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लोक कथा : लड़की जिसका सर्प के साथ ब्याह हुआ

एक अन्यायी और चापलूसी-पसंद राजा था. जो तो उसकी चाटुकारी में कसीदे गढ़ता उसे वह खूब खैरात बांटता लेकिन जो उसके मुंह पर सच बोल देता उसे वह कठोर दंड दिया करता. राजा की दो बेटियां थीं. बड़ी बेटी मेथी बचन बोलती लेकिन चाटुकारिता में माहिर थी. छोटी बेटी निश्छल और निष्कपट थी तो मुख पर बुरा बोलने से भी पीछे नहीं हटती थी. (Folklore of Uttarakhand)

एक दिन राजा ने अपनी बड़ी बेटी को पास बुलाकर उससे पूछा “तुम किसके भाग का खा रही हो और राज सुख भोग रही हो?” चाटुकार राजकुमारी ने कहा — मैं आपके भाग का खा रही हूँ और उसी वजह से मुझे राजसुख मिला हुआ है. राजा ने खुश होकर उसे खूब सौगातें दीं. उसके बाद उसने छोटी राजकुमारी को बुलाकर पूछा “तुम किसके भाग का खा रही हो और राज सुख भोग रही हो?” छोटी बेटी ने तत्परता से जवाब दिया — मैं अपने भाग का खा-पी रही हूं और राजसुख भोग रही हूं. उसकी बातें सुनकर राजा को सनक चढ़ गयी. उसने बिना सोचे-समझे घमंड में राजकुमारी से कहा — कल सुबह जो सबसे पहले राजमहल में आएगा उसके साथ में तेरा ब्याह कर दूंगा.

रानी के पास माँ का दिल हुआ तो वह बहुत दुखी हो गयी और रात भर सोयी नहीं. राजपरिवार और राजमहल में अन्य लोग भी छोटी राजकुमारी को बहुत प्यार करते थे. लेकिन राजा से कुछ बोलने की किसी की भी हिम्मत नहीं हुई. सब बस सुबह का इंतजार करने लगे.

दूसरे दिन सुबह सबसे पहले एक सर्प राजमहल में दाखिल हुआ. जैसे ही वह राजा को दिखा उसने राजपुरोहित बुलवाकर सर्प के साथ राजकुमारी के फेरे करवा दिए. राजा ने सर्प की पूँछ में छोटी बेटी का आंचल बाँधा और उसे विदा किया. बेचारी क्या करती रोती हुई सर्प के पीछे चलती रही. कई दिन कई रात कोसों दूर तक वह सर्प चलता रहा. आखिर में वह एक सोने के महल के पास पहुंचकर रुक गया. उसने अपना रूप बदला राजकुमार के वेश में वह महल के अंदर पहुंचा. इस तरह बाद में वह राजकुमारी रानी बन गयी.

उधर छोटी बेटी के चले जाने के बाद से राजा किसी न किसी तरह के कष्ट, दुःख से घिरा ही रहा. पड़ोसी राजा ने हमला कर उसके चाटुकारों की मदद से राज्य का आधा भाग भी हड़प लिया. एक दिन उसने सोचा बहुत वक़्त हो गया है छोटी बेटी की सुध लेता हूं, भला जिंदा भी है या मर गयी हो. वह उसे ढूंढने लगा.

किसी दिन राजा एक महल के पास पहुंचा तो देखा वहां सदावर्त लगा हुआ है. गरीबों को खैरात बांटी जा रही है. राजा-रानी रोज खुद हाथों से दान देते थे. राजा ने सोचा यहाँ काफी लोग इकठ्ठा हैं तो उसे अपनी बेटी के बारे में जानकारी मिल सकती है. वह भीड़ के बीच पहुँचा तो रानी ने उसे पहचान लिया. वह दौड़ी हुई आई. पिता के पाँव छूकर आशीष मांगा और उन्हें सादर महल में ले आई. जिस बेटी का अंचल सर्प से बाँधा था उसके ठाठ देखकर व् अपने प्रति उसका आत्मीय भाव देखकर राजा बहुत शर्मिंदा हुआ और पश्चाताप से भर गया.

राजा ने सोचा वह अपनी जीभ दांतों के नीचे काट कर अपने प्राण त्याग दे. बेटी खुशी से राजा को महल घुमाने लगी. उसने राजा को उस वैभवशाली महल के सभी कक्ष दिखा दिए लेकिन एक रहने दिया. राजा ने उस कमरे के बारे में जिज्ञासा दिखाई तो उसने पिता को उस कक्ष को देखने से मना किया. लेकिन राजा न माना और हाथ कर उस कमरे में दाखिल हुआ. अंदर क्या देखता है कि उन सभी के प्राण गर्म तेल के कड़ाहों में तले जा रहे हैं जिन्होंने अपनी बेटियों के साथ अन्याय, अत्याचार किये हैं. यह देखकर वह इतना विचलित हुआ कि वहीँ पर प्राण त्याग दिए.  

लोक कथा : माँ की ममता

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Sudhir Kumar

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  • बहुत सुन्दर लोक कथा ...बहुत सुनी कही जखती है ये घर गाँवों में...

  • बहुत अच्छी कहानी है, कहानी से हमें शिक्षा भी मिलती है कि हमें किसी के साथ गलत नहीं करना चाहिए!

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