उत्तराखंड का एक लोकप्रिय त्यौहार है हरेला. उत्तराखंड में हरेला वर्ष में तीन बार मनाया जाने वाला प्रकृति से जुड़ा एक लोकपर्व है. उत्तराखंड के लोगों का प्रकृति से जुड़ाव दिखाता है हरेला पर्व से.
(Harela Festival 2021)
आज वर्ष का दूसरा हरेला बोया जायेगा. आज बोया जाने वाला हरेला सावन महीने लगने से नौ दिन पहले असौज महीने में बोया जाता है और 10 या 11 दिन बाद काटा जाता है. चैत्र के महिने हरेला चैत्र की पहली तारीख को बोया जाता है और नवमी को काटा जाता है इसी तरह आश्विन के महिने का हरेला नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरे के दिन काटा जाता है.
ऐसा नहीं है कि पूरे उत्तराखंड में सभी लोग साल में तीनों बार हरेला बोते हैं. यह एक कृषि पर्व है जो घर में सुख, समृद्धि व शान्ति के लिए बोया व काटा जाता है.
हरेला बोने के लिये एक टोकरी में मिट्टी ली जाती है. इसमें पांच या सात प्रकार के अनाज के बीज बोये जाते हैं. यह अनाज हैं जौ, गेहूं, मक्का, गहत, सरसों, उड़द और भट्ट. पहले यह टोकरी रिंगाल की होती थे लेकिन समय के साथ इसमें भी परिवर्तन आया है.
(Harela Festival 2021)
इस टोकरी को सूर्य की रौशनी से बचाया जाता है और सामान्यतः घर में मंदिर के पास रखा जाता है. हर दिन इसमें पानी डाला जाता है और अगले दस या ग्यारह दिन तक इसमें पानी डाला जाता है. साथ ही इसकी गुड़ाई भी जाती है.
पहले दो-तीन दिन में अनाज के बीजों मे अंकुरण होता है और दसवें दिन तक यह लम्बा हो जाता है. हरेला काटने के दिन घर पर पूजा का आयोजन होता है. हरेला काटने के बाद गृह स्वामी द्वारा इसे तिलक-चन्दन-अक्षत से अभिमंत्रित करता है, जिसे हरेला पतीसना कहा जाता है. उसके बाद इसे सबसे पहले अपने देवता को अर्पित किया जाता है. इसके बाद घर की सबसे वरिष्ठ महिला सभी सदस्यों को हरेला लगाती है.
हरेला लगाने का मतलब है कि हरेला सबसे पहले पैरों, फिर घुटने, फिर कन्धे और अन्त में सिर पर रखा जाता है और आर्शीवाद के रूप में कहती हैं
जी रया जागि रया
धरती जस आगव, आकाश जस चाकव है जये
सूर्ज जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो
दूब जस फलिये,
सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़ जाये
इस दिन हरेला घर के दरवाजों पर गोबर के बीच डालकर इसे सजाया जाता है. पहले परिवार के जो लोग घर से दूर होते थे उन्हें पोस्ट के द्वारा हरेला भेजा भी जाता था. ऐसा माना जाता है कि जिसका हरेला अच्छा खिलता है उस वर्ष उसके घर में उतनी अच्छी फसल होती है.
हरेला पर्व का एक वैज्ञानिक पक्ष यह हो सकता है माना जाता है कि व्यक्ति अपने खेत की मिट्टी का कुछ हिस्सा लेता है उसमें सभी प्रकार के अनाज के बीज डालता है और उसके बाद इस बात का अनुमान लगाता है कि उस वर्ष कौन सी फसल अच्छी हो सकती है.
(Harela Festival 2021)
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कहीं कहीं 9 दिन में भी काटा जाता है इसलिए कुछ लोग कल भी बोयेंगे।