समाज

इगास: वंचितों को समर्पित लोकपर्व

जो छूट गए, जो पिछड़ गए हैं और जो अधिकारों से वंचित रह गए हैं, सरकारें उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए कई योजनाएँ बनाती है. लोक-समाज, पर्व-त्योहार बनाता है. सबके हिस्से में हर्ष-उल्लास सुनिश्चित करने के लिए. उत्तराखण्ड का इगास त्योहार, जो कहीं बूढ़ी दीवाली के नाम से मनाया जाता है और कहीं कण्सि बग्वाल के नाम से, वस्तुतः वंचितों को समर्पित पर्व है. इससे जुड़ी सभी किवदंतियां-मिथकों में भी वंचितों का जिक़्र है.
(Igas Festival of Uttarakhand 2020)

चाहे वो रामचंद्रजी की विजयोपरांत अयोध्या लौटने के शुभ-समाचार से वंचित रहे हों या फिर किसी युद्ध में फँसा महाबली भीम जो दीपावली मनाने से वंचित रह गया था या स्वाभाविक अधिकारों से वंचित पितामह भीष्म  या फिर गढ़वाल का वीर-शिरोमणि माधो सिंह भण्डारी जो सोलह श्राद्ध और बारह बग्वाली से वंचित रह गया था.

यही नहीं  एक कालखण्ड में उत्तराखण्ड की बहू-बेटियाँ भी वंचितों की ही श्रेणी में रही हैं. ऐसी भी बहू-बेटियाँ रही हैं जिन्हें चावल का भात और गेंहूँ की रोटियाँ सिर्फ़ इगास बग्वाल में ही खाने को मिलती थी. इगास पर्व उनको भी समर्पित है जो आयु-अवस्था-परिस्थिति के कारण उत्पादक-मददगार नहीं रह गए हैं. जो गाय दूध नहीं दे रही हो, प्रजनन-अक्षम हो गयी हो जो बैल हल लगाने में असमर्थ हो गए हों उनको भी आदर-सम्मान दिया जाता है, इगास के अवसर पर.
(Igas Festival of Uttarakhand 2020)

इगास समर्पित है उन ग्वैर छोरों (ग्वालों) को जिनके हिस्से पशु-चारण रहा जो कृषि-सहायक पशुओं के निकटस्थ रहे. इगास पर्व उस बिरादरी को भी उत्सव मनाने का अवसर प्रदान करता है जिस बिरादरी के किसी परिवार में मृत्युशोक के कारण त्योहार मनाने की व्रजना हो. इगास के अवसर पर ये व्रजना परिवार विशेष तक ही सीमित कर दी जाती है.

इगास उत्तराखण्ड का अद्भुत त्योहार है. इसका समकक्ष देश भर में नहीं दिखता. एक ऐसा त्योहार जिसमें फिजूलखर्ची की होड़ नहीं है, जिसमें अपनी खुशी के आगे गैरों के अभावों की अनदेखी नहीं है और जिसमें पीछे रह गए, वंचितों को भी हर्ष-उल्लास में शामिल करने का पूरा अवसर दिया जाता है.

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना,
अंधेरा धरा पर कहीं रह न जाए.

(Igas Festival of Uttarakhand 2020)

इस प्रसिद्ध कविता को पूरी तरह चरितार्थ करता है इगास. एक समय था जब उत्तराखण्ड में इगास के बाद लोग आश्वस्त हो जाते थे कि अब कोई ऐसा जीव नहीं है जिसके हिस्से साल में न्यूनतम एक बग्वाल की खुशियाँ न आयी हों.

इगास, उत्तराखण्ड का आइकन त्योहार है. पूरी तरह तार्किक और जनपक्षीय. इगास उत्तराखण्ड के लोकसमाज का गौरव है जो शेष समाज के लिए काबिले-रस्क़ है. इगास उत्तराखण्ड का ऐसा लोकपर्व है जो प्रकृति में समावेशी है, सर्वहितचिंतक है और प्राकृतिक न्याय का पोषक है. ये कहते और सोचते हुए गर्वानुभूति होना स्वाभाविक है कि हम उस प्रदेश के वासी हैं जहाँ इगास मनाया जाता है. इगास जैसे सुविचारित लोकपर्वों की जिस भारत देश में प्रचुर-विविधता है उस पर भी हमें गर्व है.
(Igas Festival of Uttarakhand 2020)

1 अगस्त 1967 को जन्मे देवेश जोशी फिलहाल राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज में प्रवक्ता हैं. उनकी प्रकाशित पुस्तकें है: जिंदा रहेंगी यात्राएँ (संपादन, पहाड़ नैनीताल से प्रकाशित), उत्तरांचल स्वप्निल पर्वत प्रदेश (संपादन, गोपेश्वर से प्रकाशित) और घुघती ना बास (लेख संग्रह विनसर देहरादून से प्रकाशित). उनके दो कविता संग्रह – घाम-बरखा-छैल, गाणि गिणी गीणि धरीं भी छपे हैं. वे एक दर्जन से अधिक विभागीय पत्रिकाओं में लेखन-सम्पादन और आकाशवाणी नजीबाबाद से गीत-कविता का प्रसारण कर चुके हैं. 

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

यम और नचिकेता की कथा

https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…

7 hours ago

अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण

-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…

10 hours ago

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

5 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

7 days ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

1 week ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

1 week ago