कला साहित्य

लोककथा : मेंढक राजकुमार

ऊँचे पहाड़ों की चोटी पर एक गरीब दम्पत्ति रहते थे. अपने ढलवां खेतों पर फसल बोकर वे किसी तरह गुजारा करते. पहाड़ी के निचले ढलानों पर उन दोनों मेहनती पति-पत्नी ने अपने खेत बनाये हुए थे. (Folklore The Frog Prince)

उमर ढलान पर थी और और एक संतान का जन्म लेना उन दोनों की सबसे बड़ी इच्छा थी.

उन दोनों ने सच्चे दिल से पहाड़ों के देवता की साधना की. देवता प्रसन्न हुए. कुछ दिनों बाद किसान की पत्नी गर्भवती हुई. नौ महीने बाद उसने एक बच्चे को जन्म दिया. ये क्या! उसके गर्भ से इंसान नहीं एक मेंढक जन्मा था.

‘‘आश्चर्य की बात है! यह मेंढ़क है. इसकी लाल खूंखार आँखें तो देखो, कैसी चमक रही हैं. इसे घर में रखने से क्या फायदा ? चलो, इसे बाहर फेंक आते हैं.’’ किसान ने कहा.

पत्नी ने कहा— ‘‘भगवान की यही इच्छा है. उसने हमें बच्चे के रूप में एक मेंढक दिया. अब हमें  प्रभु कि इच्छा समझ इसी मेंढक को अपना मां इसकी परवरिश करनी चाहिए. हमारे घर के पीछे जलकुंड में यह आसानी से रह लेगा.’’

पति मेंढक को उठाकर जलकुंड की तरफ ले जाने लगा तो मेंढक ने कहा ‘‘मुझे पानी में मत डालिए. मैं इंसानों के घर में पैदा हुआ हूं तो मुझे उन्हीं की तरह ही रहना चाहिए. बड़े होने पर मैं भी आदमी बन जाऊंगा.’’

उसे इंसान की भाषा में बात करता देख दंपत्ति हैरान रह गए. काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

दयालु पति-पत्नी ने सोचा इसे जरूर किसी का श्राप है जो यह मेंढक रूप में इंसान है. उन्होंने उसे घर में ही रहने दिया.

कई बरस बीत गए. एक दिन मेंढक ने अपनी बूढ़ी माँ से कहा— “माँ, मेरे लिए आटे की एक रोटी बना दो. मैं कल जमींदार के महल में जाकर उससे मिलूँगा. उसकी तीन सुंदर, सुशील बेटियां हैं. मैं उससे एक बेटी का हाथ मांगूंगा. मैं उन तीनों में से सबसे अधिक दयावान कन्या से विवाह करुंगा जो तुम्हारे काम में मदद कर सके.”

मां ने कहा, ‘‘तुम्हारे जैसे छोटे और भद्दे जानवर के साथ जमींदार भला क्यों अपनी सुंदर कन्या का ब्याह करेगा?”

मेंढक मां से जिद करता रहा तो उसका दिल पसीज गया. उसने उसे एक रोटी बनाकर दी.

अगले दिन एक बड़ी-सी रोटी थैली में रख मेंढक फुदकता हुआ जमींदार के महल की ओर चल दिया. महल के दरवाज़े पर पहुंच उसने द्वार खटखटाया.

दस्तक सुनकर ज़मींदार ने अपने नौकर को बाहर देखने भेजा. नौकर आश्चर्यचकित सा लौटा. उसने मालिक को बताया कि एक मेंढ़क दरवाज़े पर खड़ा आपको पुकार रहा है.

ज़मींदार के मुंशी ने सलाह दी कि यह ज़रूर कोई भूत-प्रेत है. इस पर गर्म राख डलवा दो.

ज़मींदार ने कहा ज़रूरी नहीं कि वह कोई भूत-प्रेत ही हो. हो सकता है कि वह जल-देवता का कोई संदेशा लेकर आया हो. उसे अंदर बुलाओ और देवताओं की तरह उसकी आवभगत करो. सबसे पहले उस पर दूध छिड़क दो. इसके बाद मैं खुद देखूंगा कि वह कौन है और मेरे राज्य में किसलिए आया है. उसके नौकरों ने ऐसा ही किया.

फिर ज़मींदार खुद उसके पास आया और पूछा- “मेंढक देव क्या तुम्हें जल-देवता ने भेजा है?

“नहीं” मेंढ़क ने उत्तर दिया. ‘‘मैं तो खुद आपके पास आया हूं. आपकी तीनों लड़कियां विवाह योग्य हैं. मैं उनमें से एक से शादी करना चाहता हूं.”

ज़मींदार और उसके सब नौकर मेंढक की अजीब बातें सुनकर सन्न रह गए. ज़मींदार ने कहा— ‘‘कैसे बेवकूफ हो? सूरत देखी है अपनी, कितने बदसूरत हो! कितने ज़मींदारों ने मेरी बेटियों से विवाह रचाना चाहा. फिर मैं कैसे एक मेंढ़क को अपनी बेटी ब्याह दूं.”

मेंढक बोला— “ठीक है अगर आप मेरी बात आसानी से नहीं मानते हैं तो मैं हंसना शुरू कर दूंगा.”

जमींदार बोला— “अगर हंसना ही है तो बाहर निकलो और जी-भरकर हंसो.”

मेंढक ने हँसना शुरू किया तो इतने ज़ोरों की आवाज़ हुई कि धरती कांपने लगी. ज़मींदार के महल के खम्भे ऐसे हिलने लगे मानो महल ही भरभराकर गिर जाएगा. महल की दीवारें चटखने लगीं और आसमान धूल-मिट्टी से भर गया. धूल ने सूरज को तक ढँक लिया.

घबराकर ज़मींदार बोला— “हंसना बंद करो मैं अपनी सबसे बड़ी बेटी का ब्याह आपके साथ करने को तैयार हूं.” अब उसे लगने लगा था कि यह कोई मायावी मेंढक है.

मेंढ़क ने हंसना बंद कर दिया. पृथ्वी ने भी डोलना बंद कर दिया और महल  स्थिर हो गया.

ज़मींदार ने दो घोड़े मंगाये—एक अपनी बेटी के लिए और दूसरा दहेज के लिए.

लड़की मेंढक से शादी करने के लिए राजी नहीं थी. उसने पत्थर के दो टुकड़े छिपाकर रख लिए. जिससे मौका मिलने पर मेंढक को ठिकाने लगा सके

मेंढक आगे-आगे फुदककर चलने लगा और ज़मींदार की बड़ी लड़की घोड़े में पीछे-पीछे. सारे रास्ते वह कोशिश करती रही कि घोड़ा और तेज चले और मेंढ़क को अपनी टापों के नीचे कुचल डाले. लेकिन मेंढक कभी इधर फुदकता कभी उधर. जब राजकुमारी को उसे कुचलना असंभव दिखाई दिया तो उसने छिपाया हुआ पत्थर निकाला और बगल में चल रहे मेंढक को दे मारा. फिर वह वापस घर की ओर चल दी. वह कुछ ही दूर लौटकर गई होगी कि मेंढ़क ने उसे पुकारा—

“ रुको. मेरी बात सुनो”

उसने मुड़कर देखा कि मेंढक ज़िंदा है.

मेंढक बोला— “हमारे भाग्य में पति-पत्नी का साथ नहीं है. घर लौट जाओ, इसी में तुम्हारी खुशी है.” वह राजकुमारी को घर वापस ले चला.

मेंढक ने राजकुमारी को पहुंचा दिया और ज़मींदार के पास जाकर बोला—“हम दोनों की जरा नहीं बनी. इसीलिए आप मुझे अपनी दूसरी बेटी सौंप दें.”

ज़मींदार गुस्से से चिल्लाया— ‘‘ अब तुम मेरी बेटी को वापस ले आये हो क्योंकि तुम मेरी हरेक बेटी को देखना चाहते हो.” इसलिए मैं अपनी किसी बेटी को अब तुम्हें नहीं सौंपने वाला.” वह गुस्से से कांपने लगा.

मेंढ़क बोला— “अगर ऐसा न हुआ तो मैं चिल्लाने लगूँगा.”

ज़मींदार ने सोचा चिल्लाता रहे इसका तो बस हंसना ही भयानक था. वह बोला—  “चिल्लाओ. अब मैं इन धमकियों से झुकने वाला नहीं हूं.”

मेंढ़क ने चिल्लाने लगा. उसकी आवाज़ किसी बम के धमाके से ज्यादा भयानक थी. चारों तरफ गड़गड़ाहट-ही-गड़गड़ाहट गूँज रही थी. कुछ ही पल में नदियों में बाढ़ आ गई. सारी ज़मीन पानी में डूबने लगी और पानी ज़मींदार के महल को डुबोने लगा.

ज़मींदार घबराकर बोला— “अच्छा चिल्लाना बंद करो मैं अपनी दूसरी बेटी की शादी तुम्हारे करने को तैयार हूं.”

ज़मींदार ने फिर दो घोड़े अस्तबल से निकालवाय और अपनी मंझली बेटी को आज्ञा दी कि मेंढक से साथ चली जाए.

मंझली बेटी भी मेंढक के साथ नहीं जाना चाहती थी. उसने भी एक बड़ा-सा पत्थर अपने पास छिपाकर रख लिया. उसने भी अपने घोड़े के पैरों टेल मेंढक को कुचलने की कोशिश की और एक पत्थर उसके ऊपर फेंककर वह भी बड़ी राजकुमारी की तरह वापस लौटने लगी.

मेंढक ने उसे भी कहा— मेंढक बोला— “हमारे भाग्य में पति-पत्नी का साथ नहीं है. घर लौट जाओ, इसी में तुम्हारी खुशी है.” वह राजकुमारी को घर वापस ले चला.

मेंढक ने ज़मींदार को मंझली बेटी लौटाकर कहा कि सबसे छोटी बेटी की शादी मुझसे कर दो. इस बार तो ज़मींदार का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उसने कहा “तुम बहुत बहाया हो. मैं ज़मींदार होकर तुम्हारी बदतमीजियां बरदाश्त कर रहा था. बस अब और नहीं.

मेंढक ने चिर-परिचित शांति से जवाब दिया— ‘‘नाराज़ न हों. आपकी दोनों बेटियां मेरे साथ ब्याह रचाने को राजी नहीं थीं इसलिए मैं उन्हें वापस ले आया. अब आपकी तीसरी बेटी मुझसे शादी करे. मैं बस यही चाहता हूं.

इस दुनिया में भला कौन लड़की एक मेंढक से शादी करने को राजी होगी?. अब बस बहुत हुआ, अब मेरा पीछा छोड़ो.

मेंढ़क ने कहा— “अगर आपने ऐसा नहीं किया तो इस बार मैं फुदकना शुरू कर दूँगा.”

ज़मींदार बोला— “तुम फुदको, उछलो, कूदो. अब मेरी तरफ से भाड़ में जाओ.

इस बार जैसे ही मेंढक ने फुदकना शुरू किया तो भूकंप से धरती डोलने लगी. पहाड़ हिलकर आपस में टकराने लगे. चट्टानें टूट-टूटकर बिखरने लगीं.. सारा आकाश पत्थरों और धूल-मिट्टी से ढक गया और सूरज दिखाई देना बंद हो गया. ज़मींदार का महल लगा अब गिरा, तब.

ज़मींदार एक बार फिर मेंढक के हाथ में अपनी बेटी का हाथ देने को तैयार हो गया. मेंढक ने जैसे ही फुदकना बंद कर दिया. पहाड़ और पृथ्वी शांति से ठहर गए.

जमींदार की छोटी बेटी अपनी बड़ी बहनों जैसी नहीं थी. वह बहुत दयालु थी और समझदार भी. उसे समाजः आ गया कि यह मेंढक साधारण तो है नहीं. इसे जरूर दैवीय शक्तियां हासिल हैं. वह खुशी से मेंढक के साथ चली गई.

जब मेंढक के घर पहुंचे तो उसकी मां के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. उसने सोचा कि मेरा छोटा-सा बेटा कितनी सुंदर बहू ले आया है.

लड़की बहुत काम-काजी भी थी. रोज अपनी सास के साथ जंगल, खेत पर काम करने जाती थी. वह अपनी सास की बहुत इज्ज़त किया करती थी. पूरा परिवार सुखी जीवन बिता रहा था.

पतझड़ के मौसम में हर साल उस इलाके में घोड़ों की बहुत बड़ी दौड़ का योजन होता था. आसपास के सैकड़ों गांवों के लोग घुड़दौड़ में भाग लेने आया करते थे. वे अपने साथ खेतों से हाल ही में काटा गया अनाज भी लाया करते थे. देवताओं के सम्मान में यह अनाज चढ़ाया जाता. मेला लगता. सभी ग्रामीण नाचते, गाते और अपने घोड़ों की दौड़ किया करते थे. वहां युवा लड़के-लड़कियां भी अपने जोड़ीदार ढूंढने पहुँचते थे.

इस बार के मेले में मेंढक की मां ने उससे भी साथ में चलने को कहा.  लेकिन उसने रास्ते की मुश्किलों का हवाला देते हुए मन कर दिया.

घर के सब लोग घुड़दौड़ में चले गए और मेंढ़क घर पर ही रह गया.

मेले के आखिरी तीन दिनों में घुड़दौड़ हुआ करती थी. रोज़ जो भी आदमी जीत जाता उसकी बड़ी इज्ज़त होती.

घुड़दौड़ के तीसरे दिन, जब दौड़ शुरू होने ही वाली थी, एक नवयुवक हरे रंग की पोशाक पहने हुए और हरे घोड़े पर सवार होकर वहां आया. वह बहुत सुंदर था. उसके कपड़े रेशम के बने हुए थे. उसके घोड़े की जीन पर सुनहरे  मोती जड़े थे. उसके पास सोने और चांदी की बंदूक भी थी. उसने आयोजकों से आखिरी घुड़दौड़ में भाग लेने की अनुमति मांगी. जब घुड़दौड़ शुरू हुई तो उसने दौड़ने की कोई जल्दी नहीं दिखाई. यहां तक कि जब और लोग घोड़े दौडाना शुरू कर चुके थे वह जीन ठीक कर रहा था. लेकिन शीघ्र ही वह दौड़ में शामिल हो गया.

घुड़दौड़ के बीच में भी वह आराम से चल रहा था. दौड़ के बीच में ही उसने अपने सिर के ऊपर उड़ते हुए तीन कबूतरों का अपनी बंदूक से शिकार किया. दौड़ के बीच में ही उसने घोड़े की जीन में से कुछ सोने के फूल निकाले और उन्हें अपने बायीं ओर लोगों के ऊपर फेंक दिया. इसी प्रकार जीन की दायीं ओर से कुछ चांदी के फूल निकाले और उन्हें अपनी दाहिनी ओर वाले लोगों पर फेंक दिया. जल्द ही लोगों ने देखा कि उसका घोड़ा आगे भागा जा रहा है; ऐसा प्रतीत होता था कि उसका घोड़ा हवा में उड़ रहा हो. लोग उसे देखने के लिए उठकर खड़े हो गए. उस दिन आखिरी घुड़दौड़ में जीत उसी की रही.

घुड़दौड़ में मौजूद हर शख्स युवक पर मुग्ध हो गया. बड़े-बूढ़े और लड़कियां सभी उसके दीवाने हो चले. लोग जानना चाहते थे कि उसका क्या नाम है और वह कहां का रहने वाला है.

“कितना सुंदर और तंदुरुस्त लड़का है! घोड़ा तो देखो, जैसे देवताओं का हो!” “लेकिन ऐसे सुंदर और तंदुरुस्त लड़के लिए यह तो सोचो कि लड़की कहां मिलेगी.” फुसफुसाहटें बढ़तीं जा रही थीं.

लड़कियां उसके चारों ओर एकत्रित होकर नाचने लगीं और उसे अपने-अपने तम्बू में आने के निमंत्रण देने लगीं.

लेकिन शाम ढलते ही वह घुड़सवार बिना किसी का निमंत्रण स्वीकार किये ख़ामोशी से अपने घोड़े पर सवार उस गांव की ओर चल दिया जहां से मेंढक की मां और पत्नी आए थे.

मेंढक की पत्नी भी उसकी सुंदरता पर मुग्ध थी. वह स्वयं भी उसका नाम जानना चाहती थी.

मेंढक दरवाज़े पर उनका इन्तजार करता मिला. उन्होंने जैसे ही घुड़दौड़ की बातें सुनानी शुरू की वह आगे-आगे सब बताने लगा. उन लोगों को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि मेंढक सब बातें पहले से ही जानता.

अगले साल फिर पतझड़ के दिनों में घुड़दौड़ हुई. मेंढ़क की पत्नी, मां और पिता फिर घुड़दौड़ में गए.

जब आखिरी दौड़ हो रही थी, हरा घुड़सवार फिर अपने हरे घोड़े पर बैठ वहां आया . वह एकदम ऐसे आया मानो आकाश से उतरा हो. लोग उसे देखकर आश्चर्यचकित रह गए. इस बार भी उसके पास अपनी वही सोने-चांदी वाली बंदूक थी लेकिन इस बार उसके शरीर पर पिछली बार से भी अधिक सुंदर और कीमती कपड़े थे. जब अन्य सब घुड़सवारों ने अपनी दौड़ शुरू कर दी तो उसने आराम से बैठकर चाय पी और पीकर तेज़ी से उठा और इस बार भी पिछले साल की भांति उसने तीन कबूतर अपनी बंदूक से दौड़ते-दौड़ते ही मार डाले. जिस समय वह लोगों के सामने से गुज़र रहा था, उसने अपने घोड़े की बायीं ओर वाली जीन में से सोने के कुछ फूल निकाले और उन्हें अपनी बायीं ओर वाले लोगों पर उछाल दिया. फिर उसने दायीं ओर से चांदी के कुछ फूल निकाले और उन्हें अपनी दाहिनी ओर वाले लोगों पर बिखेर दिया. इसके बाद वह बहुत तेजी से आगे की ओर भागा और लोगों को ऐसा प्रतीत हुआ मानो वह एक हरे बादल की सवारी कर रहा हो. बस, हरे-हरे मैदान में एक हरा बादल उड़ता हुआ नज़र आ रहा था. और इस बार लोगों ने फिर देखा कि वह घुड़दौड़ में जीत गया था.

लड़कियों ने इस बार फिर उसके सामने अपना नाच और गाना रखा और उसे अपने तम्बू में ले चलने के लिए कहने लगीं. लेकिन दिन छिपते ही उसने फिर बिना किसी से कहे अपने घोड़े को एड़ लगाई और मैदान से भाग लिया.

जब मेंढक की पत्नी और मां घर आयी तो उन्हें यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि इस बार फिर मेंढक को सब बातें मालूम थीं.

इस बार लड़की के दिमाग में उथल-पुथल हुई कि जब वह घुड़दौड़ में जाता नहीं है तो उसको सब बातें मालूम कैसे हो जाती हैं. उस घुड़सवार को दिन छिपने से पहले ही क्‍यों जाना पड़ता है? वह हमारे घर की तरफ ही क्यों जाता है? क्या इस दुनिया में सचमुच ही ऐसा कोई घुड़सवार हो सकता है? फिर मेंढ़क को उसके बारे में सब बातें कैसे मालूम चल जाती हैं? उसने निश्चय किया कि वह इन बातों का पता लगाकर ही रहेगी.

अगले साल फिर घुड़दौड़ आयी. लड़की मेले में गई. लेकिन आखिरी दिन, जब आखिरी घुड़दौड़ होने वाली थी, वह अपनी सास से बोली— “माताजी, मेरी तबियत खराब हो रही है मैं घर जाना चाहती हूँ. आप मुझे एक खच्चर दे दो.”

लड़की की सास ने उसे खच्चर दे दिया. जब वह अपने सास-ससुर की आंखों से दूर हो गई तो उसने खच्चर को तेजी से घर की ओर दौड़ाया. घर पहुंचकर उसने सबसे पहले मेंढक को ढूँढा. लेकिन उसे मेंढ़क कहीं भी दिखाई न दिया. उसे एक कोने में उसके पति की मेंढक की खाल पड़ी मिली. उसकी आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे.

उसने सोचा कि मैं कितनी सौभाग्यशाली हूं! मेरा पति कितना सुंदर है और कितनी अच्छी घुड़सवारी करता है!

वह बार-बार अपने आंसू रोकने की कोशिश करती लेकिन आंसू थे कि रुक ही नहीं रहे थे. वह बार-बार मेंढ़क की खाल को देख रही थी और सोच रही थी कि उसके पति को इतनी गंदी खाल नहीं पहननी चाहिए.

उसने उसे जला देने का निश्चय किया. वह सोच रही थी कि जब मेंढ़क यहां आएगा तो इसी बदसूरत वेश में बदल जाएगा इसलिए उसने उसे जला दिया.

जब उसने खाल जलाई तो सूरज डूब रहा था. तभी अचानक नवयुवक अपने हरे घोड़े पर सवार बादलों की तरह उड़ता हुआ वहां आया. जब उसने अपनी पत्नी को खाल जलाते देखा तो उसका रंग पीला पड़ गया और उसने फौरन घोड़े से उतरकर खाल को आग में जलने से बचाने की कोशिश की. लेकिन उसे बहुत देर हो गई थी. मेंढ़क की केवल एक टांग ही बची थी. काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

उसने एक ठंडी सांस ली और घर के सामने पड़े एक बड़े पत्थर पर जाकर गिर पड़ा. लड़की यह देखकर बहुत डर गई और उसकी सहायता करने के लिए दौड़ी.

लड़के ने उससे कहा— “तुम बहुत आतुर हो गई. जो कुछ भी तुमने किया है, वह बहुत जल्दी कर डाला. अभी हमें कुछ दिन रुकना था. अब मैं ज़िंदा नहीं रह सकता और लोग पृथ्वी पर खुश नहीं रह सकते.”

“क्या मैंने कुछ गलत काम कर डाला है?” लड़की ने पूछा, “बोलो, अब मुझे क्या करना चाहिए?”

“इसमें तुम्हारी गलती नहीं है. मेरा ही दोष है. मैं बहुत ज्यादा लापरवाह हो गया था. यही वजह थी कि मैं घुड़दौड़ में जा पहुंचा. मैं लोगों को अपनी ताकत दिखाना चाहता था. लेकिन अब न तो हम लोग और न ही दुनिया के लोग सुखी रह सकते हैं. मैं कोई साधारण आदमी नहीं हूं, बल्कि पृथ्वी माता का बेटा हूं. अगर मैं और अधिक मज़बूत हो गया होता तो मैं लोगों की मदद करने के लिए खड़ा हो सकता था. मैं ऐसी दुनिया के स्वप्न देखा करता था जिसमें अमीर लोग गरीबों का खून चूसना बंद कर दें और जिसमें अफसर लोग अपने से नीचे के आदमियों को दबाया न करें. मैं चाहता हूं कि सब लोगों के पास राजधानी में जाने के लिए साधन हों और सब लोग आपस में मिल-जुलकर अपनी भेड़ और बकरियों का व्यापार कर सकें. लेकिन अभी मैं इतना बड़ा नहीं हुआ था और मेरी शक्तियां भी अभी बहुत सीमित थीं. अभी तक मुझमें इतनी शक्ति नहीं पैदा हुई कि मैं रात की ठंड को बिना अपनी मेंढ़क की खाल के सह सकूं. इसलिए दिन निकलते ही मैं मर जाऊंगा. जब मैं धीरे-धीरे इतना बड़ा हो जाता कि लोगों की इतनी सेवा कर सकता तो मेरे शरीर में इतनी शक्ति पैदा हो जाती कि मैं बिना मेंढ़क की खाल के रह सकता था. लेकिन अभी यह बहुत जल्दी है. तुमने यह क्या कर डाला? अब मैं यहां पृथ्वी पर नहीं रुक सकता. आज ही रात को मैं अपनी मां के पास लौट जाऊंगा.”

जब लड़की ने यह सुना तो उसकी आंखों से आंसू बहने लगे. उसने नवयुवक के कमज़ोर शरीर को अपनी बांहों में संभाल लिया और बोली-“तुम नहीं मर सकते . मुझे विश्वास नहीं होता कि तुम मर जाओगे. नहीं, नहीं, मैं तुम्हें मरने नहीं दूंगी.”

लड़की शोक से कातर होकर इतनी बुरी तरह चिललाने लगी कि नवयुवक ने उसका हाथ अपने कमज़ोर हाथों में लेकर कहा-“प्रिय, तुम इतना दुःखी मत हो. अगर तुम वास्तव में यह चाहती हो कि मैं ज़िंदा रहूं तो अब भी तुम कुछ कर सकती हो.” उसने पश्चिम की ओर इशारा किया, “लेकिन यह सब केवल भगवान की इच्छा और उनकी अनुमति से ही किया जा सकता है. मेरा घोड़ा ले लो. अभी भी समय है क्योंकि मेरा घोड़ा हवा की तरह भागता है. वह तुम्हें पश्चिम दिशा की ओर ले जाएगा जहां लाल-लाल बादलों के बीच एक बहुत बड़ा महल है. वहां जाकर भगवान से प्रार्थना करना. कहना कि लोगों की भलाई के लिए वह इन तीन बातों को पूरा कर दें. उनसे कहना कि यह सब दिन निकलने से पहले ही कर दें. देखो, अच्छी तरह याद कर लो. पहली बात यह है कि लोग गरीब और अमीर न कहलायें, सबके पास बराबर धन हो. दूसरा यह कि अफसर लोग और सरकारी आदमी जैसे ज़मींदार आदि जनता को न दबायें. और तीसरे यह कि हमारे पास नगरों तक जाने के लिए सड़कें हों और हम वहां जाकर व्यापार कर सकें. अगर भगवान तुम्हारी इन बातों को मान जाते हैं तो हम सब सुख से रह सकेंगे और मुझमें इतनी शक्ति हो जाएगी कि मैं रात को भी बिना मेंढक की ख़ाल के रह सकूंगा.

लड़की फौरन घोड़े पर सवार होकर वहां से चल दी. घोड़ा उसे लेकर हवा में उड़ रहा था. हवा उसको छूकर भागी जा रही थी और वह बादलों के बीच में होती हुई पश्चिम दिशा की ओर उड़ रही थी. अंत में वह उस महल के सामने आयी जो सूर्य की भांति लाल-लाल चमक रहा था. वह अंदर गई और उसने भगवान से अपनी प्रार्थनाएं कहीं. भगवान उसकी बातों की सच्चाई और उसके दुःख को देखकर पिघल गए और उन्होंने उसकी बातें मान लीं.

भगवान उससे बोले-“तुम्हारी बातों में सच्चाई है इसलिए मैं तुम्हारी सब. बातें मान लूंगा. लेकिन दिन निकलने से पहले तुम्हें जाकर यह खबर सब घरों में पहुंचा देनी होगी. तुम्हारी प्रार्थनाएं तभी पूरी हो सकेंगी, यदि सब लोग इस बात को दिन निकलने से पहले सुन लें. तब यहां इतनी अधिक ठंड पड़नी बंद हो जाएगी और तुम्हारा पति रात को भी बिना मेंढ़क की खाल के रह सकेगा .”

लड़की खुशी के मारे फूली नहीं समा रही थी. उसने भगवान को धन्यवाद दिया और अपने घोड़े पर चढ़कर घर की ओर चल दी जिससे दिन निकलने से पूर्व ही वह इस समाचार को घर-घर फैला सके.

लेकिन जब वह घाटी में घुसी तो उसका ज़मींदार पिता किले के दरवाज़े पर खड़ा हुआ था.

जब उसने अपनी बेटी को आते देखा तो वह बोला-‘क्यों बेटी, तुम इतनी देर गए यहां क्‍यों आयी हो?”

उसने कहा, “पिताजी, भगवान ने मुझे एक बहुत ही आश्चर्यजनक वरदान दिया है. अब मैं उसे सबको बताने जा रही हूं.”

“जल्दी कहां की है!” ज़मींदार बोला, “ज़रा मुझे तो बताओ, भगवान ने तुम्हें क्या-क्या वरदान दिए हैं.’

‘पिताजी, मैं एक मिनट के लिए भी नहीं रुक सकती मेरे पास इतना समय नहीं है. मैं आपको फिर बता दूंगी.” लड़की बोली.

“यह नहीं हो सकता. मैं ज़मींदार हूं और तुम्हें सबसे पहले मुझे ही बताना पड़ेगा.” और उसने आगे बढ़कर घोड़े की लगाम पकड़ ली.

लड़की जानती थी कि उसका पिता इस तरह नहीं मानेगा लेकिन वह उससे जल्दी-से-जल्दी छुटकारा पाना चाहती थी इसलिए उसने उसे सब कुछ सच-सच बता दिया. वह बोली-“भगवान ने मुझसे तीन वायदे किए हैं. पहला तो यह है कि गरीब और अमीर में कोई भेद नहीं रहेगा.”

ज़मींदार ने अपना सिर खुजलाया. वह बोला-“अगर गरीब और अमीर में कोई भेद नहीं रहेगा तो मेरी इज़्ज़त कौन करेगा और तुम्हारी बहनों के लिए दहेज का पैसा कहां से आएगा?”

यह कहकर उसने घोड़े की लगाम को और भी कसकर पकड़ लिया.

“दूसरी बात यह है कि सरकारी अफसर आम जनता को नहीं सतायेंगे .”

“यह क्या मूर्खता है! फिर हमारा काम कौन करेगा? हमारी भेड़-बकरी कौन चराएगा? हमारे खेत कौन जोतेगा?” उसने बड़े ही बेमन से कहा और पूछा कि तीसरा वचन क्‍या है?

“और तीसरी बात यह है कि यहां से नगरों तक कोई रास्ता बन जाए और हम लोग वहां पर व्यापार कर सकें. अहा, पिताजी, जब यह सब बातें हो जायेंगी तो यहां की ठंड बिलकुल खत्म हो जाएगी और यहां काफी गर्मी पड़ने लगेगी. उसके बाद-”

लेकिन ज़मींदार ने बीच में ही टोककर कहा-“ये सब बेकार की बातें हैं. ऐसा कभी नहीं हो सकता. हमारा काम अब बिलकुल ठीक तरह से चल रहा है. हमें शहर जाने की क्या जरूरत है? यह कभी भी भगवान के हुक्म नहीं हो सकते. मुझे इनमें से किसी भी बात पर विश्वास नहीं है. मैं तुम्हें इनमें से एक भी शब्द लोगों को नहीं बताने दूंगा.”

“पिताजी, मैं अब यहां एक क्षण भी नहीं ठहर सकती.” लड़की ने चिल्लाकर कहा, “मुझे आप फौरन जाने दीजिए .”

उसने भागने की कोशिश की लेकिन उसके पिता ने घोड़े की लगाम नहीं छोड़ी . बेचारी लड़की बहुत अधिक दुःखी हो रही थी और उधर उसका पिता उससे सवाल-जवाब करने पर तुला हुआ था.

तभी मुर्गा बोला. लड़की तेजी से कूदी और घोड़े को छुड़ाना चाहा. लेकिन ज़मींदार अभी भी उसे कसकर पकड़े हुए था. वह जोर से चिल्लाया-“क्या तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है? कया तुम चाहती हो कि तुम्हारी बहनों की शादी में मैं दहेज न दूं? क्या तुम अपने पिता की बेइज्ज़ती करना चाहती हो? क्या तुम चाहती हो कि मैं घर का सब काम अपने हाथ से किया करूं? हमारी भेड़-बकरियां कौन चरायेगा? हमारे खेत कौन जोतेगा? क्या तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है?”

लड़की की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए. मुर्गा दूसरी बार फिर बोला और इधर उसका पिता उसे छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था.

अंत में निराश होकर उसने अपने घोड़े को बड़े जोर से कोड़ा लगाया. घोड़े ने ज़मींदार को एक ओर फेंक दिया और हवा से बातें करने लगा. लड़की अभी पहले मकान पर ही पहुंच पायी थी कि मुर्गा तीसरी बार फिर बोला. पौ फटने लगी थी और अब तक कुछ ही घरों में वह अपनी बात कह पायी थी.

लड़की का दिल बैठने लगा. पौ फट गई थी और उसका काम अभी आधा भी नहीं निपटा था. अब तो बहुत देर हो गई थी. अब केवल उसके लिए यही चारा रह गया था कि वह घर की ओर जल्दी से कदम बढ़ाए.

उसने देखा कि उसके ससुर उसके पति के पास खड़े हुए रो रहे हैं और उसकी सास मृतक की आत्मा को शांति देने के लिए भगवान से प्रार्थना कर रही है.

सब बेकार हो गया था. वह अपने पति के शव पर गिर पड़ी और अपने पिता को कोसती हुई जोर-जोर से रोने लगी.

इस घुड़सवार नवयुवक के शव को वहां से कुछ दूर पर ही एक चट्टान पर दफना दिया गया. रोज शाम को जाकर वह लड़की उसकी कब्र के पास रोती. अंत में एक दिन वह खुद भी पत्थर में बदल गई. उस दिन के बाद लोगों को उसका रोना सुनाई देना बंद हो गया.

आज भी उस कब्र के पास वह पत्थर की लड़की बनी हुई है. बहुत दूर से देखने पर ही तुम्हें मालूम चल जाएगा कि वह कोई लड़की है जिसके बाल बिखरे हुए हैं और वह भगवान से प्रार्थना कर रही है. वह अपने पति की कब्र के पास सदा से इसी प्रकार प्रार्थना करती रही है और सदा इसी प्रकार प्रार्थना करती रहेगी.

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Sudhir Kumar

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कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

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इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

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गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

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मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

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