Categories: Featuredसमाज

कालिदास की कल्पना का रहस्य लोक उत्तराखण्ड

राजधानी के चहल-पहल भरे वातावरण में आपाधापी, दौड़ धूप, भीड़-भाड़ और शहरी प्रदूषण की बीच जब कभी मन कल्पना के पंख लगाकर सुदूर कुमाऊं की पहाड़ियों में उड़कर पहुंचता है तो मन को कितनी शांति मिलती है, कितना सुख और संतोष मिलता है, उसका वर्णन करना संभव नहीं है. कुमाऊं में तो बचपन बीता. सीधा-सादा बचपन. भोला-भाला बचपन जहाँ अभाव और गरीबी में भी उत्साह, उमंग और सुख था, संघर्ष में भी मिठास थी, जीवन का अदभुत आकर्षण था. बुरांश के फूलों के सौन्दर्य के साथ प्योली व दूदभाती का सौन्दर्य था. राजुला और मालसाई के ह्रदय की धड़कन धरती पर महसूस होती थी. हुड़के, बिणाई, अलगोछे और बांसुरी की सुरीली धुन मोहक लगती थी. पनघट पर गागरों और चूड़ियों की खनक का स्वर गूंजता था. घस्यारी की दातुली के छुड़कों के क्या कहने. मां की ममता और रणमणी, ऋतुरैण के गीतों की कसक, गोरिल की गाथा, हरुहीत, झंकरू पैक, गांगी रमौल का शौर्य सब कुछ सुनने को मिलता था. झोड़ों के झमाके थे. दैरी-चांचरी की रौनक थी. भागानौलियों, गिदारों की स्वर-लहरी थी. साथ में बेटी की विदा के क्षण और परदेश गए प्रियतम की याद में कलपती, घुलती नायिका के हृदय की कसक भी दिखाई पड़ती थी, हृदय की गहराइयों तक कटोचती थी. यह सब कुछ आज भी उसी रूप में यादों को साकार करता है और याद आती रहती है वह धरती जो कालीदास की कल्पना का रहस्यलोक है.

कुछ समय पहले बद्रीनाथ धाम की यात्रा से लौटा हूँ. गढ़वाल में जहां भी मैं गया उत्तराखंड के इस प्राकृतिक सौन्दर्य ने और इस अदभुत रहस्यलोक ने मंत्र मुग्ध कर दिया, बादलों को गोद में प्रकृति के नैसर्गिक आंचा; से ढके पहाड़ों की छटा, इठलाती नदियाँ, फैनील झरने, रजत शिखरों की स्वर्णिम आभा, शीतल हवा, हरे-भरे वृक्षों का संगीत, पहाड़ों पर बिछी दूब की चादर, सर्पीली पगडंडियां मानव मन को सुखद एवं स्वर्गिक अनुभूति के साथ एक स्वप्नलोक में ले जाते हैं. ऐसी ही तो होगी कालीदास के रहस्य लोक की कल्पना. उनका प्रकृति वर्णन, मेघदूत की परिकल्पना यहां के कण-कण में व्याप्त सौन्दर्य में साकार है. इस पल-पल परिवर्तित प्रकृति वेश पर कविवर सुमित्राननंदन पन्त भी मंत्र मुग्ध थे. वे मधुप कुमारि से बातें करते, प्रथम-रश्मि और अल्मोड़े के बसंत पर रीझते और पर्वत-पाटी के खिले हुए सौन्दर्य पर मोहित होते थे.

प्रकृति ने अपना सब कुछ उस क्षेत्र की शोभा, रमणीकता और साज श्रृंगार के लिए निछावर कर दिया है. बद्री-केदार, नंदा देवी, पिंडारी, गंगोत्री-यमनोत्री, अलकनंदा, भागीरथी, मन्दाकिनी, पावन गंगा, हरे-भरे बुग्याल, सुन्दर ग्लेशियर गगन चुम्बी शैल-शिखर, लहराते तालाब और रमणीक स्थल, सुंदर झीलें, फूलों की घाटी, पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र अगणित सौन्दर्य-स्थल इस धरती के आभूषण हैं. इस धरती की माटी में अद्भुत संजीवनी शक्ति है, तभी तो हिमालय के आंगन में संघर्षों के बीच भी हंसते खेलते जीवन धड़कने सुनाई देती हैं. प्रकृति के इसी लजीले, रसीले और आकर्षक स्वरूप को कालीदास के काव्य में वाणी मिली है.

सचमुच ऐसा परिवेश हो कवि की साधना-स्थली, सृजन की भावभूमि और अभिव्यक्ति के लिये मधुमती भूमिका की आधार भूमि ही हो सकती है.कालिदास के साहित्य से जिन संस्कारों, परम्पराओं, जीवन-शैली, जीवन-दर्शन, और मानवीय संवेदनाओं की महक आती है वह उस क्षेत्र के जनजीवन एवं लोकमानस में रची बसी है. उनके जन्म स्थान के बारे में कोई भी मत हो, जिस प्रकार हिमालय के साथ भारत का गौरव एवं गरिमा जुड़े हैं उसी प्रकार कालीदास हम सभी के हैं और उनका साहित्य हमारी थाती है.

श्री लक्ष्मी भंडार अल्मोड़ा द्वारा प्रकाशित पुरवासी के 17वें अंक, 1996 में डॉ नारायण दत्त पालीवाल का छपा लेख.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

21 hours ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

7 days ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago