कला साहित्य

पाब्लो नेरुदा से एक बातचीत – दूसरा और अंतिम हिस्सा

(पिछले हिस्से का लिंक – पाब्लो नेरुदा से एक बातचीत)

पाब्लो नेरुदा (12 जुलाई 1904 – 23 सितंबर 1973) की रहस्यमय -सी मृत्यु पर हिन्दी दुनिया में विशेष चर्चा नहीं हुई‐ शायद इसलिए कि उससे कुछ ही पहले नेरुदा को नोबेल पुरस्कार मिलने पर पक्ष-विपक्ष में थोड़ा-बहुत लिखा जा चुका था और उसके कुछ संग्रह भी दूकानों पर नजर आये थे‐ लेकिन राष्ट्रपति आयेंदे की हत्या, फौजी तानाशाही की स्थापना और स्पेन की ही तरह, चीले की सड़कों पर भी ‘आग, बारूद और शिशुओं का रक्त’ बहने के उस दौर में जब एक बड़े मानवीय स्वप्न का अंत हो रहा था, चीले की जनता और पश्चिम की बौद्धिक दुनिया को नेरुदा की याद थी‐ इसीलिए जनरल पीनोशे को यह कहने का पाखंड करना पड़ा कि ‘नेरुदा अगर मरे तो उनकी स्वाभाविक मृत्यु होगी‐’ अब भी कहा नहीं जा सकता कि उनकी मृत्यु, चीले के तानाशाहों के अनुसार, कैंसर से हुई कि चीले की जनता के उस स्वप्न के समाप्त हो जाने से, नेरुदा की कविताएं जिसका एक अभिन्न अंश थी‐ आखिर, नेरुदा को दफनाते समय कब्रगाह में खड़े हजारों लोगों ने उस बर्बरता में भी फासिज्म-विरोधी नारे लगाये‐

नेरुदा से रीता लेवेत की यह बातचीत इस दृष्टि से काफी पुरानी हैः नोबेल पुरस्कार से भी पहले की, जब नेरुदा चीले के राष्ट्रपति-पद के लिए कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे‐ बाद में नेरुदा ने अपने निर्दलीय मार्क्सवादी मित्र साल्वादोर आयेंदे के पक्ष में अपना नाम वापस ले लिया था ; आयेंदे के राष्ट्रपति होने पर नेरुदा फ्रांस में राजदूत नियुक्त किये गये‐ इस बातचीत का रोनाल्ड क्राइस्ट द्वारा किया गया अंग्रेजी अनुवाद १९७१ में ‘पेरिस रिव्यू’ ; अंक ५१ में प्रकाशित हुआ था.

यह बातचीत कई चीजों के बारे में है और नेरुदा की कविता से अधिक उनके कविता संबंधी आग्रहों और तत्कालीन साहित्यिकता के प्रति उनके रवैयों को सामने रखती है‐ विस्तार-भय से वार्तालाप को कहीं-कहीं काटा भी गया है – मसलन, जासूसी उपन्यासों को पसंद करने की बात – लेकिन वे सभी बातें रहने दी गयी हैं जो आज भी किसी-न-किसी रूप में प्रासंगिक और शिक्षाप्रद लगती है

गद्य को आपने कभी ज्यादा महत्त्व नहीं दिया‐

नेरुदा: गद्य…मुझे अपनी जि़्ान्दगी में हमेशा पद्य ही लिखने की आवश्यकता महसूस होती रही है‐ गद्यात्मक अभिव्यक्ति में मन नहीं लगता‐ गद्य का सहारा मैं किसी खास तरह की उड़ती हुई भावना या घटना को अभिव्यक्त करने के लिए लेता हूं, जिसमें किसी वर्णनात्मकता की गुंजायश हो‐ सच तो यह है कि मैं गद्य लिखना एकदम छोड़ सकता हूं‐ बस, कभी-कभार ही लिखता हूं‐

अगर कभी आपकी रचनाएं आग में पड़ जायें और उन्हें बचाना हो तो कौन-सी रचना बचायेंगे?

नेरुदा: शायद उनमें से कोई भी नही‐ वे मेरे किस काम आयेंगी? उनकी जगह मैं एक लड़की को बचाना चाहूंगा…या जासूसी कहानियों की किसी बढि़या किताब को‐ उनसे मेरा अपनी रचनाओं की अपेक्षा कहीं अधिक दिल बहलाव होगा‐

आपकी कृतियों को किस आलोचक ने सबसे अच्छी तरह समझा है?

नेरुदा: अरे, मेरे आलोचक! मेरे आलोचकों ने तो दुनिया-भर की नफरत या प्रेम लेकर मेरी धज्जियां उड़ा के रख दी है‐ कला की तरह ज़िन्दगी में भी आप हरेक को खुश नहीं रख सकते, और यह एक ऐसी स्थिति है जो हमेशा बनी रहती है ‐ आपको हमेशा चुंबन और चांटे मिल रहे हैं, दुलार और दुलत्तियां मिल रही हैं, और यही एक कवि की जिन्दगी है‐ जिस बात से मुझे परेशानी होती है, वह है: आपकी कविता या जि़्ान्दगी की घटनाओं की तोड़-मरोड़कर की गयी व्याख्या‐ उदाहरण के लिए न्यूयार्क में पी.ई.एन. क्लब के सम्मेलन में जहां कि अनेक जगहों के अनेक लोगों को इकट्ठा होने का अवसर मिला था, मैंने अपनी सामाजिक कविताएं पढ़ीं, वे कविताएं  कूबा को समर्पित थीं, उसकी क्रांति के समर्थन में थी‐ लेकिन कूबा के लेखकों ने लाखों की तादाद में एक पर्चा छपवाकर बंटवाया जिसमें मेरे विचारों को संदिग्ध माना गया और मुझे उत्तरी अमरीकियों की छत्रछाया में रहने वाला जीव करार दिया गया‐ उसमें यहां तक कहा गया कि मुझे अमरीका बुलाया जाना भी एक तरह का इनाम है‐ यह झूठा लांछन नहीं तो सरासर मूर्खतापूर्ण बात है, क्योंकि समाजवादी देशों के भी अनेक लेखक वहां उपस्थित थे और कूबा के लेखकों तक के आने की सम्भावना थी‐ न्यूयॉर्क जाने में हमारे साम्राज्यवाद-विरोधी चरित्र में कोई बदलाव भी आ गया‐ फिर भी या तो हड़बड़ी में या किसी बदनीयती के चलते कूबाई लेखकों की ओर से ऐसा कहा गया‐ इस समय मैं अपने दल की तरफ से गणराज्य के राष्ट्रपति पद के चुनाव में खड़ा हुआ हूं और इससे भी जाहिर है कि मेरा वस्तुतः एक क्रांतिकारी इतिहास रहा है‐ उस पत्र पर जिन लेखकों के हस्ताक्षर थे, उनमें से एक भी ऐसा नहीं है जो क्रांतिकारी कामों के प्रति इतना निष्ठावान रहा हो या जितना काम और संघर्ष मैंने किया उसके सौवें हिस्से के बराबर भी कर सका हो‐

आपके रहन-सहन और आर्थिक स्थिति को लेकर आपकी आलोचना होती रही है‐

नेरुदा: सामान्य रूप से, यह मनगढ़ंत है‐ एक अर्थ में स्पेन से हमें एक खासी बुरी विरासत मिली है, वह कभी यह सहन नहीं कर सकती कि हमारे लोग साधारण से अधिक हों या किसी बात में विशिष्टता प्राप्त करे‐क्रिस्टोफर कोलंबस जब लौटकर स्पेन आया तो जंजीरों से जकड़ दिया गया‐ यह ईर्ष्यालु पेटी-बूर्जुआजी की देन है, जिसके भीतर बस यही ख्याल घुमड़ते रहते हैं कि दूसरों के पास क्या है और यह कि हमारे पास अब नहीं है‐जहां तक मेरा संबंध है, मैंने अपनी जिंदगी जनता के कल्याण के लिए समर्पित की है और मेरे घर में जो कुछ है – यानी किताबें – वह मेरे अपने अस्तित्व का नतीजा है‐ जिस तरह के उलाहने मुझे मिलते हैं वैसे उन लेखकों को नहीं मिलते, अमीरी जिनका जन्मसिद्ध अधिकार है‐ उनकी बजाय सारी निंदा मेरे हिस्से में आ सकती है‐

लातिन अमरीका में साहित्यिक गतिविधियों पर मैं आपके विचार जानना चाहूंगी।

नेरुदा: कोई भी पत्रिका उठाइए-चाहे वह ओंदुरास से छपती हो या न्यूयॉर्क से; स्पानी में या मोंतेविदेओ से या ग्वागाकिल से-उसमें एलियट और काफ़्का के प्रभाव में लिखे गये फैशनी साहित्य की भरमार मिलेगी. यह सांस्कृतिक उपनिवेशवाद का एक नमूना है ‐ हम अभी तक यूरोपीय तहज़ीब में बेतरह फंसे हुए हैं ‐ उदाहरण के तौर पर चीले में गृहणियां आपको कोई भी चीज – जैसे चीनी तश्तरियां – दिखलाते हुए एक तृप्त मुस्कान के साथ बतलायेंगी कि ‘यह विदेशी है!’ चीले के लाखों घरों में सजे हुए चीनी मिट्टी के बर्तन प्रायः आयातित होते हैं अैर वह भी निहायत घटिया कि़स्म के, जर्मनी और फ्रांस के कारखानों में बने ‐ मूर्खता का यह माल उच्च कोटि का माना जाता है: इसलिए कि वह विदेश से मंगाया जाता है‐

क्या अलग पड़ जाने की आशंका इसके लिए जिम्मेदार है?

नेरुदा: बिल्कुल पुराने जमाने में लोग और खासकर लेखक लोग क्रांतिकारी विचारों से बहुत घबराते थे‐ इस देश में और कूबाई क्रांति के बाद विशेष रूप से, जो चलन शुरू हुआ है, वह इसके बिल्कुल उलट है‐ लेखकों को यह डर है कि कहीं ऐसा न हो कि उन्हें अति वामपंथी नहीं मान लिया जाये‐ ऐसे अनेक लेखक हैं जिनकी हर रचना यह जाहिर करती है कि वे साम्राज्यवाद-विरोधी लड़ाई में अग्रिम मोर्चे पर हैं‐ हममें से उन लोगों को जिन्होंने लगातार वह लड़ाई लड़ी थी, यह देखकर बहुत खुशी होती है कि साहित्य जनता की तरफ आ रहा है,लेकिन हमारा यह भी मानना है कि अगर महज फैशन के चलते है और इसमें लेखकों की यह आशंका भी शरीक है कि कहीं उन्हें सक्रिय वामपंथी मानने से इंकार न कर दिया जाये, तो फिर इस तरह की क्रांतिकारिता दूर तक साथ नहीं देगी‐ और अंततः साहित्यिक जंगल में तो हर प्रकार के पशु समा ही जाते हैं ‐ एक बार जब कुछ हठी किस्म के उपद्रवियों की ओर से कई साल तक मुझ पर प्रहार होते रहे – लगता था कि वे मेरी कविता और मेरे जीवन पर आक्रमण करने के लिए ही जिंदा हैं – तो मैंने कहा: उन्हें अपने हाल पर छोड़ दो‐ इस जंगल में सबके लिए जगह है‐ अगर यहां हाथियों के लिए जगह है जो कि अफ्रीका और श्रीलंका के जंगलों में इस बड़े पैमाने पर छाये हुए है, तो बेशक सारे कवियों के लिए भी है‐

क्या आपने चीले के लोकसंगीत में भी रचनाएं की हैं?

नेरुदा: कुछ गीतों की रचना की है जो इस देश में लोकप्रिय है‐

रूसी कवियों में आपको कौन अच्छे लगते हैं?

नेरुदा: रूसी कविता में अभी तक सबसे प्रमुख व्यक्तित्व मायकोवस्की का ही है‐ रूसी क्रांति में उनकी वही हैसियत है जो उत्तर अमरीका की औद्योगिक क्रांति के संदर्भ में वाल्ट व्हिटमैन की है‐ मायकोवस्की ने कविता को इस ढंग से अनुप्राणित किया कि लगभग समूची कविता ‘मायकोवस्कीय’ होने लग गयी‐

अपना देश छोड़ने वाले रूसी लेखकों के बारे में आप क्या सोचते हैं?

नेरुदा: जो लोग किसी जगह को छोड़ना चाहते हैं, उन्हें छोड़ना चाहिए ‐ दरअसल यह एक व्यक्त्गित मसला है‐कुछ सोवियत लेखक साहित्यिक संगठनों से या अपने राज्य से ही अपने संबंधों को लेकर असंतुष्ट महसूस करते होंगे, लेकिन राजसत्ता और लेखकों के बीच जितनी कम असहमति मैंने समाजवादी देशों में देखी है, उतनी कहीं नहीं है‐ अधिसंख्य सोवियत लेखकों को समाजवादी ढांचे पर, नाजियों के खिलाफ मुक्ति की उस महान लड़ाई पर, क्रांति और महायुद्ध में जनता की भूमिका पर गर्व है और समाजवाद ने जिन ढांचों की रचना की है, उन पर भी‐ पर इसके कुछ अपवाद हैं, तो यह एक निजी मामला है और साथ ही ऐसे हर मामले की अलग-अलग पड़ताल की जानी चाहिए ‐

युवा कवियों को आप क्या सलाह देना चाहेंगे?

नेरुदा: अरे नहीं‐ युवा कवियों को क्या सलाह दें! इन्हें अपना रास्ता खुद बनाना हैः उन्हें अपनी अभिव्यक्ति की राह में बाधाओं का सामना करना होगा और उन पर विजय पानी होगी‐ हां राजनीतिक कविता से अपनी अन्य-यात्रा शुरू करने की सलाह मैं उन्हें कभी नहीं दूंगा‐ राजनीतिक कविता में दूसरे किसी भी कविता से ज्यादा गहरा भावावेग होता है – कम से कम प्रेम-कविता जितना भी होता ही और उसे जबरन नहीं लिखा जा सकता,क्योंकि तब वह फूहड़ और अग्राह्य हो जाती है‐ एक राजनीतिक कवि होने के लिए पहले दूसरी तमाम तरह की कविताओं से गुजरना आवश्यक है‐ राजनीतिक कवि पर कविता से या साहित्य से विश्वासघात करने के जो आक्षेप लगते हैं, उसे उन्हें भी स्वीकार करने के लिए तैयार रहना होगा‐ फिर, राजनीतिक कविता ऐसे कथ्य और वास्तविकता से लैस होनी चाहिए और उसमें इतनी बौद्धिक और भावनात्मक सम्पन्नता होनी चाहिए कि वह दूसरी का तिरस्कार करने में सक्षम हो सके‐ ऐसा कभी-कभी ही हो पाता है‐

आपने अक्सर कहा है कि मैं मौलिकता में विश्वास नहीं रखता।

नेरुदा: हर क़ीमत पर मौलिक होने की कोशिश करना एक आधुनिक शर्त है‐ इस युग में लेखक आपका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करना चाहता है, और फिर यह वही चिंता एक अंधश्रद्धा का रूप धारण कर लेती है। हर कोई इस फिराक में रहता है कि वह ऐसा कोई रास्ता हो जहां वह अद्वितीय हो: किसी गहराई में जाने या कुछ करने के लिए नहीं, बल्कि एक विशिष्ट प्रकार की क्षमता ओढ़ने के लिए ‐ सबसे मौलिक कलाकार में आपको समय और युग के अनुसार विभिन्न बदलाव दिखायी देंगे‐ इस संदर्भ में पिकासो एक अद्भुत उदाहरण हैं,जिनके यहां शुरूआत में अफ्रीकी कलाकृतियों और मूर्तियों या आदिम कलाओं की प्रेरणा मिलती है और फिर वह रूपांतरण की ऐसी शक्ति के आगे बढ़ते हैं कि अद्भुत मौलिकता से सम्पन्न उनका कृतित्व विश्व के सांस्कृतिक भूगर्भ में अनेक अवस्थाओं में दिखलायी पड़ता है‐

आप पर कौन-से साहित्यिक प्रभाव रहे?

नेरुदा: एक तरह से लेखकों में अदला-बदली हमेशा चलती है: उसी तरह जैसे हम जिस हवा में सांस लेते हैं वह किसी एक जगह की नहीं होती‐ लेखक हमेशा घर-घर घूमता हुआ प्राणी होता है: उसे अपना साज-सामान बदलना ही होता है‐ कुछ लेखकों को यह अटपटा भी लगता है‐ मुझे याद है, लोर्का मुझे अक्सर अपनी कविताएं सुनाने को कहते थे और फिर सुनते-सुनते अचानक बीच में बोल उठते थे: ‘रूको, रूको! आगे मत पढ़ो, कहीं मैं तुमसे प्रभावित न हो जाऊं‐

अब नॉर्मन मेलर‐ आप उनके बारे में सबसे पहले लिखने वालों में से है‐

नेरुदा: मेलर का ‘दि नेकेड एण्ड दि डेड’ छपने के कुछ ही दिनों बाद माक्सिको में किताबों की एक दूकान में इस पर मेरी निगाह पड़ी‐ इस पुस्तक के बारे में किसी को कुछ मालूम नहीं था: पुस्तक-विक्रेता भी नहीं जानता था कि इसमें है क्या‐ मैंने उसे इसलिए खरीदा कि मैं सफर कर रहा था और कोई नया अमरीकी उपन्यास पढ़ना चाहता था‐ मैं सोचता था कि अमरीकी उपन्यास ट्रीजर से लेकर हेमिंग्वे, स्टीनबेक और फाॅकनर जैसी हस्तियों तक आने के बाद खत्म हो चुका है‐ लेकिन अब मैंने एक ऐसे लेखक को खोज लिया था जिसकी भाषा असाधारण रूप से आक्रामक थी और साथ ही, बड़ी बारीक और अद्भुत वर्णन-शक्ति थी‐ मैं पास्तरनाक की कविता का बहुत प्रशंसक हूं लेकिन ‘दि नैकेड एंड दि डेड’ से तुलना करने पर पास्तरनाक का‘डॉक्टर ज़िवागो’ एक उबाऊ रचना लगती है: सिर्फ प्रकृति-वर्णन के कुछ अंश ही उसे बचा ले जाते हंै‐ यानी कि वे अंश, जो कविता हैं‐ मुझे याद है कि ‘आराकशों को जगने दो’ शीर्षक कविता मैंने उन्हीं दिनों लिखी‐लिंकन के व्यक्तित्व का आह्नान करने वाली यह कविता विश्वशांति को समर्पित थी‐ इसमें मैंने ओकिनावा के और जापान के युद्ध के बारे में लिखा था और नॉर्मन  मेलर का उल्लेख भी किया था‐ यह कविता यूरोप पहुंची और अनूदित हुई‐ मुझे याद है, लुई अरागां ने मुझे बतलाया था कि ‘यह पता लगाने में बहुत ज्यादा दिक्कत हुई कि नॉर्मन  मेलर कौन है?’ वास्तव में उन्हें कोई नहीं जानता था और मुझे एक खास तरह का गौरव हुआ कि मैं उन्हें ढूंढ़ने वाले पहले लेखकों में से हूं‐

प्रकृति से आपको गहरा लगाव है। इस पर कुछ बतलायेंगे?

नेरुदा: अपने बचपन से ही मुझे चिडि़यों, सीपियों, जंगलों और पेड़-पौधों से प्रेम रहा है। समुद्री सीपियों की खोज में मैं कई जगह गया और उनका एक बड़ा संग्रह मेरे पास है‐ मैंने ‘पक्षियों की कला’ नाम से एक पुस्तक लिखी है‐ मैंने ‘बेस्तिअरी’, ‘सी-क्वेक’ और ‘रोज ऑफ़फ एवालरियो’ भी लिखी हैं जो कि फूलों, शाखाओं और वानस्पतिक विकास के संबंध में है‐ मैं प्रकृति से अलग होकर रह नहीं सकता‐ होटलों में कुछ दिन गुजार सकता हूं और एकाध घंटे के लिए हवाई जहाज में रहना भी अच्छा लगता है, लेकिन प्रसन्नता मुझे जंगलों में, रेत पर या नाव खेते हुए ही मिलती है, जहां कहीं आग, धरती, पानी ओर हवा से सीधा संपर्क हो सके‐

आपकी कविता में बार-बार बहुत-से प्रतीक आते हैं, और हमेशा समुद्र, मछली, चिडि़यों का रूप लेते हुए….

नेरुदा: मैं प्रतीकों को नहीं मानता‐ वे महज़ भौतिक वस्तुएं हैं‐ मेरे लिए समुद्र, मछली और चिडि़यों का एक भौतिक अस्तित्व है‐ मैं उनका उल्लेख उसी तरह करता हूं जैसे धूप का करता हूं‐ मेरा कविता में कुछ विषय अगर अलग से दिखते हैं-और बार-बार आते हैं-तो इसका संबंध सिर्फ उनकी भौतिक उपस्थिति से है‐

कबूतर और गिटार का क्या अभिप्राय है?

नेरुदा: कबूतर का अर्थ कबूतर है और गिटार का अर्थ है एक वाद्ययंत्र जिसे गिटार कहते हैं‐

आपका मतलब यह है कि जिन्होंने इन चीजों के विश्लेषण का प्रयत्न किया है वे…

नेरुदा: जब मैं कोई कबूतर देखता हूं तो उसे कबूतर कहता हूँ‐ कबूतर का, चाहे वह मौजूद हो या न हो, मेरे लिए वस्तुगत या व्यक्तिगत रूप से एक निश्चित रूपाकार है‐ पर वह कबूतर होने से परे कुछ नहीं है‐

‘धरती पर घर’ की कविताओं के संबंध में आपने कहा था कि ‘वे किसी को जीने में मदद देती हैं, किसी को मरने में मदद देती हैं‐’

नेरुदा: मेरा संग्रह ‘धरती पर घर’ मेरे जीवन के अँधेरे और खतरनाक समय का प्रतिनिधित्व करता है‐ वह ऐसी कविता है जिसमें कोई दरवाजा नही‐ उससे बाहर आना मेरे लिए नया जन्म लेने जैसा था‐ स्पेन के युद्ध और दूसरी संजीदा घटनाओं से पैदा हुई उस घोर निराशा से, जिसकी थाह मैं अभी तक नहीं माप पाया हूं, मैं बच गया‐ एक बार मैंने यह भी कहा था कि अगर मेरे वश में हुआ तो मैं इस संग्रह को पढ़ने की मनाही करूंगा और उसका कोई नया संस्करण नहीं छपवाउंगा‐ उसमें जीवन के अहसास को एक दुखद भार के रूप में, एक नश्वर उत्पीड़न के रूप में देखा गया है‐ लेकिन मुझे यह भी लगता है कि यह मेरी बेहतरीन पुस्तकों में से है: इस अर्थ में कि यह मेरी एक मनःस्थिति को उजागर करती है‐ पता नहीं दूसरे भी ऐसा सोचते हैं या नहीं, लेकिन जब कोई कुछ लिखता है तो उसे यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि मेरी कविताएं कहां पहुंच रही हैं‐ राॅबर्ट फ्रास्ट ने अपने एक निबंध में कहा है कि कविता का एकमात्र आधार दुख होना चाहिए: ‘कविता में सिर्फ दुख रहने दो’ लेकिन मुझे नहीं मालूम रॉबर्ट फ्रॉस्ट तब क्या सोचते अगर कोई नवयुवक आत्महत्या करता और अपने खून के निशान फ्रास्ट की किसी किताब पर छोड़ जाता‐ मेरे साथ ऐसा हुआ है – यहां, इसी मुल्क मे‐ जिन्दगी से भरपूर एक नौजवान ने मेरी पुस्तक की बगल में अपने को मार डाला‐ उसकी मृत्यु में मेरा सचमुच कोई दोष नहीं था, लेकिन खून के धब्बों से भरा वह कविता-पृष्ठ तमाम कवियों को चिंतित कर देने के लिए काफी है‐ मैंने अपनी पुस्तक के खिलाफ़ जो कुछ कहा उसका मेरे विरोधियों ने राजनीतिक इस्तेमाल किया, जैसा कि वे मेरे हर कथन का करते आये है‐ यह उन्हीं की देन है कि मेरे भीतर सिर्फ आस्थावान कविताएं लिखने की इच्छा जगी‐ उन्हें इस प्रसंग की जानकारी नहीं थी‐ ऐसा नहीं है कि मैंने अकेलेपन, व्यथा या विषाद की अभिव्यक्ति बिल्कुल वर्जित कर दी हो‐ लेकिन मैं चाहता हूं कि अपने लहजों को बदलता रहूं, तमाम आवाजें पाउं, तमाम रंगों की तलाश करूं, और जहां कहीं भी जीवन शक्तियां रचना और विनाश में लगी हों, उन्हें देखूं‐
जो दौर मेरी ज़िन्दगी में आये हैं वे मेरी कविता में ही आये हैं: एकाकी बचपन और दूरदराज सबसे कटे हुए देशों में बीती किशोरावस्था से मैंने एक विराट मानव समूह में शरीक होने तक की यात्रा है‐ इससे मुझे पूर्णता हासिल हुई, बस‐ कवियों का पीडि़तात्मा होना पिछली सदी की चीज थी‐ ऐसे भी कवि हो सकते हैं जो जीवन को जानते हों, उसकी समस्याओं को जानते हों और जो विभिन्न धराओं को पार करते हुए जीवित रहते हों‐ और जो उदासी से गुजरकर एक परिपूर्णता तक पहुंचते हों‐

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