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इस बार अवसर मिला हेमवती नंदन बहुगुणा के पैतृक गांव बुधाणी जाने का. उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के श्रीनगर के पास स्थित है यह छोटा सा गांव. बहुगुणा जी का जन्म इसी गांव में 25 अप्रैल 1919 को हुआ था. ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकलकर उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक किया और फिर राष्ट्रीय राजनीति के शीर्ष तक पहुंचे. कांग्रेस शासन के दौरान 1971 में केंद्रीय मंत्रिमंडल में संचार राज्य मंत्री के के पद पर रहे. काफी लोकप्रिय और राजनीति के धुरंधर होने की वज़ह से लोग उनमें भावी प्रधानमंत्री की छवि देखते थे. शायद इसीलिए पार्टी नेतृत्व के द्वारा उन्हें राज्य की राजनीति तक सीमित कर दिया गया.
(Hemvati Nandan Bahuguna Museum)

हेमवती नंदन बहुगुणा दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. बाबू जगजीवन राम के साथ मिलकर उन्होंने कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी नाम का नया दल भी बनाया. कालांतर में पुनः पुनः कांग्रेस का हाथ थामा और छोड़ा. 1984 के लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद के कांग्रेस उम्मीदवार अमिताभ बच्चन से हारे थे. 1988 में स्वास्थ्य खराब होने के चलते अमेरिका गए और 1989 में वही क्लीवलैंड अस्पताल में अंतिम सांस ली.

हेमवती नंदन बहुगुणा के सम्मान में गढ़वाल विश्वविद्यालय का नाम बदल कर 1989 में हेमवती नंदन बहुगुणा, गढ़वाल विश्वविद्यालय कर दिया गया. 15 जनवरी, 2009 को इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्ज़ा मिला. यह विश्वविद्यालय 1973 में कुमाऊं विश्वविद्यालय के साथ-साथ स्थापित हुआ था. हाल ही में दोनों विश्वविद्यालयों ने अपनी स्वर्ण जयंती मनाई है.  वर्तमान में यहां पर कई कोर्स चल रहे हैं.

लोकल, प्रादेशिक और अन्य राज्यों के छात्रों की अतिरिक्त नॉर्थ ईस्ट के काफ़ी छात्र यहां पर प्रवेश लेते हैं. यह विश्वविद्यालय हेमवती नंदन बहुगुणा जी की दूरदर्शिता और विकासवादी नीति का ही परिणाम था. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने इस क्षेत्र में सड़कों का निर्माण करवाया और जनता की समस्याओं का निराकरण करने का पूरा प्रयास किया. वह हर साल अपने गांव आते थे और गढ़वाल के सम्मान के लिए हमेशा लड़ते रहे.
(Hemvati Nandan Bahuguna Museum)

बुधाणी गांव में स्थित हेमवती नंदन बहुगुणा का घर अब एक संग्रहालय के रूप में संरक्षित है. उनकी 98वीं जयंती पर इस संग्रहालय का उद्घाटन हुआ. यह 10-12 कमरों का दोमंजिला भवन है, जिसके दरवाज़े नक्काशीदार हैं, जैसे पुराने समय में हमारे पहाड़ के घरों में बहुधा दिखाई देते थे. 2 करोड़ 93 लाख रुपए की लागत से बनाए गए इस संग्रहालय में उनके पत्र, वस्त्र, घरेलू सामान, पत्नी के वस्त्र, यादगार तस्वीरें खासकर इंदिरा गांधी के साथ, शटर वाला पुराना छोटा सा ब्लैक एंड व्हाइट टीवी, ट्रांजिस्टर, रसोई घर के समान, खेती के औजा़र, लालटेन, माणा, पसेरी जैसे माप के बर्तन और भी बहुत सारी चीज़ें संरक्षित हैं.

हेमवती नंदन बहुगुणा की पहली पत्नी देवेश्वरी थी. फ़िलहाल उनकी फोटो संग्रहालय में उपलब्ध नहीं है. दूसरी पत्नी कमला त्रिपाठी की फोटो ज़रूर मिली. वर्तमान में संस्कृति विभाग इस संग्रहालय की देखभाल करता है. उनके पुराने घर को रूप और आकार में यथावत रखते हुए जीर्णोधार करने का प्रयास किया गया है.
(Hemvati Nandan Bahuguna Museum)

संग्रहालय में लेखिका

दिनेश्वरी उनियाल इस संग्रहालय की देखरेख करती हैं. हमारे वहां पहुंचने पर उन्होंने बहुत खुशी के साथ स्वागत किया. यकीनन उन्हें भी अकेलेपन में बातचीत करने के लिए किसी का इंतज़ार रहता होगा. संग्रहालय घूमते हुए हमारी जिज्ञासाओं को शांत किया. चाय का इंतज़ाम न होने पर अफसोस भी जयाता. साथ ही एक रजिस्टर में संग्रहालय के प्रति हमारे उद्गार भी लिखवा लिए. शासन द्वारा एक पीआरडी जवान भी तैनात किया गया है जो रात को ड्यूटी करता है.

दिनेश्वरी बताती हैं कि उद्घाटन के वक्त काफी लोग यहां पर आए थे लेकिन श्रीनगर से लगभग 16-17 किलोमीटर दूर होने के कारण बहुत अधिक लोग यहां पर नहीं आ पाते. फिर भी इक्का दुक्का  लोग आ ही जाते हैं. हां, वीडियो और यूट्यूब चैनल वाले खूब आते हैं.

बुधाणी गांव मोटर मार्ग से तो जुड़ा है लेकिन रोज़गार के अभाव में पलायन की मार झेल रहा है. सुना है कि एक समय यह गांव काफ़ी आबाद था लेकिन वहां पहुंचने पर मात्र सात- आठ परिवार ही दिखे. अल्मोड़ा और चंपावत के साथ-साथ पौड़ी गांव से भी भारी संख्या में पलायन हुआ है. आसपास में कुछ टूटे-फूटे खंडहर हो चुके मकान दिखे जो वीरानगी का एहसास करा रहे थे.

पूरे गढ़वाल क्षेत्र में रेलवे निर्माण कार्य जोर-शोर से चल रहा है लेकिन हकीकत में गांव खाली हो रहे हैं. मुख्य मार्ग पर संग्रहालय का बोर्ड लगा था. शुरुआत में कुछ चौड़े रास्ते से उतरकर फिर संकरी गलियों से होकर हम आगे बढ़े. एक छोटा सा पोस्ट ऑफिस दिखा जहां पर दो-चार लोग बैठे हुए गपशप कर रहे थे. कुछ आगे बढ़ने पर एक घर में बुजुर्ग मिले जिनसे हमने हेमवती नंदन बहुगुणा के घर का रास्ता पूछा और पहुंच गए हम संग्रहालय.
(Hemvati Nandan Bahuguna Museum)

मूलरूप से अल्मोड़ा की रहने वाली अमृता पांडे वर्तमान में हल्द्वानी में रहती हैं. 20 वर्षों तक राजकीय कन्या इंटर कॉलेज, राजकीय पॉलिटेक्निक और आर्मी पब्लिक स्कूल अल्मोड़ा में अध्यापन कर चुकी अमृता पांडे को 2022 में उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान शैलेश मटियानी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

इसे भी पढ़ें : ‘खिर्सू’ यहां से दिखती हैं बर्फ़ से ढके हिमालय की भव्य चोटियां

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