उत्तराखण्ड के 2 गायक कोक स्टूडियो भारत सीजन-2 में अपने सुरों का जादू बिखेरने जा रहे हैं. पहली हैं खांटी कुमाऊनी लोक गायिका कमला देवी और दूसरे हैं संगीतकार, गिटारिस्ट और सुरीले गायक दिग्विजय सिंह परियार. (Kamla Devi Digvijay singh)
कमला देवी बागेश्वर जिले के गरूड़ तहसील के लखनी गाँव की रहने वाली हैं. कमला देवी जितने अधिकार के साथ राजुला मालूशाही की प्रणय लोकगाथा का गायन करती हैं उतने ही अधिकार के साथ वे जागर भी गाती हैं. वे 2003 से राजुला मालूशाही का गायन करती आ रही हैं. पिता ही उन के गुरु थे, जो राजुला मालूशाही, हुड़किया बौल, शकुनाखर और जागर गायन में महारथ रखते थे. कमला की लोक गायन में दिलचस्पी को देखते हुए उन्होंने बचपन से ही उन्हें लोक संगीत के शास्त्रीय सुरों का अभ्यास कराना शुरू किया. आज कमला देवी उत्तराखण्ड के लोक संगीत की विभिन्न विधाओं के साथ राजुला मालूशाही, हुड़किया बौल, न्योली, छपेली, भगनौल और जागर की सिद्धहस्त गायिका हैं. 15 साल की उम्र में उन्होंने आसपास के गाँवों में सार्वजनिक रूप से झोड़ा और चांचरी गाना शुरू कर दिया था. 6 बहनों और 3 भाइयों में एक वही थीं जिन्होंने पिता की गायकी को आगे बढ़ाने के बारे में सोचा.
संसाधन विहीन परिवेश से होने की वजह से उन की गायकी घर-गाँव में ही सीमित रह जानी थी, लेकिन होना कुछ और था. जब वे भवाली में छोटा सा ढाबा चलाकर गुजर कर रही थीं तभी एक दिन भिकियासैण में रहने वाले शिरोमणि पंत वहां पहुंचे. उन्होंने वहां पर कमला देवी को चांचरी गाते हुए पाया, बोल थे – धार मा मीठ काफला, काफला तू पाकला कब. ढाई दशक से गायकी कर रहे शिरोमणि पंत ने जब इन सधे और पके हुए सुरों को सुना तो पूछा – क्या उन्होंने ड्रामा डिविजन, दूरदर्शन या किसी और मंच के लिए कभी गाया है? जब कमला देवी ने उन्हें बताया कि उन्हें मंच तक ले जाना वाला कोई है नहीं तो पंत ने कहा आज से समझो मंच मिल गया. इस तरह उन्होंने शरदोत्सव, नैनीताल में अपनी पहली मंचीय प्रस्तुति देने का मौका मिला. उसके बाद कमला उत्तराखण्ड के अलावा लखनऊ, दिल्ली, हैदराबाद, बम्बई आदि महानगरों में 300 से अधिक शो कर चुकी हैं जिस का श्रेय वे शिरोमणि ‘दा को देती हैं.
परिवेश की मजबूरियों की वजह से अशिक्षित रह जाने वाली कमला देवी गर्व से बताती हैं कि आजकल के पढ़े-लिखों से अनपढ़ बेहतर हैं और वे हर डायरी को हरा सकती हैं. आवाज में लोक का खुरदरापन और शास्त्रीय संगीत का सधापन लिए ये ये गायिका कोक स्टूडियो भारत के दूसरे सीजन में जल्द ही दिखाई देने वाली हैं. इस से पहले वे महिंद्रा फाइनेंस के शो ‘भारत की खोज’ की विजेता भी रह चुकी हैं.
नैनीताल जिले के ओखलकांडा ब्लॉक से ताल्लुक रखने वाले दिग्विजय सिंह परियार का परिवार गाजियाबाद में रहता है. उनकी माँ गीत-संगीत की शौकीन रहीं है तो वे 3 साल की उम्र से ही शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण लेने के बाद फिलहाल बॉलीवुड में अपना मुकाम बनाने की कोशिश कर रहे हैं. ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’ से चर्चित होने के बाद दिग्विजय कट्टी बट्टी, स्पॉटलेस, वेडिंगपुलाव, रॉक ऑन टू में गायक, संगीतकार के तौर पर योगदान के लिए जाने जाते हैं.
हिंदी संगीत इंडस्ट्री में बहुत ज्यादा व्यस्त रहने वाले दिग्विजय मौका निकाल कर कुमाऊनी गाने कवर करना नहीं भूलते. उन का एक गीत ‘आज का दिना…’ अरिजीत सिंह द्वारा गाए गए पहाड़ी गीत की अफवाह वाले सन्देश के साथ वायरल हुआ था.
दिग्विजय भी कोक स्टूडियो सीजन टू में उत्तराखण्ड के लोक गीत गाते दिखाई देने वाले हैं.
जहाँ कमला देवी उत्तराखण्ड के पारंपरिक लोक संगीत की अलख जलाएँगी वहीं दिग्विजय गाएंगे आधुनिक लोक गीत, जिसे लिखा है उत्तराखण्ड के ही प्रतिभाशाली कवि और गीतकार लवराज टोलिया ने. लवराज हिंदी सिने जगत में एक गीतकार के तौर पर अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे हैं. मुनस्यारी जैसे सीमांत कस्बे से मुम्बई पहुँच कर एक गीतकार के तौर पर जगह बनाना दिखाता है कि वे अपने लक्ष्य के लिए कितने एकाग्रचित्त और जुनूनी हैं. मुम्बई में जड़ें जमाने के बावजूद लवराज अपनी जड़ों की ओर लौटना कभी नहीं भूलते. वे हर साल काव्यात्मक लोक गीत रचते हैं और लोक भाषा में उसे स्थानीय लोक गायकों से गंवाते हैं और स्थानीय कलाकारों के साथ फ़िल्माते भी हैं. ऐसा करना वे कभी नहीं भूलते.
लवराज ‘पीएम नरेन्द्र मोदी,’ ‘जोगीरा सारा रा रा’ फ़िल्म के अलावा वेब सीरीज 1962 के लिए गाने लिखने के अलावा कई म्यूजिक एलबम्स के लिए गाने लिखते रहे हैं. सुखविंदर सिंह, जावेद अली, पापोन और सलमान अली जैसे नामचीन गायक उनके बोलों को अपनी आवाज दे चुके हैं.
इस तरह कोक स्टूडियो भारत के दूसरे ही सीजन में आप उत्तराखण्ड के दो लोक गायकों को और एक गीतकार के बोल भी सुन सकेंगे. ये सब कोक स्टूडियो में पहली दफा होगा. उत्तराखण्ड का ठेठ लोक संगीत होगा. ठेठ और नयी पीढ़ी के युवा गायक होंगे और डीजे छाप गानों से अलग भावों से भरे लोकगीत लिखने वाले गीतकार भी होंगे. उत्तराखण्ड के लोक संगीत के लिए इस साल की शुरुआत में ही इस से अच्छी खबर और क्या हो सकती है. (Kamla Devi Digvijay singh)
-सुधीर कुमार
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