वर्ष 2003 में आज ही के दिन जॉनी वॉकर दुनिया से विदा हुए थे. करीब तीन सौ फिल्मों में कमाल का अभिनय करने वाले इस अभिनेता का जन्म इंदौर नगर में एक मिल-मजदूर के घर में 11 नवम्बर 1926 को हुआ था. मिल बंद हो जाने से बेरोजगार हो जाने पर उनके पिता बंबई चले आये जहाँ बहरुद्दीन जमालुद्दीन काजी के ऊपर अपने पूरे परिवार के भरणपोषण का दायित्व आ गया था. उन्होंने बहुत तरह के काम किये और अंततः बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट यानी बेस्ट में बस कंडक्टर बन गए. इसके अलावा खाली समय में वे आइसक्रीम, फल, सब्जी और स्टेशनरी वगैरह की फेरी लगाने का काम भी करते थे. अपनी पूरी जवानी भर उन्होंने फिल्मों से जुड़ने का ख़्वाब देखा और नूर मोहम्मद चार्ली उनके रोल मॉडल हुआ करते थे. (Johny Walker Death Anniversary)
बस कंडक्टर बन जाने के बाद भी उन्होंने अपना सपना नहीं छोड़ा और इस काम को कर्ते हुए वे इस उम्मीद में बस-यात्रियों का मनोरंजन किया करते थे कि शायद किसी फ़िल्मी हस्ती की कभी उन पर निगाह पड़ जाय. (Johny Walker Death Anniversary)
और उनका सपना एक दिन वाकई सच हो गया जब बलराज साहनी ने उन्हें नोटिस किया जब वे एक शराबी की एक्टिंग करके लोगों को बहला रहे थे. बलराज साहनी ने उनका नाम गुरुदत्त को सुझाया जिन्होंने न सिर्फ बहरुद्दीन जमालुद्दीन काजी को ‘बाजी’ फिल्म में काम दिया बल्कि स्कॉटलैंड की मशहूर दारू के नाम पर उनका नया नामकरण भी कर दिया.
उसके बाद जॉनी वॉकर ने गुरुदत्त की लगभग सारी फिल्मों में काम किया. उन्होंने हिन्दी फिल्मों में अधिकतर कॉमेडियन के रोल्स ही किये लेकिन बाद में उन्होंने फिल्मों से यह कहकर संन्यास ले लिया कि नए जमाने में कॉमेडियन की कोई पूछ नहीं रही.
‘मेरे महबूब’. ‘सीआईडी’. ‘प्यासा’ और ‘चोरी चोरी जैसी फिल्मों ने उन्हें स्टार बना दिया. 1964 में गुरुदत्त की मृत्यु के बाद उनका करियर बहुत बुरी तरह प्रभावित हुआ. उन्होंने बिमल रॉय और विजय आनंद जैसे निर्देशकों के साथ भी काम किया था.
1980 का दशक आते आते उनका करियर धुंधला पड़ता गया क्योंकि उन्होंने नए समय की फिल्मों की कॉमेडी की विद्रूपता और सस्तेपन से समझौता करने से इनकार कर दिया था अलबत्ता 14 वर्ष फिल्मों से अनुपस्थित रहने के बाद उन्होंने 1997 की फिल्म ‘चाची 420’ में अभिनय किया.
इस बीच उन्होंने हीरे-जवाहरात काम किया 1985 में एक फिल्म ‘पहुंचे हुए लोग’ प्रोड्यूस भी की.
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