कथा

कुमाऊनी भाषा में एक लोकप्रिय लोककथा

भौत पैलिये बात छु. एक गौं में एक बुड़ और एक बुड़ी रौंछी. उ द्वियनै में हइ-निहई कजी लागिये रोनेर भै. नानतिन उनर क्वे छी नै. एक चेलि छी वीक ले भौत पैली ब्या है गोछी.
(Folklore in Kumaoni Language)

रोज-रोजक झगड़ देखि बेर एक दिन बुड़ियल बुड़ थैं को “हमन के न्यार है जाण चैं, जो कुछ ले हमर पास छु, उके आपस में बाटि ल्हिनू.” बुड़ियेकि बात सुणि बेर बुड़ल सोचो रात दिनक झगड़ है भले भै न्यार हुण में. वील को “ठीक छु हम न्यार है जानू” बड़ि ठुलि जैजात त छिन नै. ल्हि दि बेर एक गोरु और बल्द. गोरु बुड़िया हिस में ऐ और बल्द बुड़ा हिस में.

बुड़ियक गोरु दूण छी. बुड़ रातों-रात गोरु कैं पिवै बेर वीक दूद पि ल्हिनरे भै. बुड़ी थैं कूनेर भै “बुड़िया-बुड़ी म्यर बल्द ब्यै रौ.” जब बुड़िया खाण पिण हूँ के नि भयो वील सोचौ द्वि-चार दिननैं थैं मैं आपणि चेलिक सौरास ल्हे जौं. यो सोचि बेर बुड़ी लागि बाट आपणि चेलि वांहूँ.

आब् बुड़ियल चार लाप अघिल कै धरि तो बाट् में उकैं एक बाग मिल. बागल कौ ‘बुड़िया-बुड़ी त्वील सुणी, मैं तुकैं खांछी, तू काँ जांछी. ” बुड़ियल कौ- प्वथा के खांछै तू मैं कैं, के छु मैं पर. आज मैं आपण चेली सौरास जनयूँ, चार दिन वाँ रै बेर खूब खूंल-प्यूल और म्वटै बेर ऊंल तब तू मैं कैं खयै.” बागल सोचो ठीक कूनैं और बुड़ी क जांण दे.
(Folklore in Kumaoni Language)

मणि अघिल जांण पर बुड़ी के मिल एक भालु. भालुल ले बुड़ी थे उसे कै बुड़ियल ले उसै जबाब दी. भालु ले राजि है गै. मणि अघिल जांण पर मिलि बुड़ी कैं मिली एक स्यूं. स्यूंल लै उसै कै बुड़ियल उसै जबाब दी. स्यूंलै राजि है गै. बुड़ी जसी तसी पुजि आपण चेली घर. वाँ बुड़िये कि बड़ी आवा भगत करी गै. बुड़ियल बाट पनै कि बात कै थैं नि कै. चेली घर में सब तरफ बटी ध्यान धरी नेर भै, पैं बुड़ी मोटाणै जाग में और सुकि ऐ गै. चैली मन मैं बढ़ि नकि जसि लागै-वील इज थैं कै – इजा-इज, मैं तुकै हात खुट नि हलकूण दिनी, नैं के नक भल जस कौंनीं जतुक है सक खाण-पिण ले, ठीकै जस है रो-पैं तू दिन-पर-दिन दुबवै औनेछे-भाल तुकैं के दुःख पीड़ जसि के है रे मैं कैं बता.

बुड़ियल चेलि कैं औंन तकैकि सारि बात बतै दी. चेलिल की “इजा-इज तू ततू फिकर नि कर मैं सब जुगुति ठीक करि द्यूंल.” जब बुड़ी आपण घर हूं जाँण लागी तो बुड़िये कि चेलिल एक ठुल्ली तुमड़ में बुड़ी के काव म्वस चुपड़ि बेर भैटे दे और एक पुतुरि में पिसी लूण- खुस्याणि बादि बेर बुड़िया हात में थमै दे. चेलिल तुमड़ कैं घुरियै दे और तुमड़ि बाटौं-बाट अघिल के जाँण लागि.
(Folklore in Kumaoni Language)

वाँ बाट् में शेर, बाग और भालु बुड़िया इन्तजार में भैटी भै. स्यूंल तुमड़ि कैं घुरी औंण देखो तो उथैं पुछ- तुमड़ी-तुमड़ि त्वील क्वे बुड़ी लै द्यखे ?” तुमड़ी भितेर बटी बुड़ी बुलाणि ‘चल तुमड़ी बाटौं बाट, मैं कैं जाणू बुड़िये बात.” तुमड़ि अघिल कै घुरीनै गै. मणि दूर में बाग मिल-वील लै उसै पुछ. बुड़ियल उसै के. मणि और दूर उकै भालु मिल. वील लं उथै पुछ बुड़ियल फिरि उसै जबाब दे और अघिल के ल्हेगे. भालु कैं रीस चड़ि, वील एक जोरैकि लात तुमड़ि में मारै तो तुमड़ि फुटि बेर पलि हैगे और बुड़ि दिखाई है गै. तभालै शेर और बाग लै ऐ पुज. तीनों कै – “बुड़िया-बुड़ी हम तुकै खानूं, हम तुकै खानूँ.” तीनों में झगड़ हुण पैगै. बुड़ियल को “तुम तसिके लड़ने में रोला मैं कसी खाला मैंकै. तबलै रुकौ, मैं यो बोठ में चड़ि जाँ और तुम तीना-तीन यैक तली बटि भैटो. मैं बोट बटी फटक मारूंल जैक हात पड़ूंल वी मैं के खे ल्हिया.”

यस के भैर बुड़ी बोठ में चड़ि गइऔर शेर, बाग, भालु आँख तांणि बेर मली बुड़ी के चाई भै. बुड़ियल लूण, खुस्याणी पुतुरि मली बटी तली कै खन्यै दे. लूण-खुस्याणि उ तीनौं कै आँखन पड़ौ त उ पीड़ल फुराड़ी गै और एक-दुहर के उचेड़न लागी बुड़ी – सट्ट चारी बोठ बटी हुलरी और फरफट्ट आपण घर हूँ भाजिगे.

घर पुजी तो बुड़ आपण बुड़ी के चाइये रैगे. वील बुड़ी थैं को ‘किले आज त्यर रङ त काव मसाण कसी भो ?” बुड़ियल को- बाट में एक गाड़ पड़ें, मैंल वी पाणि में आग लगे दे. तबै म्यर रंङ काव मसाण जस है रौ.” बुड़ल कौ- “पगलि काँकी, कैं पाणि में लै आग लागौ कभ्भे ?” बुड़ियल कौ- पैं कभ्भै कै कै बल्द लै ब्याछौ ?” बुड़ियक जबाब सुणि बेर बुड़ खिसान है गै. उदिन बटी वील बुड़ियक गोरु नि पिवै और द्विनूं कै मेल ले हैगै.
(Folklore in Kumaoni Language)

तबै के राखौ – बुद्धि सबन है ठुलि.

यह लोककथा ‘श्री लक्ष्मी भंडार हुक्का क्लब, अल्मोड़ा’ द्वारा प्रकाशित प्रतिष्ठित पत्रिका पुरवासी के 1988 के अंक में छपी थी. काफल ट्री में यह लेख पुरवासी पत्रिका से साभार लिया गया है.

काफल ट्री डेस्क

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