Featured

कुमाऊं का स्वतंत्रता संग्राम

उत्तराखंड में स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन की प्रारंभिक शुरुआत 1857 के दौर में एक तरह से काली कुमाऊं (वर्तमान चम्पावत जनपद ) से  हो चुकी थी. वहां की जनता ने अपने वीर सेनानायक कालू महरा की अगुवाई में विद्रोह कर ब्रिटिश प्रशासन की जड़ें एक तरह से हिला ही दी थीं. देखा जाय तो उत्तराखण्ड के स्वतंत्रता संग्राम के विद्रोहियों में कालूमहर व उसके दो अन्य साथियो का नाम ही सबसे पहले आता है.
(Freedom Struggle in Kumaon)

वर्ष 1870 में अल्मोड़ा में डिबेटिंग क्लब की स्थापना के बाद 1871 में संयुक्त प्रान्त का पहला हिन्दी साप्ताहिक अल्मोड़ा अखबार  का प्रकाशन होने लगा.1903 में गोविन्दबल्लभ पंत और हरगोविन्द पंत के प्रयासों से अल्मोड़ा में स्थापित हैप्पी क्लब के माध्यम से नवयुवकों में राष्ट्रीय भावना का जोश भरने का काम होने लगा.  प्रारम्भिक दिनों में अल्मोड़ा अखबार  बुद्धिबल्लभ पंत के संपादन में निकला बाद में मुंशी सदानंद सनवाल 1913 तक इसके संपादक रहे. इसके बाद जब बद्रीदत्त पांडे इस पत्र के संपादक बने तो कुछ ही समय में इस पत्र ने राष्टी्रय पत्र का स्वरुप ले लिया और उसमें छपने वाले महत्वपूर्ण स्तर के समाचार और लेखों से यहां की जनता में शनैः-शनैःराष्ट्रीय चेतना का अंकुर फूटने लगा. 1916 में नैनीताल में कुमाऊं परिषद् की स्थापना होने के बाद यहां के राजनैतिक,सामाजिक व आर्थिक विकास से जुड़े तमाम सवाल जोर-शोर से उठने लगे.

वर्ष1916 में महात्मा गांधी के देहरादून और 1929 में नैनीताल व अल्मोड़ा आगमन के बाद यहां के लोगों में देश प्रेम और राष्ट्रीय आंदोलन का विकास और तेजी से होने लग गया था.  इसी दौरान विक्टर मोहन जोशी,राम सिंह धौनी, गोविन्दबल्लभ पंत, हरगोविन्द पंत, बद्रीदत्त पांडे, सरला बहन,शान्तिलाल त्रिवेदी, मोहनलाल साह, ज्योतिराम कांडपाल और हर्षदेव ओली जैसे नेताओं ने कुमाऊं की जनता में देश सेवा का जज्बा पैदा कर आजादी का मार्ग प्रशस्त करने में जुटे हुए थे. 1926 में कुमाऊं परिषद् का कांग्रेस में विलय हो गया. 1916 से लेकर 1926 तक कुमाऊं परिषद् ने क्षेत्रीय स्तर पर कुली बेगार,जंगल के हक हकूकों व भूमि बन्दोबस्त जैसे तमाम मुद्दों के विरोध में आवाज उठाकर यहां के स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

1921 में उत्तरायणी के मेले पर बागेश्वर में बद्रीदत्त पांडे व अन्य नेताओं के नेतृत्व में कुमाऊं के चालीस हजार से अधिक लोगों ने कुली बेगार के रजिस्टर सरयू नदी की धारा में बहा दिये और इस कुप्रथा को हमेशा के लिए खतम करने  की शपथ ली. कुमाऊं का यह पहला और बड़ा असहयोग आंदोलन था. 1922 से 1930 के दौरान ब्रिटिश हुकूमत द्वारा जंगलों में जनता के अधिकारों पर लगायी गयी रोक के विरोध में जगह जगह आन्दोलन हुए और जंगलों व लीसाडिपो में आगजनी कर तथा तारबाड़ नष्ट करके जनता ने भारी असन्तोष व्यक्त किया.
(Freedom Struggle in Kumaon)

गांधी जी जब 1929 में कुमाऊं आये तो जगह जगह उनकी यात्राओं और भाषणों से यहां की जनता में और तेजी से जागृति आयी. 1930 में देश के अन्य जगहों की तरह कुमाऊं में भी अद्भुत क्रांति का दौर शुरु हुआ. इसी बीच अल्मोड़ा से देशभक्त मोहन जोशी ने स्वराज्य कल्पना के प्रचार हेतु स्वाधीन प्रजा नामक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ कर दिया था. ब्रिटिश हुकूमत के विरोध में आवाज उठाने पर इस पत्र पर जुर्माना लगा दिया गया और स्वाभिमान के चलते जुर्माना अदा न करने पर इस पत्र का प्रकाशन बन्द हो गया.

1930 में ही नमक कर को तोड़ने में डांडी यात्रा में गांधी जी के साथ ज्योतिराम कांडपाल भी शामिल हुए. इसी वर्ष कई जगहों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने की कोशिसें भी की गयी जिसमें बहुत से स्वयंसेवकों को लाठियां तक खानी पड़ीं. 25 मई 1930 को अल्मोड़ा नगर पालिका के भवन पर झण्डा फहराने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी धारा 144 लगने और लाठी चार्ज किये जाने के बाद भी भीड़ का उत्साह कम नहीं हुआ देशभक्त मोहन जोशी व शांतिलाल त्रिवेदी गम्भीर रुप से घायल हो गये तब सैकड़ों की संख्या में संगठित महिलाओं के बीच श्रीमती हरगोविन्द पंत श्रीमती बच्ची देवी पांडे व पांच अन्य महिलाओं ने तिरंगा फहरा दिया. 1932-1934 के मध्य कुमाऊं में मौजूद जाति-पाति व वर्ण व्यवस्था को दूर करने का कार्य भी हुआ और अनेक स्थानों पर समाज सुधारक सभाएं आयोजित हुईं. संचार तथा यातायात के साधनों के अभाव के बाद भी स्वतंत्रता संग्राम  की लपट तब यहां के सुदूर गांवां तक पहुंच गयी थी इसी वजह से 1940-41 के दौरान यहां व्यक्तिगत सत्याग्रह भी जोर शोर से चला.
(Freedom Struggle in Kumaon)

1942 का वर्ष कुमाऊं के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. 8 अगस्त 1942 को जब मुम्बई में कांग्रेस के प्रमुख कार्यकर्त्ताओं के साथ ही गोविन्द बल्लभ पंत की गिरफ्तारी हुई तो इसके विरोध में सम्पूर्ण कुमाऊं की जनता और अधिक आंदोलित हो गयी. ‘भारत छोड़ो‘ आंदोलन को कुचलने के लिए स्थानीय नेताओं व लोगों की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां की गयीं. जगह-जगह जुलूस निकालने और हड़ताल के साथ ही डाक बंगले व भवनों को जलाने तथा टेलीफोन के तारों को काटने की घटनाएं सामने आयीं. अल्मोड़ा नगर में स्कूली बच्चों ने पुलिस पर पथराव भी किया.अंग्रेजों द्वारा आजादी के सेनानियों के घरों को लूटने व उनकी कुर्कियां करने तथा उन्हें जेल में यातना देने के इस दमन चक्र ने आग में घी का काम कर दिया.

वर्ष 1942 के 19 अगस्त को देघाट के चौकोट, 25 अगस्त को सालम के धामद्यौ तथा 5 सितम्बर को सल्ट के खुमाड़ में जब ‘भारत छोड़ो‘ आंदोलन के तहत सैकड़ो ग्रामीण जनों ने उग्र विरोध का प्रदर्शन किया तो भीड़ को नियंत्रित करने ब्रिटिश प्रशासन के पुलिस व सैन्य बलों ने निहत्थी जनता पर गोलियां बरसायीं जिसके कारण इन जगहों पर नौ लोग शहीद हुए और दर्जनों लोग घायल हुए. सोमेश्वर की बोरारौ घाटी में भी आजादी के कई रणबांकुरो पर पुलिस ने दमनात्मक कार्यवाही की और चनौदा के गांधी आश्रम को सील कर दिया था.
(Freedom Struggle in Kumaon)

-चन्द्रशेखर तिवारी

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

अल्मोड़ा के निकट कांडे (सत्राली) गाँव में जन्मे चन्द्रशेखर तिवारी पहाड़ के विकास व नियोजन, पर्यावरण तथा संस्कृति विषयों पर सतत लेखन करते हैं. आकाशवाणी व दूरदर्शन के नियमित वार्ताकार चन्द्रशेखर तिवारी की कुमायूं अंचल में रामलीला (संपादित), हिमालय के गावों में और उत्तराखंड : होली के लोक रंग पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. वर्तमान में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में रिसर्च एसोसिएट के पद पर हैं. संपर्क: 9410919938

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

‘राजुला मालूशाही’ ख्वाबों में बनी एक प्रेम कहानी

कोक स्टूडियो में, कमला देवी, नेहा कक्कड़ और नितेश बिष्ट (हुड़का) की बंदगी में कुमाऊं…

2 days ago

भूत की चुटिया हाथ

लोगों के नौनिहाल स्कूल पढ़ने जाते और गब्दू गुएरों (ग्वालों) के साथ गुच्छी खेलने सामने…

3 days ago

यूट्यूब में ट्रेंड हो रहा है कुमाऊनी गाना

यूट्यूब के ट्रेंडिंग चार्ट में एक गीत ट्रेंड हो रहा है सोनचड़ी. बागेश्वर की कमला…

3 days ago

पहाड़ों में मत्स्य आखेट

गर्मियों का सीजन शुरू होते ही पहाड़ के गाड़-गधेरों में मछुआरें अक्सर दिखने शुरू हो…

4 days ago

छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : जिंदगानी के सफर में हम भी तेरे हमसफ़र हैं

पिछली कड़ी : छिपलाकोट अन्तर्यात्रा : दिशाएं देखो रंग भरी, चमक भरी उमंग भरी हम…

4 days ago

स्वयं प्रकाश की कहानी: बलि

घनी हरियाली थी, जहां उसके बचपन का गाँव था. साल, शीशम, आम, कटहल और महुए…

5 days ago