घुघूती और पहाड़ का खूब घना संबंध है. पहाड़ के गीतों और कहानियों में घुघूती का जिक्र खूब मिलता है. घुघूती से जुड़ी एक लोककथा में कहा जाता है कि उसकी आवाज में तिल-पुर-छन-पुर-पुर के स्वर आते हैं. लोककथा इस तरह से है-
(Ghughuti Folk Stories Uttarakhand)
किसी गांव में एक विधवा महिला अपने सात-आठ साल के बेटे के साथ रहा करती थी. मां जब खेतों में काम पर जाती तो अक्सर अपने बेटे को घर पर अकेला ही छोड़ जाया करती थी. एक साल असौज के महीने में पूरे गांव के लोग अपने-अपने परिवार के साथ काम में जुटे हुये थे. महिला को तो अपना पूरा काम-काज अकेले ही देखना था.
एक सुबह रोज की तरह खेतों में जाने से पहले उसने तिल साफ किये और धूप में सुखाने डाल दिये थे. अबके साल खेती में कुछ न हुआ था सौकार से लिये हुये उधार के ब्याज के बदले इन्हीं किलो भर तिल की बात हुई थी. महिला ने अपने बेटे को बुलाया और कहा-
मैं तो खेत में जा रही हूँ तू तिल के दाने देखना. ध्यान रहे सारे तिल सौकार के ब्याज के बदले तारने हैं. एक भी तिल का दाना मुंह में मत डालना.
बेटे ने हामी में सिर हिलाया और मां चली गयी खेतों की ओर. बेटे ने पास से ही लकड़ी का मोटा एक टुकड़ा उठाया और खेलने लगा. कुछ घंटे अकेले खेलकर तिल की पहरेदारी तो बढ़िया हो गयी तभी उसके कुछ दोस्त पास की एक गाड़ में तैरने जाने लगे. एक पल को उसने सोचा रुक जाऊं पर मन न माना. वह दोस्तों के साथ तैरने चला गया.
सूरज खूब चमक रहा था. सूरज की गर्मी से तिल के भीतर की नमी जाती रही और वह सिकुड़कर कम दिखने लगे. सूरज सिर के ऊपर चमक रहा था. खेतों में कड़ी मशक्त के बाद लौटी मां पीठ पर बोझा लिये जब आंगन में आई तो देखा तिल तो कम दिख रहे हैं. आस-पास देखा बेटा गायब था. मां को लगा बेटे ने तिल खा लिये हैं और अब रफू-चक्कर है.
(Ghughuti Folk Stories Uttarakhand)
दुःखी जीवन में थकान ने उसका सिर और गरम कर दिया. न सूझा मां को कुछ. पकड़ी लकड़ी हाथ में और आस-पास पता किया- कहां जो है बेटा उसका. गाड़ में तैरने जाने की बात ने तो जैसे गर्म तवे में पड़े पानी जैसी भाप उसके भीतर छोड़ी. गुस्स्से में लकड़ी लिये चली मां गाड़ के पास. हाथ में लकड़ी लिये आती मां को देख बेटे को कुछ न सुझा. हुआ वह भागने को जैसे. उसका पैर एक चिकने पत्थर पर पड़ा.
रहा बेटा वहीं चित्त, मां की लोगों ने बस चीख सुनी. बादलों ने आसमान घेर लिया आधी रात तक बरसे. अगले दिन सुबह महिला अपने घर के भीतर से जब निकली तो देखा आंगन में पड़े तिल पहले जितने ही दिख रहे हैं. मां का मन हुआ चीख कर कहे- पूरे थे तिल मेरे बेटे पूरे थे तिल.
मां बहुत दिनों तक जिंदा न रह सकी. कहते हैं कि उसकी आत्मा घुघूती में आ गयी तभी से घुघूती के स्वर में सुनाई देता है- तिल-पुर-छन-पुर-पुर…
(Ghughuti Folk Stories Uttarakhand)
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