समाज

आज से लगेगा जौलजीबी का मेला

अब तो यह बीते बरसों की बात रही पर कभी जौलजीबी का मेला इलाके का सबसे बड़ा व्यापारिक मेला हुआ करता था. तीन देशों तिब्बत, नेपाल और भारत की साझी संस्कृति सजती काली और गोरी के संगम पर. जौलजीबी के मेले की व्यापारिक पकड़ के लिये तो कहा जाता है कि पहाड़ों से लगे मैदानी क्षेत्रों से लेकर समुद्र से लगे कलकत्ते तक के व्यापारी इस मेले में माल ख़रीदने आया करते थे.
(Jauljibi Mela 2022)

पहले जगह-जगह बाज़ार न थे. पहाड़ के लोग आम-जीवन में जरूरत की चीजों के लिए भी इन्हीं मेलों पर निर्भर रहा करते. फिर चाहे कृषि का सामान हो या पहनने खाने की चीजें पहाड़ के लोग मेलों पर खासे निर्भर रहा करते.

मसलन जौलजीबी के मेले में तराई-भाबर के लोग बर्तन लाया करते. तिब्बत, जोहार, दारमा, व्यांस के व्यापारी सांभर खाल, चँवर- पूँछ, कस्तूरी, जड़ी-बूटियों और ऊनी वस्त्र जैसे- दन-कालीन, चुटका, थुलमा, ऊनी पॅखी आदि का व्यापार करते. नेपाल का घी और शहद तो जौलजीबी मेले में लोकप्रिय था ही साथ ही हुमला-जुमला के घोड़े भी ख़ूब ऊंचे दाम पर बिकते. मेले में हल, ठेकी, डोके, दाथुली का भी अच्छा व्यापार हुआ करता.
(Jauljibi Mela 2022)

1962 के भारत चीन युद्ध का इस मेले पर खासा प्रभाव पड़ा. युद्ध के बाद तिब्बत के व्यापारी और कौतिक्यार इस मेले में आने बंद हो गये. 1975 में जब उत्तर प्रदेश सरकार ने मेले का आयोजन अपने हाथ लिया तो उम्मीद बंधी की जौलजीबी का मेला अपने व्यापारिक महत्व की साख को फिर से क़ायम करेगा पर धीरे-धीरे बाज़ार बड़ा और अन्य मेलों की तरह जौलजीबी के मेले की भी व्यापारिक चमक भी फीकी होती रही.

वर्तमान में इस मेले अधिकांश व्यापारी तराई-भाबर और मैदानी इलाकों से आते हैं. मेले में रोजमर्रा के सामान के अतिरिक्त नेपाल के हुमला-जुमला के घोड़े आज भी एक प्रमुख आकर्षण हैं. बड़े-बड़े झूले, जलेबी की छोटी-छोटी दुकानें, टिक्की-चाऊमीन के फड़,  सरकारी विभागों के स्टाल और कुछ स्थानीय उत्पाद आज भी मेले में देखने को मिलते हैं. स्कूली बच्चों के सांस्कृतिक कार्यक्रम जौलजीबी मेले का एक अन्य आकर्षण हैं.

इस इलाके में भारत और नेपाल के बीच रोटी-बेटी का पुराना रिश्ता है. इस रिश्ते के चलते आज भी दोनों देशों की बेटियां मेले के बहाने अपनों से भेंटने जरुर जाती हैं. एक धार्मिक मेले से व्यापारिक मेले में रुपांतरित जौलजीबी मेले का यह सबसे मजबूत पक्ष नजर आता है.
(Jauljibi Mela 2022)

जौलजीबी मेले का इतिहास यहां पढ़िये- तीन देशों की साझी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक ऐतिहासिक जौलजीबी मेला

काफल ट्री डेस्क

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

4 days ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

1 week ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

1 week ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

1 week ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

1 week ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

1 week ago