इतिहास

पिथौरागढ़ नगर से जुड़े कुछ रोचक पहलू

पिथौरागढ़ का मुख्य बाजार पुराना बाजार था जो शिवालय मंदिर से प्रारंभ होकर नेहरु चौक तक की सीढियों तक था. इसमें मुख्य रूप से पपदेऊ और पितरौटा के स्वर्णकारों की दुकान, शाह एवं खत्रीयों की मिठाई व परचून की दूकान के साथ मुस्लमान दर्जी और हज़ाम भी इसी बाजार में रहते थे. स्वर्णकार गहने निर्माण का काम किया करते थे. इस नगर में प्रारंभ से ही गहने उद्योग का कारोबार पर्वतीय क्षेत्रों में अन्य नगरों की अपेक्षा अभी भी सशक्त है.
(History of Pithoragarh Uttarakhand)

तिलढुकरी के पूर्वी हिस्से में मिशन के लोग धान की रोपाई किया करते थे, वहीं पर पवन उर्जा से चलने वाली एक चक्की भी थी जहाँ पर गेहूं पिसाई होती थी. कहा जाता है कि ठुलीगाड़ में इतना अधिक पानी था कि उसके मूल स्त्रोत से लेकर रई तक एक साथ बाईस घराट (पन-चक्कियां) चला करती थी. तब यहां जनवरी से मार्च अंतिम हफ्ते तक ट्रांस साइबेरियन पक्षी भी आते थे जो अप्रैल तक अपने देश लौट जाते थे.

वर्तमान में जहाँ सोलजर बोर्ड है. वहां 1857 की क्रांति के बाद सैनिक छावनी बनी थी. सरस्वती देवसिंह मैदान को परेड खेत के नाम से जाना जाता था. वहीं पर एक कोत का नौला भी था जहां पर इस वक्त सुलभ शौचालय बना दिया गया है. कोत शब्द हथियार रखने के स्थान को कहते थे. इसलिए इसको कोत का नौला कहा जाता था. सैनिक, परेड खेत में कवायत किया करते थे, इस समय जहाँ राजकीय बालिका इंटर कालेज है उस स्थान में ‘गोर्ख-किल्’ था. जिसे गढ़ी कहा जाता था. इस गढ़ी में लगभग 150 सिपाही रह सकते थे. इनके जल की आपूर्ति नीचले जंगल में स्थित एक नौले से होती थी. किले के पास ही शक्तिपीठ मां उल्का देवी का मंदिर है. इसे गोरखा लोग अपनी कुल देवी मानते थे.

सिमलगैर बाजार का नामकरण सेमल वृक्षों की बहुतायता से हुआ है. पिथौरागढ़ नगर की सीमा निर्धारण के लिए इसे बारा पत्थर के अन्दर रखा गया था. वर्तमान राजकीय इंटर कालेज पिथौरागढ़ सन 1928 में किंग जार्ज कौरोनेशन हाईस्कूल के नाम से खुला था. शुरुआत में इस जगह का नाम घुड़साल था. घुड़साल के उत्तर पश्चिम में उदयपुर एवं ऊँचाकोट की पहाड़ियां हैं. आज से 500 साल पहले बम राजाओं की यह स्थली थी जो बाद में बमनधौन नामक स्थान चली गयी. आज भी बमनधौन में प्राचीन पुरातत्व मूर्तियाँ- मंदिर हैं.

1962 में राजकीय इंटर कालेज की भूमि के पास ही एक डिग्री कालेज खोला गया. इस महाविद्यालय के खुलने से पहले इस स्थान पर भवानीदेवी प्राइमरी पाठशाला पपदेऊ थी. ग्राम पपदेऊ की एक दानी महिला भवनीदेवी ने पांच हजार रूपया नगद देकर मोतीलाल चौधरी के प्रयासों से यह विद्यालय खुलवाया. किंग जार्ज कौरोनेशन हाईस्कूल के पहले प्रधानाचार्य श्री चंचलावल्भ पन्त थे. महाविद्यालय खुलने से पूर्व मिडिल स्कूल, बजेटी में कक्षाएं चला करती थी.
(History of Pithoragarh Uttarakhand)

बजेटी वह स्थान है जहाँ इस जनपद का पहला मीडिल स्कूल 1906 में खुला था. राजकीय इंटर कालेज, पूर्व में ठा. दानसिंह मालदार के भवन में चला था. सरस्वती देवसिंह स्कूल भी मालदार परिवार के सहयोग एवं प्रेरणा से बना. इसके प्रथम प्रधानाचार्य मोहन सिंह मल थे. राजकीय इंटर कालेज पिथौरागढ़ खोलने में स्वर्गीय कृष्णानन्द उप्रेती के सहयोग को नहीं भुलाया जा सकता है. किंगजार्ज हाईस्कूल की निर्माण कंपनी एल.आर.साह फर्म अल्मोड़ा थी.

नगर के पूर्वी छोर में भाटकोट है. यहां एल.डब्ल्यू. एस. भाटकोट गर्ल्स इंटर कालेज है. यह विद्यालय सन 1908 का बना हुआ है. इस स्थान को राजा रानी की गुफा नाम ने भी जाना जाता था. गुफा की ढलान और नीचे खेतों में वर्षा ऋतु में दूसरी से चौदहवीं सदी तक के मिट्टी के बर्तन मिलते हैं. गुफा के पिछले हिस्से में काले रंग के चिन्हित टुकड़े भी मिलते हैं. मदनचन्द्र भट्ट इतिहासकार का मानना है कि यह चित्रित टुकड़े दूसरी शताब्दी के हैं.
(History of Pithoragarh Uttarakhand)

1995 में पुरवासी के सोलहवें अंक में डॉ दीप चन्द्र चौधरी द्वारा लिखित लेख “पिथौरागढ़ नगर – ऐतिहासिक अवलोकन” का एक हिस्सा पूरा लेख यहां पढ़े: नगर पिथौरागढ़ का सम्पूर्ण इतिहास

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