भारत में मंदिरों का इतिहास पुराना है पर असंख्य मंदिरों वाले इस देश में सूर्य मंदिर केवल दो ही हैं. पहला कोणार्क का सूर्य मंदिर और दूसरा उत्तराखंड में अल्मोड़ा के निकट कटारमल का. 13वीं शताब्दी में बनाए गए कोणार्क सूर्य मंदिर के बारे में हम जानते हैं. हालांकि मिस्र में इससे भी पुराने सूर्य मंदिर की खोज की जा चुकी है इसलिए उसका भी संक्षिप्त जिक्र करना ज़रूरी हो जाता है. 4500 साल पुराने मिस्र के इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि ईंट से बनी यह इमारत मिश्र के पांचवे राजवंश के खोए हुए 4 सूर्य मंदिरों में से एक है. इमारत का एक हिस्सा पांचवे राजवंश के छठे शासक ने अपना मंदिर बनाने के लिए ध्वस्त कर दिया था. यह मंदिर काहिरा के दक्षिण में अबुसीर में राजा नुसेरे के मंदिर के नीचे मिला है.
(Katarmal Sun Temple Almora)
मंदिर धार्मिक आस्था के प्रतीक होने के साथ-साथ पर्यटन के भी महत्वपूर्ण अंग होते हैं. ऐसा ही एक सूर्य मंदिर अवस्थित है अल्मोड़ा के पास. बाल मिठाई के लिए प्रसिद्ध छोटा सा हरा भरा शहर मेरा लेकिन विश्व पटल पर अपनी पहचान रखता है. इस शहर के संक्षिप्त इतिहास की बात करें तो तो 1568 में महाराज कल्याण चंद ने इस शहर को स्थापित किया. प्राचीन समय में यह राजापुर भी कहा जाता था. अल्मोड़ा नगर के पर्वत पर भगवान विष्णु का निवास माना जाता है. स्कंद पुराण के मानस खंड में भी इस बात का वर्णन मिलता है कि भगवान विष्णु का कूर्मांवतार इसी पर्वत पर हुआ था. घोड़े के काठी का आकार लिए हुए यह शहर 7.6 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और दिन प्रतिदिन बढ़ती आबादी से इसका स्वरूप बिगड़ता जा रहा है.
यहां के मंदिरों को दो भागों में बांट सकते हैं. शैवती मंदिर समूह विशेषकर शिव के अर्धनारीश्वर अर्थात महिला स्वरूप को समर्पित हैं. इनका निर्माण 17 वीं शताब्दी में अल्मोड़ा के शासक उद्योग चंद ने करवाया था. इनमें त्रिपुरा सुंदरी मंदिर प्रमुख है जो शहर के बीचोंबीच स्थित है. इस मंदिर में नंदा की मूर्ति विराजमान थी जिनसे कुमाऊं वासी बहन बेटी के रिश्ता मानते हैं. जब ट्रेल कुमाऊं कमिश्नर बने तो उन्होंने कुछ फेरबदल कर नंदा की छवि को हटवा दिया था. कहते हैं कि भोलानाथ के क्रोध से बचने के लिए अगले शासक ज्ञानचंद ने फिर से भैरव के आठ मंदिर का निर्माण और नव दुर्गा के नौ मंदिरों का निर्माण करवाया. अल्मोड़ा का नंदा देवी मेला देश भर में प्रसिद्ध है.
इसके अतिरिक्त अनेक प्रसिद्ध मंदिर इस शहर के आसपास स्थित हैं, जिनमें कटारमल का सूर्य मंदिर प्रमुख है. यह एक शानदार सूर्य मंदिर है, जिसे बड़ आदित्य मंदिर भी कहते हैं. यह अल्मोड़ा शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर रानीखेत रोड पर समुद्र तल से 2116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह कुमाऊं का एकमात्र सूर्य मंदिर है. कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण एक ही रात में हुआ था. नागर शैली में बने मंदिर की रचना त्रिरथ है. सूर्य देवता को समर्पित पूर्व मुखी यह प्राचीन वास्तुकला का अनुपम नमूना है. हालांकि इसके निर्माण काल को लेकर इतिहासकार और विद्वान एकमत नहीं है. बताया जाता है कि कत्यूरी राजवंश के तत्कालीन शासक द्वारा छठी से नवीं शताब्दी में इसका निर्माण करवाया गया था. उड़ीसा के सूर्य मंदिर के बाद इसका दूसरा स्थान है. कोणार्क के बाद यह एकमात्र प्राचीन मंदिर है. कुछ इतिहासकार तो इसे कोणार्क के सूर्य मंदिर से भी लगभग 200 वर्ष पुराना बताते हैं. इसे कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल ने निर्मित करवाया था. यहां पर छोटे-बड़े लगभग पैंतालीस मंदिर हैं. स्थापत्य और शिल्पकला का नमूना यह मंदिर ऊंचे वर्गाकार चबूतरे पर स्थित है. समय और मौसम की मार से इसका उच्च शिखर खंडित हो चुका है परंतु इसे देखकर आज भी इसकी भव्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है. सनातन संस्कृति में सूर्य उपासना का पुराना इतिहास रहा है. आदि पंचदेवों में भी सूर्य का स्थान प्रमुख है.
(Katarmal Sun Temple Almora)
कटारमल के मंदिर में भगवान सूर्य की मूर्ति पत्थर या धातु की ना होकर लकड़ी से बनी है और सूर्य देव पद्मासन की मुद्रा में बैठे हैं. गर्भ गृह का नक्काशीदार प्रवेश द्वार चंदन की लकड़ी से ही बनाया गया था जो वर्तमान समय में दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय की दर्शक दीर्घा में रखा गया है. मंदिर की भव्यता और वास्तुशिल्प पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है. मंदिर के प्रांगण में बैठने के लिए पत्थर के बेंच लगे हैं. यहां से अल्मोड़ा शहर का सुन्दर नजारा दिखाई देता है.
एक महत्वपूर्ण बात और. मंदिर के पत्थर में एक ऐसी लिपि लिखी गयी है जिसे भाषाविद् आज तक नहीं पढ़ पाए. ऐसी ही भाषा अल्मोड़ा से दूसरी दिशा में लगभग इतनी ही दूरी पर स्थित कसार देवी मंदिर के पत्थर में भी पाई गए हैं. पुराने समय में मुख्य सड़क से मंदिर तक पैदल जाना होता था लेकिन अब मंदिर तक जाने के लिए सड़क का निर्माण हो चुका है. पटालों से निर्मित लगभग एक किलोमीटर का रास्ता ही पैदल तय करना पड़ता है. यहीं पर कुछ दुकानें हैं जहां पर प्रसाद चढ़ाने के लिए धूप अगरबत्ती, बताशे और अन्य सामान के अलावा खाद्य सामग्री भी उपलब्ध रहती है. भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा मंदिर को संरक्षित स्मारक घोषित किया जा चुका है. इस संबंध में, एक सूचना बोर्ड भी प्रवेश द्वार के पास वर्षों पहले लगाया जा चुका है. मंदिर के आसपास प्लास्टिक के उपयोग की मनाही की चेतावनी भी लिखी है लेकिन जगह जगह लटके प्लास्टिक के पत्र और दूर दूर तक जमीन पर बिखरे प्लास्टिक रैपर मुंह चिढ़ाते हुए दिखे.
(Katarmal Sun Temple Almora)
छोटे मंदिरों के समूह में से एक मंदिर के शीर्ष में एक लगभग चार इंच का वर्गाकार छिद्र है जिसमें से सूर्य की पहली किरण मुख्य मंदिर में रखी आदित्य भगवान की प्रतिमा पर पड़ती है.
राष्ट्रीय स्मारक घोषित होने के बाद भी मुख्य मंदिर में पर्यटक और भक्तों के लिए पूजा अर्चना करने की व्यवस्था पर कोई रोक नहीं है. यहां पर सूर्य देव के अतिरिक्त विष्णु, शिव और गणेश भगवान की भी मूर्तियां हैं. इस मंदिर से कई पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं. मंदिर के नीचे कोसी नदी बहती है जो पहले कौशिकी कहलाती थी. इस नदी का शहर की जलापूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान है. कुछ संत और पंडितों के अलावा मंदिर के संरक्षण हेतु भी सरकारी कर्मचारी हैं जो गाइड के रूप में भी सहायक होते हैं.
कटारमल मंदिर के पास ही पंडित गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान भी स्थित है. ऊंचाई पर स्थित मंदिर के विशाल प्रांगण से पूरा अल्मोड़ा एक नज़र में शहर देखा जा सकता है. सामने बर्फ से ढकी चोटियां यानि हिमालय के अद्भुत दर्शन होते हैं. जाड़े के मौसम में जब इन पर्वत श्रृंखलाओं पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो यह चमचम चांदी सी चमक उठती हैं. गर्मी का मौसम वहां पर जाने के लिए सर्वदा अनुकूल है. धार्मिक आस्था रखने वाले लोग, पर्यटक, फोटोग्राफी के शौकीन लोग, शोधरत छात्र, पर्यावरणविद और इतिहासकार आदि सभी लोग विभिन्न प्रयोजन हेतु इस क्षेत्र में आपको मिल जाएंगे. यह मंदिर देश की महत्वपूर्ण धरोहर है. मंदिर के मौलिक स्वरूप में छेड़छाड़ किए बिना इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है.
(Katarmal Sun Temple Almora)
अमृता पांडे
मूलरूप से अल्मोड़ा की रहने वाली अमृता पांडे वर्तमान में हल्द्वानी में रहती हैं. 20 वर्षों तक राजकीय कन्या इंटर कॉलेज, राजकीय पॉलिटेक्निक और आर्मी पब्लिक स्कूल अल्मोड़ा में अध्यापन कर चुकी अमृता पांडे को 2022 में उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान शैलेश मटियानी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
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