समाज

सामुदायिक रेडियो की मिसाल बनता नैनीताल का ‘कुमाऊं वाणी’

हाल ही में केंद्र सरकार ने देश में 118 नए सामुदायिक रेडियो केंद्र खोलने को मंज़ूरी प्रदान कर दी है. इसमें 16 नक्सल प्रभावित इलाके समेत तीन पूर्वोत्तर राज्य और दो रेडियो स्टेशन जम्मू कश्मीर के लिए है. जिन्हें सामुदायिक रेडियो शुरू करने का लाइसेंस मिला है उनमें स्वयंसेवी संस्थाएं, सरकारी और निजी शैक्षणिक संस्थाएं और कृषि विज्ञान केंद्र शामिल है. केंद्र सरकार की योजना देश के 700 ज़िलों में सामुदायिक रेडियो स्टेशन खोलने की है. इसका उद्देश्य एक ऐसा संपर्क का साधन विकसित करना है जो सामाजिक और स्थानीय सांस्कृतिक परंपराओं को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान कर सके. पिछले कुछ वर्षों में सामुदायिक रेडियो ने इस दिशा में प्रमुख भूमिका निभाई है. Kumaon Vani Community Radio   

2018 में देश के एक महानगर और एक औसत दर्जे के शहर में मार्केट रिसर्च फर्म नीलसन द्वारा किया गया सर्वे बहुत ही दिलचस्प है. सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार टीवी के बाद रेडियो दूसरा सबसे अधिक आम लोगों की पहुँच वाला मीडिया प्लेटफॉर्म है. जबकि मोबाइल के माध्यम से सभी तक आसानी से अपनी पहुँच बनाने वाला सोशल नेटवर्किंग भी सामुदायिक रेडियो के सामने पिछड़ जाता है. अर्थात सभी तक आसानी से अपनी पहुँच बनाने के बावजूद सोशल नेटवर्किंग की अपेक्षा रेडियो लोगों की उम्मीदों पर कहीं अधिक खरा उतरता है. आम जनमानस को अब भी इसकी अपेक्षा रेडियो द्वारा प्रदान की गई जानकारी पर अधिक भरोसा है.

हाल ही में केंद्र सरकार ने देश में 118 नए सामुदायिक रेडियो केंद्र खोलने को मंज़ूरी प्रदान कर दी है. इसमें 16 नक्सल प्रभावित इलाके समेत तीन पूर्वोत्तर राज्य और दो रेडियो स्टेशन जम्मू कश्मीर के लिए है. जिन्हें सामुदायिक रेडियो शुरू करने का लाइसेंस मिला है उनमें स्वयंसेवी संस्थाएं, सरकारी और निजी शैक्षणिक संस्थाएं और कृषि विज्ञान केंद्र शामिल है. केंद्र सरकार की योजना देश के 700 ज़िलों में सामुदायिक रेडियो स्टेशन खोलने की है. इसका उद्देश्य एक ऐसा संपर्क का साधन विकसित करना है जो सामाजिक और स्थानीय सांस्कृतिक परंपराओं को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान कर सके. पिछले कुछ वर्षों में सामुदायिक रेडियो ने इस दिशा में प्रमुख भूमिका निभाई है.    

2018 में देश के एक महानगर और एक औसत दर्जे के शहर में मार्केट रिसर्च फर्म नीलसन द्वारा किया गया सर्वे बहुत ही दिलचस्प है. सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार टीवी के बाद रेडियो दूसरा सबसे अधिक आम लोगों की पहुँच वाला मीडिया प्लेटफॉर्म है. जबकि मोबाइल के माध्यम से सभी तक आसानी से अपनी पहुँच बनाने वाला सोशल नेटवर्किंग भी सामुदायिक रेडियो के सामने पिछड़ जाता है. अर्थात सभी तक आसानी से अपनी पहुँच बनाने के बावजूद सोशल नेटवर्किंग की अपेक्षा रेडियो लोगों की उम्मीदों पर कहीं अधिक खरा उतरता है. आम जनमानस को अब भी इसकी अपेक्षा रेडियो द्वारा प्रदान की गई जानकारी पर अधिक भरोसा है.

सामुदायिक रेडियो की सफलता का सबसे बड़ा कारण आमजनों का इसपर भरोसा क़ायम होना था. स्थानीय भाषा में कार्यक्रम के प्रसारण की वजह से लोग खुद को इससे जुड़ा हुआ महसूस करने लगे हैं. कुमाऊं वाणी ने भी आम लोगों को हर स्तर पर सफलतापूर्वक इससे जोड़ने का काम किया. लोग इसके कार्यक्रम में भाग ले सकते हैं, सवाल पूछ सकते हैं और अपने अनुभवों के आधार पर टिप्पणियों को साझा कर सकते हैं. साथ ही, उन्हें क्षेत्र के महत्वपूर्ण संगठनों के साथ सरकारी, गैर-सरकारी और अन्य हितधारकों को सुनने और अनुभवों का लाभ उठाने का भी अवसर मिलता रहा है.

पिछले कई वर्षों से  इन ग्रामीण समाजों में रेडियो कार्यक्रमों की भूमिका यथावत है. पहले टीवी और अब सोशल नेटवर्किंग के तेज़ी से फैलते जाल के बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में रेडियो की महत्ता कम नहीं हुई है. आज भी रेडियो  सांस्कृतिक आदान-प्रदान और समुदायों को प्रासंगिक सरकारी और गैर-सरकारी सूचनाओं से अपडेट रखने के अलावा यह विशिष्ट लाभार्थियों को योजनाओं से जोड़ने वाले सामाजिक अभियानों को सफलतापूर्वक चला रहा है. 

इसका एक सर्वश्रेष्ठ उदाहरण वर्ष 2016 में  कुमाऊं वाणी द्वारा महिलाओं के स्वास्थ्य और पोषण पर शुरू किया गया एक कार्यक्रम था. जिसमें 16 साल की उम्र से ऊपर की 1000 महिलाओं के साथ एक सर्वेक्षण किया गया. इस स्वास्थ्य सर्वेक्षण के निष्कर्षों को मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी की अध्यक्षता में गठित सलाहकार समिति के साथ साझा किया गया. जिसके बाद कुमाऊं वाणी को ‘महकता आँचल’ नाम से महिलाओं के बीच जागरूकता कार्यक्रम से संबंधित प्रोग्राम चलाने की ज़िम्मेदारी दी गई. हर दिन एक कार्यक्रम को प्रसारित करने की चुनौती को स्वीकार करते हुए  रेडियो कुमाऊं वाणी ने अभूतपूर्व समन्वय के साथ 365 एपिसोड सफलतापूर्वक प्रसारित किए.

इस कार्यक्रम ने न केवल महिलाओं में, स्वयं के स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता पैदा की, बल्कि उन्हें स्वास्थ्य के मुद्दों पर बात करने के लिए प्रोत्साहित भी किया. कार्यक्रम से जुड़ने के बाद किशोरियां और महिलाएं अपने परिवार के सदस्यों के साथ उन मुद्दों पर भी चर्चा करने लगीं जिन पर पहले बात करने से भी हिचकिचाती थीं. यौन संबंधी रोग,  प्रजनन और मासिक धर्म जैसी स्वास्थ्य समस्याओं पर कुमाऊँ वाणी के मंच पर महिलाओं द्वारा स्वतंत्र रूप से चर्चा की जाने लगी.

इसके अतिरिक्त 320 गांवों की कुल 1005 महिलाओं से सीधे संपर्क किया गया और उनके अनुभवों को इसमें शामिल किया गया. नैनीताल और अल्मोड़ा जिले के सरकारी अस्पताल के 10 डॉक्टरों और गैर-सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों से जुड़े विशेषज्ञों के पैनल ने इस पहल से जुड़े और भविष्य के स्वास्थ्य कार्यक्रमों में भी बढ़चढ़ कर योगदान दिया. दूसरी ओर आशा कार्यकर्ताओं ने भी ज़मीनी स्तर पर कार्यक्रम में प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. 

नैनीताल जिले के स्वास्थ्य विभाग ने कुमाऊं वाणी को सम्मानित करते हुए इसके कार्यक्रम महकता आँचल की सफलता को स्वीकार किया है. इसने एक बार फिर इस तथ्य को साबित कर दिया है कि रेडियो सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा में काम करने के लिए समाज के सभी हितधारकों को एक साथ एक मंच पर जोड़ने में महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकता है. स्वास्थ्य विभाग और उससे जुड़े लोगों के साथ मिलकर रेडियो कुमाऊँ वाणी ने जागरूकता की जो मुहिम सफलतापूर्वक चलाई, वह सामुदायिक रेडियो की बेहतरीन मिसाल बन गई है. Kumaon Vani Community Radio 

नैनीताल की रहने वाली हेमा मेहता का यह लेख हमें चरखा फीचर्स से प्राप्त हुआ है.

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Girish Lohani

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