कालापानी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण रिकार्ड्स जो बताते हैं कि जमीन का यह हिस्सा किसका है

नेपाल ने अपने नये राजनीतिक नक़्शे में 19 मई 2020 को भारत के लिम्पियाधूरा, लिपुलेख व कालापानी इलाके तथा गुंजी, नाभी और कुटी जैसे ग्राम भी शामिल कर दिखाए हैं. इससे पहले 1975 में नेपाल की राजशाही ने जो नक्शा जारी किया उसमें लिम्पियाधूरा का 335 वर्ग कि.मी. का इलाका नहीं दिखाया गया था. ब्रिटिश भारत में 1798 से 1947 तक कालापानी इलाके से सम्बंधित नक्शों पर नेपाल को कोई ऐतराज नहीं रहा. नेपाल इस समय अवधि में ब्रिटिश इंडिया के नक़्शे पर आधारित रहा.
(Kalapani and Lipulekh Border Dispute)

उत्तर प्रदेश राजस्व अभिलेखागार, लखनऊ में उपलब्ध, ‘प्री म्यूटिनी रेकॉर्ड्स’ में ऐसे अनेकों सहायक अभिलेख उपलब्ध हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि भारत के सीमांत क्षेत्र में बहने वाली काली नदी का स्त्रोत और लिपुलेख के दक्षिण में पड़ने वाला जलागम क्षेत्र सदैव से भारतीय नियंत्रण में रहा है. इतिहास के अनुसन्धान कर्ता, लेखक के साथ वरिष्ठ नौकरशाह डॉ. रघुनन्दन सिंह टोलिया की किताब ‘ब्रिटिश कुमाऊं गढ़वाल’, वॉल्यूम वन में काली नदी के भारतीय भू-भाग में होने से सम्बंधित विवरण को विभिन्न काल खण्डों में हुई संधियों, ब्रिटिश सरकार व नेपाल की राजशाही के बीच हुई सहमति व विवादों के निबटारे के क्रम में स्पष्ट रूप से लिखा गया है. जिसे साबित होता है कि कालापानी भारत का अभिन्न अंग है. 

वास्तविकता यह है कि ब्रिटिश काल में 1816 से पूर्व की समयावधि में भारत-नेपाल सीमा का यह इलाका असर्वेक्षित रहा था. इस इलाके का पहला वैज्ञानिक सर्वेक्षण 1879 में किया गया. तदन्तर इसे प्रकाशित भी किया गया. 1879 से पहले के सभी मानचित्र जिस सीमा रेखा को दिखाते हैं वह उनके संकेतक के अनुसार असर्वेक्षित एवं अस्पष्ट हैं. 
(Kalapani and Lipulekh Border Dispute)

1816 में भारत और नेपाल के मध्य संगौली सन्धि हुई. इस सन्धि के अनुसार नेपाल और भारत के बीच की सीमा काली नदी के द्वारा निर्धारित की गई. कुमाऊं के 1820 के प्रशासनिक व राजस्व अभिलेख भी इसी तथ्य की पुष्टि करते हैं कि काली नदी का उदगम स्त्रोत व लिपुलेख के दक्षिण का जलागम क्षेत्र सदैव भारतीय सीमा के अधीन रहा है. 

1911 के अल्मोड़ा जिले के गजेटियर के पृष्ठ 252 व 253 में एच्. जी. वालटन ने कालापानी और काली नदी के सम्बन्ध में स्पष्ट विवेचन करते हुए लिखा कि  कालापानी के समीप का समस्त जल ग्रहण क्षेत्र पूरी तरह से ब्रिटिश भारत की सीमा के अंतर्गत आते हैं, जिसमें लिपुलेख दर्रा, ॐ पर्वत स्वतः ही आ जाते हैं. 

कुटी-यांग्ती नदी काली नदी की दो में से मात्र एक सहायक नदी है. इसके समीपवर्ती तीनों गॉंव लिपुलेख 1851 से ही भारतीय सीमा में रहे हैं. ऐसे अन्य कई प्रमाण अल्मोड़ा जनपद के गजेटियरों के साथ ही 1857 में प्रकाशित ईस्ट इंडिया कंपनी के गजेटियर और इसके साथ ही 1876 की फॉरेन लैंड ट्रेड की वार्षिक रिपोर्ट रहीं,  जो हर साल 1925 तक छपती रहीं.
(Kalapani and Lipulekh Border Dispute) 

1924 से 1927 के मध्य एच्.एम.जी.एन.  के अनुरोध पर भारतीय सर्वेक्षण विभाग ने दो वरिष्ठ नेपाली सर्वेक्षण अधिकारियों के निर्देशन में स्थलाकृति सर्वेक्षण किया. इससे प्राप्त मानचित्रों को नेपाल सरकार द्वारा स्वीकृति दी गई थी. इनका प्रकाशन भी किया गया. यह मानचित्र 1879 में किए सर्वेक्षण की सीमा रेखा के अनुरूप थे. 

1961 में हुए चीन-नेपाल समझौते व 1963 में नेपाल-चीन सीमा प्रोटोकॉल में भारत नेपाल व चीन का त्रिकोणीय संगम उसी स्थान में दिखाया गया है जहां पर 1879 के सर्वे में स्वीकार किया था. 29 अप्रैल 1954 को भारत चीन के बीच लिपुलेख दर्रे के व्यापार पथ पर समझौता हुआ था. तब से 2015 तक चीन ने कभी यह नहीं माना कि लिपुलेख वाले भाग जहां से उसे भारत से व्यापार करना है, में नेपाल भी एक पार्टी या पक्ष है. इसी बीच 2002 में एक जॉइंट तकनीकी कमेटी भी बनी. नेपाल की यह कोशिश रही कि इसमें चीन को सम्मिलित किया जाए. 10 मई 2005 को एक प्रेस रिलीज़ कर चीनी विदेश मंत्रालय ने साफ किया कि कालापानी भारत और नेपाल के मध्य का मामला है. 

भारत और नेपाल की संयुक्त प्राविधिक समिति ने 26 वर्षों का समय लगा 182 स्ट्रीप मैप के साथ 98 प्रतिशत रेखांकन का कार्य संपन्न किया था. बाकी दो प्रतिशत कई साल से लटके भी रहे. विवाद की शुरुवात तब हुई जब 2 नवंबर 2019 को भारत ने कश्मीर-लद्दाख से सम्बंधित नक्शा पुनः प्रकाशित किया. हालांकि इसमें सीमाओं सम्बन्धी कोई परिवर्तन नहीं हुआ पर भारतीय विदेश मंत्रालय के स्पष्टीकरण के बाद भी नेपाल ने इस पर अपनी असहमति प्रकट की और इस बात पर जोर दिया कि वह विदेश सचिव स्तर पर ही इसे सुझाएगा. हालांकि 28 मार्च 2019 को विदेश सचिव स्तर की काठमांडू में हुई बैठक में लिपुलेख सम्बन्धी कोई मुद्दा शामिल नहीं किया गया था.
(Kalapani and Lipulekh Border Dispute)

वास्तव में अंदरूनी राजनीति से ध्यान भटकाने के लिए नेपाल बार-बार कालापानी का विवाद खड़ा करता रहा है. छिपकिला-लिपुलेख दर्रे की 75 कि. मी.  सड़क वर्ष 2002 से बन रही थी. इसके बनने पर नेपाल की तरफ से कोई प्रतिरोध नहीं किया गया. इस मार्ग को 2007 में पूरा बन जाना चाहिए था. पर अनेक कारणों से इसकी प्रगति  धीमी ही रही. अंततः इसका उद्घाटन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से 8 मई 2020 को  भारत के रक्षा मंत्री ने किया. 

अब नेपाल के प्रधान मंत्री के. पी. शर्मा ओली ने कालापानी के छागरु गाँव में अर्ध सैनिक बल और आर्म्ड पुलिस फ़ोर्स की तैनाती कर सीमा पर तनाव कर ध्यान भटकाने की रणनीति अपनायी है. सर्वदलीय बैठक में विचार विमर्श किए बगैर उनका यह निर्णय एकतरफा है. नेपाल सरकार की 44 सदस्यों की स्टैंडिंग समिति में ओली को मात्र 14 सदस्यों का समर्थन है. 29 मई को बजट प्रस्ताव पारित होना है और पुष्प दहल प्रचंड के 17 व माधव नेपाल के 13 सदस्य आपस में मिल कुछ उलटफेर कर सकते हैं जैसा संदेह उन्हें कालापानी विवाद खड़ा करने पर मजबूर कर रहा है. 

नेपाल ने 1950 की सन्धि को गंभीरता से नहीं लिया. 31 जुलाई 1950 को हुई सन्धि के आठवें अनुच्छेद में यह साफ कर दिया गया था कि कि इससे पहले ब्रिटिश भारत के साथ जो भी समझौते हुए उन्हें रद्द समझा जाए. यह एक ऐसा महत्वपूर्ण पक्ष है जो कालापानी पर नेपाल के दावों की पोल खोल देता है. पूर्व प्रधान मंत्री बाबूराम भट्टराई इसे राष्ट्रवाद की आड़ में खेल-खेल कर असली मुद्दों से ध्यान हटाने की कोशिश मानते हैं. 

भारत के द्वारा लिपुलेख तक सड़क बना देने के बाद नेपाल ने दार्चुला जनपद की सीमा पर कई गतिविधियां आरम्भ कर दी हैं. जूलाघाट, छागरु गाँव के गागा में एस. पी. एफ. का बी.ओ.पी. खुल गया है. छागरु से तिंकर गाँव तक धीमी गति से बन रही सड़क की निर्माण में तेजी देखी जा रही है. बैतड़ी गाँव के पंचेश्वर रोलघाट में भी बॉर्डर एरिया आउट पोस्ट खोली गई है. भारत चीन की सीमाओं पर 500 चेक पोस्ट बनाने की बात भी नेपाल द्वारा कही गई है, अभी ऐसे 121 बॉर्डर चेकपोस्ट बने हुए हैं. 
(Kalapani and Lipulekh Border Dispute)

भारतीय भूमि को नेपाल द्वारा अपने नक़्शे में दिखाने और कालापानी विवाद को भड़काने से स्थानीय सीमान्तवासियों में असंतोष है. रं कल्याण संस्था के अनुसार माउंट अपि, तिपिल  छयक्त, छिरे और शिमाकल तक की जमीन भारत के गर्ब्यालों की नाप जमीन है. 

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

10 hours ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

7 days ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago