Default

बाघिन को मारने वाले खकरमुन नाम के बकरे की कुमाऊनी लोककथा

बड़ी पुरानी बात है, जाड़ों के दिन थे. पहाड़ पार जंगल में चरने गयी बकरियों में एक गर्भवती बकरी जंगल में ही छुट गयी. जंगल में एक बाघिन भी रहती थी. गर्भावस्था के चलते बाघिन इन दिनों शिकार पकड़ने में उतनी फुर्तीली न थी. जब उसकी नज़र बकरी पड़ी, उसे लगा इसका शिकार तो बड़ा आसान रहेगा.
(Kumaoni Folk Tales Khakarmun)

इससे पहले की बाघिन बकरी पर हमला करती बकरी ने लगा दी दौड़ और पहाड़ की खड़ी चढ़ाई के बीच में पड़ने वाले उड्यार के अंदर हो ली. बाघिन बेचारी बकरी जैसे खड़ी चढ़ाई न उतर सकती न ही चढ़ सकती थी. बकरी का पीछा करते हुये उसके गर्भावस्था की बात बाघिन को जरुर पता चली. सो उसने पहाड़ी के ऊपर ही उसका इंतजार करना मुनासिब समझा.

बकरी के लिये कुछ दिन की गुजर बसर जितनी घास उड्यार में थी ही. दो एक दिन में बकरी को तीन बच्चे हो गये और बाघिन को भी दो बच्चे हो गये. बकरी को एक नर और दो मादा हुये. उसने नर का नाम ख़करमुन और मादा का नाम आति और पाति रखा.

अब बाघिन ने बकरी और उसके बच्चों को खाने की योजना बनाई. उसने बकरी को पहाड़ी के ऊपर से आव़ाज दी और कहा बहन रात के अंधेरे में मुझे यहाँ अकेले में डर लगता है सो तुम मैं से कोई मेरा साथ करने ऊपर आ जाओ.

बकरी तो चालाक थी उसने अपने बेटे को भी आगाह किया पर मन के सच्चे ख़करमुन ने अपनी मां से कहा – मां अगर बाघिन में हमारा बुरा सोचा होगा तो उसका ही बुरा होगा, तू चिंता न कर. मैं पहाड़ी में बाघिन का साथ करने जाऊंगा.

अँधेरा होते ही खकरमुन पहाड़ी पर चला गया और बाघिन को नमस्ते कर कहा रात को साथ करने मैं आया हूँ. बाघिन ख़ुश हो गयी और उसने खकरमुन की आंख लगते ही उसे चट करने की योजना बना ली.

सोते समय बाघिन ने अपने बच्चों को अपनी पीठ की तरफ़ और खकरमुन को मुंह की तरफ़ सुलाया. शिकार के विचार में लेटी हुई बाघिन को झपकी आ गयी. खकरमुन उठा और बाघिन के एक बच्चे को अपने जगह सुलाकर ख़ुद उसकी जगह लेट गया.

रात के अंधेरे में बाघिन ने अपने ही बच्चे का मुंह दबाया और उसे खा गयी. जब वह अपना बच्चा खाकर सो गयी तो खकरमुन जाकर वहीं लेट गया. सुबह उठकर बाघिन ने देखा तो उसे लगा की शायद वह नींद में पलट गयी होगी और गलती से अपना बच्चा ही खा गयी. अपना दुःख छुपाते हुये उसने खकरमुन से कहा कि कोई जंगली जानवर उसके बच्चे को उठा ले गया.

अगली शाम बाघिन ने फिर आव़ाज लगाई आज की रात फिर खकरमुन बाघिन का साथ देने पहुंचा. बाघिन ने फिर पिछली रात की योजना अपनाई व खकरमुन ने भी पिछली रात का ही काम किया और बाघिन ने अपना दूसरा बच्चा भी गवा दिया.
(Kumaoni Folk Tales Khakarmun)

अगली सुबह खकरमुन को जिन्दा देख बाघिन को सब समझ आ गया पर बदला लेने की चाह में उसने अपना दुःख छुपाकर कहा कि उसका दूसरा बच्चा भी कोई जानवर उठा ले गया. इधर खकरमुन की माँ उसे समझाने लगी कि कोई बाघिन से भी ख़तरनाक जानवर धुर में आया है, तू बाघिन का साथ करने मत जा. उधर बाघिन खकरमुन के पूरे परिवार को खा जाना चाहती थी.

खकरमुन बाघिन को सबक सिखाना चाहता था सो उसने मां की एक न सुनी और तीसरी रात फिर से बाघिन के बुलाने पर पहाड़ी में उसका साथ करने चला गया.                

बाघिन ने उसे पहाड़ की ओर सुलाया और रात को झपटने के लालच में उसकी फिर आंख लग गयी. खकरमुन उठा और उसके पीछे की तरफ जाकर बोला ताई मेरा हाथ दब गया थोड़ा खिसको. बाघिन नीद में जैसे ही खिसकी पहाड़ी से नीचे गिरी और उसकी मौत हो गयी. इस तरह खकरमुन ने अपने पुरे परिवार की जान बचाई.
(Kumaoni Folk Tales Khakarmun)

काफल ट्री डेस्क

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

3 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

4 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago