब उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा. इस आख़िरी सबूत के रूप में फ़क़ीर की सलाह की क़ीमत उसे पता चल चुकी थी.
हल्द्वानी में रहने वाली स्मिता कर्नाटक की पढ़ाई लिखाई उत्तराखण्ड के अनेक स्थानों पर हुई. उन्होंने 1989 में नैनीताल के डी. एस. बी. कैम्पस से अंग्रेज़ी साहित्य में एम. ए. किया. वे संस्मरण और कहानियाँ लिखती हैं और हिंदी तथा अंग्रेज़ी में अनुवाद करती हैं. लोककथाओं के अनुवाद में उनकी विशेष दिलचस्पी है. वे एक वॉयस ओवर आर्टिस्ट भी हैं और कई जाने माने लेखकों की कविताओं और कहानियों को अपने यूट्यूब चैनल देखती हूँ सपने पर आवाज़ दे चुकी हैं.
यह कथा ई. शर्मन ओकले और तारादत्त गैरोला की 1935 में छपी किताब ‘हिमालयन फोकलोर’ से ली गयी है. मूल अंग्रेजी से इसका अनुवाद स्मिता कर्नाटक ने किया है. इस पुस्तक में इन लोक कथाओं को अलग-अलग खण्डों में बांटा गया है. प्रारम्भिक खंड में ऐतिहासिक नायकों की कथाएँ हैं जबकि दूसरा खंड उपदेश-कथाओं का है. तीसरे और चौथे खण्डों में क्रमशः पशुओं व पक्षियों की कहानियां हैं जबकि अंतिम खण्डों में भूत-प्रेत कथाएँ हैं.
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…