उत्तराखंड

उत्तराखंड के सीमांत गाँव नीति-मलारी

उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित सीमांत गाँव नीति खुद में पर्यटन की अपार संभावनाओं को समेटे हुए है. जोशीमठ से लगभग 85 किलोमीटर दूर स्थित नीति गाँव तक का सफर 3 घंटे में तय किया जा सकता है. समुद्र तल से लगभग 3050 मीटर की ऊँचाई में स्थित नीति घाटी जाड़ों के मौसम में बर्फ की सफेद चादर से ढकी रहती है जिस कारण पर्यटकों का यहाँ तक पहुँच पाना मुमकिन नहीं है. इन कठिन परिस्थितियों में भी आईटीबीपी के जवान चीन की सीमा से सटे इस गाँव व उससे भी सैकड़ों किलोमीटर आगे तक सजग प्रहरी के रूप में देश की सीमा की रक्षा करते रहते हैं. नीति घाटी पर्यटकों के लिए गर्मियों के मौसम में खुली रहती है. जहाँ अप्रैल से सितंबर माह तक जाया जा सकता है.
(Border Villages of Uttarakhand)

जुलाई माह में की गई नीति-मलारी की यात्रा मेरे जीवन की सबसे रोचक यात्राओं में से एक है. तपोवन-रैणी-द्रोणागिरी-बम्पा-गमशाली-मलारी जैसे छोटे-छोटे खूबसूरत पहाड़ी गाँवों से होते हुए नीति गाँव तक का सफर तय करना आपको उत्तराखंड की विविधता से रूबरू करवाता है. तपोवन से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी तय कर पंचबद्री में से एक भविष्य बद्री तक भी पहुँचा जा सकता है. नीति घाटी में स्थित बम्पा गाँव भोटिया जनजाति बहुल है. भोटिया समुदाय अपनी आत्मनिर्भरता के लिए जाना जाता है. यात्रा के दौरान कुछ बेहतरीन खाने का मन हो तो बम्पा गाँव आपके पेट की भूख शांत कर सकता है. गमशाली गाँव में स्थित आईटीबीपी चौकी नीति घाटी में पहरा दे रहे देश के प्रहरियों से आपकी पहली मुलाकात करवाती है.

पूरी घाटी में आपको जवानों, रसद और सुरक्षा से जुड़े हथियारों को ढोते तमाम मिलिट्री ट्रक कुछ-कुछ दूरी पर नजर आते रहते हैं. जिस तरह पाकिस्तान से सटे अमृतसर के अटारी व राजस्थान बॉर्डर पर बॉर्डर टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है उसी तर्ज पर उत्तराखंड में चीनी बॉर्डर से सटे बद्रीनाथ के माणा, जोशीमठ के नीति-मलारी तथा नेपाल से सटे बनबसा पर बॉर्डर टूरिज्म की शुरुआत कर इसे स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है.

नीति घाटी में बसे गाँवों में सिर्फ गर्मियों में ही बसासत नजर आती है. सर्दियों में पड़ने वाली बर्फ उन्हें तपोवन के आस-पास प्रवास के लिए मजबूर कर देती है. कहते हैं बॉर्डर सुरक्षा में बॉर्डर पर बसे गाँव के लोगों का बहुत बड़ा योगदान होता है लेकिन नीति घाटी में पड़ने वाली बर्फ इतनी दुर्गम परिस्थितियाँ पैदा करती हैं कि लोग अपने आवास छोड़कर पूर्वनिर्धारित अपनी सुगम जगहों की तरफ प्रवास कर जाते हैं. ऐसी दुर्गम परिस्थितियों में बॉर्डर सुरक्षा को लेकर आईटीबीपी के जवानों की जिम्मेदारियाँ और अधिक बढ़ जाती हैं. लोगों के प्रवास का एक और अहम कारण नीति घाटी में स्कूलों व अस्पतालों का न होना है. शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए भी घाटी के लोग तपोवन या जोशीमठ में डेरा जमाए रहते हैं तथा ग्रीष्म काल में घाटी में आना जाना करते रहते हैं.

नीति घाटी की तरफ बढ़ते हुए बीच में आपको द्रोणागिरी पर्वत की ओर ट्रैक करने का एक अलग रास्ता नजर आता है. द्रोणागिरी पर्वत पर ट्रैकिंग करना काफी दुर्गम व कठिन है. मान्यता है कि युद्ध में घायल हुए लक्ष्मण के लिए संजीवनी खोजने निकले हनुमान जी ने संजीवनी बूटी न पहचान पाने की स्थिति में पूरे द्रोणागिरी पर्वत को ही उठा लिया था और उसे लंका ले आए थे. वर्तमान में द्रोणागिरी पर चढ़ाई करने वाले पर्वतारोहियों की संख्या में इजाफा देखा जा रहा है लेकिन साहसिक पर्यटन के रूप में द्रोणागिरी में उपस्थित संभावनाओं को तलाशने व तराशने की और अधिक जरूरत है. नीति घाटी में आप जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाते हैं वैस-वैसे हरियाली कम होती जाती है तथा लद्दाख जैसे सूखे पहाड़ नजर आने लगते हैं. एक बार को तो यही महसूस होने लगता है जैसे आप लद्दाख की तरफ ही बढ़े जा रहे हैं.

नीति गाँव पहुँचने पर एक ओर घास के हरे बुग्याल व दूसरी तरफ पहाड़ों से कल-कल बहता दूध सा सफेद पानी आपका स्वागत करता है. नीति गाँव से लगभग एक किलोमीटर पहले 1.5 किलोमीटर का ट्रैक कर टिंबरसैण महादेव के मंदिर पहुँचा जा सकता है. यह मंदिर समुद्र तल से 3600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है. महादेव का यह मंदिर अपने आप में इस रूप में विशेष है कि यहाँ कोई पुजारी नहीं बैठता. विशाल पर्वत के नीचे स्थित मंदिर का जलाभिषेक प्रकृति स्वयं करती है. पहाड़ों से झरता पानी मंदिर में स्थित नंदी महाराज, त्रिशूल व शिवलिंग का जलाभिषेक करता रहता है. मंदिर की देखरेख का जिम्मा नीति गाँव में बसने वाले लोगों का है. मंदिर में चढ़ाए गए प्रसाद को श्रद्धालु स्वयं ग्रहण कर सकते हैं. पहाड़ से लगातार रिसते पानी के कारण मंदिर परिसर में फिसलने की संभावना बनी रहती है इसलिए अतिरिक्त सावधानी बरतना आवश्यक है.

नीति गाँव 40-50 रंग बिरंगे घरों वाला एक खूबसूरत गाँव है. इस गाँव से आगे जा पाना आम जनता के लिए प्रतिबंधित है. इस गाँव के आगे चीनी बॉर्डर तक आईटीबीपी के जवान लगातार पेट्रोलिंग करते रहते हैं. बॉर्डर तक सड़क निर्माण का कार्य फिलहाल चालू है. बॉर्डर सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बीआरओ इस क्षेत्र में एक मजबूत सड़क का निर्माण करने में लगातार लगा हुआ है. इस सड़क निर्माण के बाद बॉर्डर तक सेना के साथ ही पर्यटकों की आवाजाही आसान हो सकेगी जिससे न सिर्फ बॉर्डर टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा बल्कि बॉर्डर सुरक्षा को भी मजबूती मिलेगी.
(Border Villages of Uttarakhand)

नीति घाटी न सिर्फ प्राकृतिक लिहाज से बल्कि बॉर्डर टूरिज्म व साहसिक पर्यटन के लिए भी एक बेहतरीन गंतव्य है. बॉर्डर तक सड़क निर्माण भविष्य में नीति घाटी में पर्यटन के विभिन्न आयामों को बढ़ावा दे सकता है. द्रोणागिरी पर्वत ट्रैक को साहसिक पर्यटन के लिए पर्यटकों तक पहुँचाया जाना बेहद जरूरी है. उत्तराखंड पर्यटन विभाग को चाहिये कि वो बॉर्डर टूरिज्म पर विशेष ध्यान दे तथा साथ ही अमृतसर व राजस्थान की तर्ज पर उससे राज्य का राजस्व बढ़ाने की नीतियाँ निर्धारित करे. अति-संवेदनशील बॉर्डर एरिया पर पूर्वोत्तर राज्यों की तरह इनर लाइन परमिट के माध्यम से पर्यटकों को सुरक्षा बलों की निगरानी में बॉर्डर तक जाने दिया जाए ताकि वह बॉर्डर पर मिलने वाले जीवंत अनुभवों से रूबरू हो सकें. बॉर्डर टूरिज्म न सिर्फ उत्तराखंड में पर्यटकों की संख्या को बढ़ा सकता है बल्कि चार धाम जैसे अति संवेदनशील गंतव्य पर लगातार बढ़ रहे युवा पर्यटकों के दबाव को भी कम कर सकता है.
(Border Villages of Uttarakhand)

नीति यात्रा के दौरान ली गई तपोवन, रैणी, मलारी व नीति गाँव की कुछ तस्वीरेंः

कमलेश जोशी

नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.

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