संस्कृति

अद्भुत है बागेश्वर का यह गुफा मंदिर

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये क्लिक करें – Support Kafal Tree

बागेश्वर जिला मुख्यालय से करीब आठ किमी की दूरी पर एक गांव है पुरकोट. बागेश्वर-कपकोट सड़क मार्ग में बालीघाट से पुरकोट के लिये सड़क कटती है. पुरकोट में सड़क से करीब 400 मीटर की दूरी पर स्थित है गौरी उडियार. गौरी उडियार से दो कथाएं जुड़ी है. पहली कथा के अनुसार शिव-पार्वती विवाह के बाद लौटते हुए बारात ने यहां विश्राम किया था और दूसरी के अनुसार शिव-पार्वती विवाह में आमंत्रित देवताओं को गौरी उडियार में रखा गया था.      
(Gauri Udiyar Bageshwar Tourism)

उडियार एक कुमाऊनी शब्द है जिसका हिन्दी में अर्थ गुफा से है. इस उडियार के विषय में कहा जाता है कि इसकी छत पर गाय के थन जैसे चार-चार छः-छः अंगुल की टोटियाँ बनी हुई हैं जिनकी नोकों से दूध जैसे सफेद पानी की बूँदें नीचे छः-छः अंगुल से लेकर दो-दो गज की ऊँचाईवाले श्वेत शिवलिंगों पर टपकती रहती हैं.

स्थानीय दन्तकथाओं के अनुसार उडियार की छत से शिवलिंग पर दूध टपकता था. एक साधु द्वारा इसके सेवन करने के बाद से दूध नहीं नहीं टपकता. वर्तमान में गुफ़ा के सिरे पर मौजूद जल कुंड तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं. गौरी उडियार में सावन के माह और वैसाख पूर्णिमा के दिन विशिष्ट पूजा होती है.

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो उडियार में ऊपर का पहाड़ चूने का है जब इस उडियार की छत पर पानी मिलकर नीचे टपकता है तो सफ़ेद नजर आता है. कुछ पानी के नीचे गिरने के पहले ही भाप बन जाने के कारण उसका चूना जम जाता है, जिससे छत में थनका जैसा आकार बन जाता है और नीचे टोंटी-सी बन जाती है. थन के ठीक नीचे गिरे हुए पानी के वाष्पीकरण से उड़-उड़ कर चूना जम जाता है, जो प्रतिदिन तहों में बढ़कर लिंग का रूप धारण कर लेता है. अंग्रेजी में नीचे वाले शिवलिंगों को ‘स्टेलग्माइट्स’ और छत पर लटकनेवाली टोटियों को ‘स्टेलक्टाइट्स’ कहते हैं.       
(Gauri Udiyar Bageshwar Tourism)

स्वामी प्रणवानंद गौरी उडियार को गोरी उड्यार लिखते हैं. गौरी उडियार के विषय में स्वामी प्रणवानंद लिखते हैं –

बागेश्वर से उत्तर में 6 मील पर गोरी उड्यार नामक एक बड़ी गुफा है. गुफा की छत पर गौ के थन जैसे चार-चार, छः-छः अंगुल को टोटियाँ बनी हुई हैं जिनकी नोकों से दूध जैसे सफेद पानी की बूँदें नीचे छः-छः अंगुल से लेकर दो-दो गज की ऊँचाईवाले श्वेत शिवलिंगों पर टपकती रहती हैं. इस प्रकार के शिवलिंग सदा बनकर बढ़ते रहते हैं. इनमें से कुछ तो गिर भी जाते हैं और कई ऐसे भी हैं जिनके ऊपर के थन और लिंग मिलकर एक हो गए हैं. नीचे के लिंग की भाँति ऊपर के थन भी कितने नये-नये निकलते हैं और कितने बढ़ जाते हैं. यह गुफा देखने में बड़ी सुंदर लगती है. गुफा के बीच में एक घंटा लगा हुआ है तथा निकट के गांववालों के प्रबंध से एक शिवलिंग की पूजा भी होती है.

ऊपर का पहाड़ चूने का है और छत से चूने के श्वेत जल नीचे टपकता रहता है. कुछ पानी के नीचे गिरने के पहले ही भाप बन जाने के कारण उसका चूना जम जाता है जिससे छत में थनका-सा आकार बन कर नीचे टोंटी-सी बन जाती है. थन के ठीक नीचे गिरे हुए पानी के वाष्पीकरण से उड़-उड़ कर चूना जम जाता है जो प्रतिदिन तहों में बढ़कर लिंग का रूप धारण कर लेता है. इस प्रकार श्रद्धालु दर्शकों को ऊपर छत पर गौथनों से गिरती हुई दूध को बूँदें नीचे के शिवलिंगों पर अभिषेक करती हुई सो प्रतीत होती है. अंग्रेजी में नीचे वाले शिवलिंगों को ‘स्टेलग्माइट्स’ और छत पर लटकनेवाली टोटियों को ‘स्टेलक्टाइट्स’ कहते हैं. गुफा के नीचे एक सुंदर नाला बहता है, जिसमें छोटे-छोटे जलप्रपात और कुंड हैं.
(Gauri Udiyar Bageshwar Tourism)

-काफल ट्री फाउंडेशन

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

14 hours ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

7 days ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago