अगर कोई मुझे पूछे कि बच्चों के गीतों और प्रौढ़ों की कविताओं में क्या अंतर होता है तो मैं कहूंगा, वही जो किसी पहाड़ी स्रोत के जल और आर.ओ. के पानी में होता है. पहले पे कोई ठप्पा नहीं पर अपरिमित गुणों का भण्डार, दूसरा दिमाग की गहराई से जाँचा-परखा, फिर भी संदिग्ध, प्राकृतिक स्वाद से हीन.
(Ghughuti Basuti 2 Uttarakhand Children Songs)
बाल गीत, बाल खेल और बाल पहेलियों को लेकर घुघूती बासूति के दो खण्ड ई-बुक के रूप में निकले हैं, पहला कुमाऊंनी और दूसरा गढ़वाली भाग. सुखद यह भी कि यह इस अभिशप्त कोरोना-काल में निकले हैं. कहने की जरूरत नहीं कि यह काल बच्चों के लिए ही सर्वाधिक डरावना और अवसाद-भरा है. बड़े तो फिर भी इतिहास, विज्ञान और अध्यात्म की अपनी समझ से खुद को समझा सकते हैं पर बच्चे जिनके मन में पहले ही ढेरों जिज्ञासा होती है, प्रश्न होते हैं वो इस नए यक्ष-प्रश्न से हतप्रभ हैं. ऐसे में घुघूती बासूति के दोनों खण्ड उनके लिए दैवी उपहार से कम नहीं हैं.
घुघूती बासूति के दोनों खण्डों की सामग्री की परिकल्पना, संकलन व संपादन बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न और नवाचारी युवा हेम पंत और विनोद गड़िया ने की है. जैसे गीत, खेल, पहेली वैसा ही बच्चों के द्वारा ही चित्रित पन्नों पर अंकित ये सब सहज ही सभी के मन पर भी अंकित हो जाते हैं. बच्चों के लिए ये उपहार एक अद्भुत संसार में प्रवेश का मार्ग है तो वयस्कों के लिए अतीत की मधुर-गुदगुदाती यादें.
(Ghughuti Basuti 2 Uttarakhand Children Songs)
ये बाल गीत, खेल, लोरी, पहेली हम सभी के बचपन का अभिन्न अंग रहे हैं. इनमें चुपके से कुछ पढ़ाई-लिखाई के गीत भी डाल दिए गए हैं. इन सबको अलग कर अपने बचपन की कल्पना करें तो क्या बचता है, जीवन का शुरुआती रसहीन, बेस्वाद टुकड़ा. आश्चर्य ये भी कि ये सब अभी तक वाचिक परम्परा में ही जीवित रहा. किसी संस्थान, किसी विभाग और बच्चों के लिए काम करने वाली नामवर संस्थाओं ने भी इन्हें संकलित-प्रकाशित करने का प्रयास नहीं किया. जगनिक, अमीर खुसरो, सूरदास वे शुरुआती कवि हैं जिनकी रचनाओं में बाल -मनोविज्ञान केन्द्रित और बाल-रंजक गीत-कविता-पहेली-लोरी मिलती हैं. लोक में ये उससे भी पहले से है जिसका लालित्य, आकर्षण, स्वीकार्यता आज भी उतनी ही है.
मुझे लगता है कि घुघूती-बासूति के दोनों खण्डों की बेशक़ीमती और अद्भुत सामग्री और आपके बीच मुझे और अधिक नहीं रहना चाहिए. दोनों खण्डों को डाउनलोड कर अपने बच्चों को दें ये कह कर कि इन पन्नों में तुम्हें पापा-मम्मी, दादा-दादी, नाना-नानी का बचपन भी दिखेगा. और हाँ घुघूती बासूति गीत किस तरह सुनाते थे, खिलाते थे बच्चों को, करके भी जरूर दिखाएँ.
बच्चे आपको दिल से थैंक्यू कहेंगे पर आप हेम पंत, विनोद गड़िया और उनकी टीम को थैंक्यू कहना न भूलें. (Ghughuti Basuti 2 Uttarakhand Children Songs)
ईबुक को नीचे गये लिंक से आप भी डाउनलोड कर सकते हैं.
भाग 1 – TinyURL.com/Ebook-Uttarakhand-ChildrenSong Ghughuti Basuti 1 Uttarakhand Children Songs)
भाग 2- Garhwali Balgeet Ghughuti Basuti 2 Uttarakhand Children Songs
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1 अगस्त 1967 को जन्मे देवेश जोशी अंगरेजी में परास्नातक हैं. उनकी प्रकाशित पुस्तकें है: जिंदा रहेंगी यात्राएँ (संपादन, पहाड़ नैनीताल से प्रकाशित), उत्तरांचल स्वप्निल पर्वत प्रदेश (संपादन, गोपेश्वर से प्रकाशित) और घुघती ना बास (लेख संग्रह विनसर देहरादून से प्रकाशित). उनके दो कविता संग्रह – घाम-बरखा-छैल, गाणि गिणी गीणि धरीं भी छपे हैं. वे एक दर्जन से अधिक विभागीय पत्रिकाओं में लेखन-सम्पादन और आकाशवाणी नजीबाबाद से गीत-कविता का प्रसारण कर चुके हैं. फिलहाल राजकीय इण्टरमीडिएट काॅलेज में प्रवक्ता हैं.
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