Categories: Featuredकॉलम

समाचारों के प्रस्तुतीकरण के वैचारिक चरित्र

पत्रकारिता की पाठ्यपुस्तकों में यह बताया जाता है कि हर समाचार में ‘कौन’, ‘क्या’, ‘कब’, ‘कहां’, ‘क्यों,’ और ‘कैसे’- का उत्तर होना आवश्यक है तभी ही समाचार पूर्ण हो पाता है. जब कभी किसी समाचार में ‘क्यों’ और ‘कैसे’ का उत्तर दिया जाता है तो तथ्यों के विश्लेषण और व्याख्या की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. पहले चार प्रश्नों का उत्तर तैयार करने की समाचार उत्पादन की प्रक्रिया में एक खास तरह के तथ्यों के चयन से इसमें वैचारिक तत्त्वों का प्रवेश हो जाता है और आखिरी दो प्रश्नों के उत्तर से समाचार की वैचारिक स्थिति स्पष्टï रूप से सामने आ जाती है.

यह वैचारिक स्थिति पहले तो उस व्यवस्था से ही निर्धारित हो जाती है जिसमें कोई मीडिया संगठन काम करता है. इसके अलावा मीडिया संगठन के स्वामित्व और पत्रकार की अपनी सोच और दृष्टिïकोण भी समाचार के वस्तुविषय (कंटेंट) को निर्धारित करते हैं. समाचार में छिपे संदेशों और अर्थों को समझने के लिए विषय, इस विषय के चयन की प्रक्रिया, इसकी शब्दावली और प्रस्तुतीकरण का विश्लेषण आवश्यक हो जाता है. इस तरह के विश्लेषण से यह सवाल बार-बार उठता है कि समाचारों के उत्पादन और प्रवाह की प्रक्रिया के हर चरण में घटनाओं की व्याख्या प्रभुत्वकारी फ्रेमवर्क को ही अपने उपभोक्ताओं के मस्तिष्क में सुदृढ़ करती चली जाती है और हर बदलती स्थिति के साथ इस फ्रेमवर्क में भी परिवर्तन आता रहता है ताकि इसके स्थायित्व पर कोई आंच न आए.

इस तरह लोगों की सोच को प्रभुत्वकारी विचारधारा के मुताबिक ढाला जाता है और इस प्रक्रिया में लोगों की कोई वैकल्पिक सोच विकसित करने की क्षमता का ह्रास होता चला जाता है. साथ ही वैकल्पिक मीडिया और विचारधारा के पनपने का सामाजिक आधार भी संकुचित होता चला जाता है. इस तरह किसी भी व्यवस्था में काम करने वाला मीडिया अपने स्वभाव से ही यथा स्थितिवादी होता है.

किसी घटना के समाचार बनने की प्रक्रिया को करीब से देखा जाए तो साफ हो जाता है कि समाचार प्रवाह की पूरी प्रक्रिया एक वैचारिक कार्रवाई है. समाचार अपने उत्पादन प्रक्रिया और तंत्र से ही निर्धारित होते हैं. इसलिए यह एक ऐसी अंतर्निहित, अनुत्तरित और निरंतर जारी प्रक्रिया है जिससे सूचनाओं के अंबार को पत्रकारीय ढांचे में तरह-तरह की तोड़-मरोड़ के साथ प्रस्तुत किया जाता है जिससे यथार्थ की यथास्थितिवादी आधिकारिक अवधारणा को ही प्रोजेक्ट किया जा सके.

हालांकि ऐसा भी नहीं है कि हर पत्रकार कोई जानबूझकर यथार्थ की विकृत तस्वीर पेश करता है लेकिन उसकी समाचार की अवधारणाएं और मूल्यों की रचना की पूरी प्रक्रिया उसे यथार्थ को एक खास वैचारिक दृष्टिकोण से देखने के प्रति अनुकूलित कर देती है. इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस अनुकूलन के कारण एक पत्रकार अपने दृष्टिकोण के अनुसार घटनाओं की वस्तुपरक रिपोर्टिंग और प्रस्तुतीकरण कर रहा होता है लेकिन अपने अंतिम निष्कर्ष में वह समाज के एक विशेष वर्ग के हितों और मूल्यों की ही पूर्ति कर रहा होता है.

इस आधार पर स्वभावत: यह सवाल उठता है कि क्या समाचारों के प्रस्तुतीकरण के वैचारिक चरित्र को तब तक नहीं बदला जा सकता जब तक मूलभूत सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में बुनियादी परिवर्तन न किए जाएं? निश्चय ही अगर ऐसा होता भी है तो भी नई व्यवस्था की शासक विचारधारा और मूल्यों को ही मीडिया प्रोजेक्ट करेगा और सच्चाई की तलाश यहीं खत्म नहीं हो जाएगी. मीडिया के संदर्भ में यथार्थ और सच्चाई का संबंध व्यवस्था के लोकतांत्रिक चरित्र से है. मीडिया का वस्तुपरक होना भी उतना ही बड़ा मिथक है कि जितना किसी भी व्यवस्था के संपूर्ण रूप से लोकतांत्रिक होने का मिथक है.


प्रो. सुभाष धूलिया

प्रो.धूलिया देश के सबसे बड़े मीडिया विशेषज्ञों में गिने जाते हैं. उन्होंने IGNOU तथा IIMC जैसे अनेक संस्थानों में मीडिया का अध्यापन किया है. उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति रह चुके प्रो. धूलिया ने मीडिया के विषय पर अनेक पुस्तकें लिखी हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

शराब की बहस ने कौसानी को दो ध्रुवों में तब्दील किया

प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्म स्थली कौसानी,आजादी आंदोलन का गवाह रहा कौसानी,…

2 days ago

अब मानव निर्मित आपदाएं ज्यादा देखने को मिल रही हैं : प्रोफ़ेसर शेखर पाठक

मशहूर पर्यावरणविद और इतिहासकार प्रोफ़ेसर शेखर पाठक की यह टिप्पणी डाउन टू अर्थ पत्रिका के…

3 days ago

शराब से मोहब्बत, शराबी से घृणा?

इन दिनों उत्तराखंड के मिनी स्विट्जरलैंड कौसानी की शांत वादियां शराब की सरकारी दुकान खोलने…

3 days ago

वीर गढ़ू सुम्याल और सती सरू कुमैण की गाथा

कहानी शुरू होती है बहुत पुराने जमाने से, जब रुद्र राउत मल्ली खिमसारी का थोकदार…

4 days ago

देश के लिये पदक लाने वाली रेखा मेहता की प्रेरणादायी कहानी

उधम सिंह नगर के तिलपुरी गांव की 32 साल की पैरा-एथलीट रेखा मेहता का सपना…

5 days ago

चंद राजाओं का शासन : कुमाऊँ की अनोखी व्यवस्था

चंद राजाओं के समय कुमाऊँ का शासन बहुत व्यवस्थित माना जाता है. हर गाँव में…

5 days ago